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Saturday, September 14, 2024

संस्कृति मंत्रालय का अजीब फरमान


भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट देखने से पता चलता है इस मंत्रालय के अंतर्गत कई श्रेणियों में संस्थाओं का वर्गीकरण है। कुछ संस्थाएं, जैसे राष्ट्रीय अभिलेखागार और पुरातत्व सर्वेक्षण मंत्रालय से संबद्ध हैं। इसी तरह से कोलकाता की केंद्रीय संदर्भ पुस्तकालय, दिल्ली स्थित नेशनल गैलरी आफ मार्डन आर्ट और राष्ट्रीय संग्रहालय आदि मंत्रालय के अधीनस्थ कार्यालय हैं। एक श्रेणी स्वायत्त संस्थाओं की है। जिसमें दिल्ली स्थित साहित्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, इंदिरा गांधी कला केंद्र जैसी संस्थाएं हैं। इनके अलावा भई अन्य संस्थाएं भी स्वायत्त संस्थाओं की श्रेणी में हैं। वेबसाइट पर एक मजेदार बात पता चली कि साहित्य अकादमी का नाम साहित्य कला अकादमी है। ये गड़बड़ी हिंदी भाषा में है। अंग्रेजी में सही नाम है। ये भूल हो सकती है लेकिन मंत्रालय की वेबसाइट पर इस तरह की गलतियां लापरवाही को दर्शाती हैं। खैर...। मोटे तौर पर स्वायत्त संस्थाओं का अर्थ ये है कि संस्कृति मंत्रालय इन संस्थाओं को अनुदान देती है और ये संस्थाएं अपने उद्देश्यों के हिसाब के कार्य करती है। सैद्धांतिक रुप से यही व्यवस्था है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में इसके ट्रस्टी मिल बैठकर निर्णय लेते हैं। इसी तरह से साहित्य अकादमी की साधारण सभा और कार्यकारी परिषद निर्णय लेती है। संगीत नाटक अकादमी में भी यही व्यवस्था है। साहित्य अकादमी में तो हर पांच वर्ष में चुनाव होता है और साधारण सभा के सदस्यों के साथ साथ अध्यक्ष और उपाध्य़क्ष भी चुने जाते हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के ट्रस्टियों और अध्यक्ष का चयन भारत सरकार करती है। इसी तरह से ललित कला अकादमी के अध्यक्ष का चयन राष्ट्रपति करते हैं। 

संस्कृति मंत्रालय की स्वायत्त संस्थाओं की चर्चा करने के पीछे कारण ये है बीते 19 जुलाई को संस्कृति मंत्रालय के अकादमी प्रभाग के इन स्वायत्त संस्थाओं के अध्यक्षों और चेयरमैन को मिलनेवाली सुविधाओं को लेकर एक गाइडलाइन जारी किया है। गाइडलाइन में इस बात का उल्लेख किया गया है कि मंत्रालय का अकादमी प्रभाग सात संस्थाओं के प्रशासनिक मामलों को देखता है। मंत्रालय का ये भी कहना है कि इन सात अकादमियों का नेतृत्व अध्यक्ष या चेयरमैन के द्वारा किया जाता है जिसका चयन केंद्र सरकार करती है। उनकी चयन प्रक्रिया, उनके दायित्व, और उनकी शक्तियां अलग अलग संस्थाओं के संविधान में उल्लिखित हैं। लेकिन इन संस्थाओ के दस्तावेज में अध्यक्ष या चेयरमैन को मिलनेवाली सुविधाओं में भिन्नता है। इसमें एकरूपता लाने के लिए अकादमी प्रभाग ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग से मशिवरा करने के बाद एक गाइडलाइन जारी की। इस गाइडलाइन के बारे में निर्णय लेनेवालों की जानकारी का स्तर देखिए। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष का चुनाव होता है। केंद्र सरकार उनको नियुक्त नहीं करती है। थोड़ी जांच कर ली जाती तो भद नहीं पिटती। लेकिन जहां संस्था का नाम ही सही न लिखा जाए उनसे इतनी जानकारी की उम्मीद बेमानी है। 

अब गाइडलाइन पर नजर डालते हैं। पहले बिंदु में कहा गया है कि इन सभी अध्यक्षों पर सेंट्रल सिविल सर्विसेज आचरण नियम लागू होंगे। इसका अर्थ ये हुआ कि संस्कृति मंत्रालय इन स्वायत्त संस्थाओं के अध्यक्षों और चेयरमैन को सरकारी कर्मचारी मानती है। जबकि इनके चेयरमैन और अध्यक्ष पद मानद है। इतना ही नहीं इन सबको गोपनीयता अधिनियम 1923 के अंतर्गत नियमों के पालन करने की सलाह दी गई है। अपेक्षा की गई है कि इनकी नियुक्ति के समय ही बताना चाहिए कि उनको सरकारी घर और वेतनभोगी कर्मचारियों को मिलनेवाली अन्य सुविधाएं नहीं मिलेंगी। उनको ना तो वेतन मिलेगा और ना ही वेतनभोगी जैसी सुविधाएं। सिर्फ वेतभोगियों वाले नियम लागू होंगे। आगे कहा गया है कि इनको मानदेय के रूप बड़ी धनराशि नहीं दी जा सकेगी लेकिन बैठकों में भाग लेने का जो मानदेय होता है वो संस्था की नीति निर्धारक समिति तय करेगी। इसमें भी सीमा तय की गई है कि महीने में दस से अधिक बैठक नहीं होगी। देश में यात्रा भी तभी कर सकेंगे जबकि फोन, ईमेल और वीडियो कांफ्रेंसिंग का विकल्प उपलब्ध नहीं होगा। ये भी स्पष्ट किया गया है कि चेयरमैन और अध्यक्ष भारत सरकार के कर्मचारियों के वेतनमान के स्तर 14 और उससे उच्च स्तर के वेतनमान वाले अधिकारियों के समकक्ष सुविधाएं ले सकेंगे। लेकिन ये नहीं बता गया है कि इसको तय कौन करेगा। बिजनेस या क्लब क्लास में हवाई यात्रा, होटल में प्रतिदिन रु 7500 का कमरा, रु 1200 का भोजन और टैक्सी भत्ता। इसके अलावा भी कुछ और हिदायतें दी गई हैं। 

गाइडलाइन को समग्रता में देखने पर ये प्रतीत होता है कि संस्कृति मंत्रालय के जिस भी अधिकारी ने इसको तैयार किया है उसका उद्देश्य संस्थाओं की स्वायत्तता को बाधित करना है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के चेयरमैन और सदस्य सचिव का उदाहरण लें तो सदस्य सचिव भारत सरकार के सचिव के समकक्ष होते हैं। उसी अनुसार उनका वेतन और अन्य सुविधाएं परिभाषित हैं। नई गाइडलाइ के मुताबिक अध्यक्ष को संयुक्त सचिव के बराबर सुविधाएं मिलेंगी। ये कैसी विडंबना और विसंगति है कि पदानुक्रम में ऊपर रहते हुए भी चेयरमैन को सुविधाएं कम मिलेंगी। अगर सुविधाएं नहीं दे सकते तो कम से कम अपमानित तो नहीं करना चाहिए। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक का पद संयुक्त सचिव के स्तर का होता है और चेयरमैन का पद मानद होता है लेकिन उनको भारत सरकार के सचिव के बराबर माना जाता रहा है। अब चेयरमैन और निदेशक को संस्कृति मंत्रालय ने बराबर कर दिया है। दरअसल जब मंत्रालयों में संस्कृति को लेकर संवेदनशील और जानकार अधिकारी नहीं होंगे तो इस तरह के कदम उठाए जाते रहेंगे। कोई रेलवे कैडर का, कोई वन या पोस्टल या आयकर कैडर का अधिकारी जब संस्कृति जैसे महकमे को संभालता है तो इसी तरह के निर्णय लिए जाते हैं। मंत्रालय के अधिकारियों को जिन प्रशासनिक मसलों पर ध्यान देना चाहिए उससे हटकर वो बेकार की चीजों में उलझे रहते हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के चेयरमैन परेश रावल का कार्यकाल समाप्त हो गया। बेहतर होता कि चेयरमैन का प्रभार लेने की आकांक्षा की जगह मंत्रालय के अधिकारी उनकी जगह नियुक्ति की प्रक्रिया आरंभ करते और समय रहते किसी नए व्यक्ति को चेयरमैन नियुक्त किया जाता। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश की संस्कृति और विरासत को लेकर बहुत गंभीर रहते हैं। भारतीय संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन को लेकर उनका अपना एक विजन है। वो निरंतर इस कोशिश में रहते हैं कि भारत की संस्कृति को वैश्विक पटल पर प्रचारित प्रसारित किया जाए। लेकिन अधिकारियों के ऊलजलूल निर्णय उनके विजन को जमीन पर उतारने में बाधा डालते रहते हैं। इस गाइडलाइन के बाद प्रश्न ये उठ रहा है कि क्या संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को इस निर्णय की जानकारी दी गई थी। क्या सरकार में उच्चतम स्तर पर ये निर्णय लिया गया है। क्या सरकार इन संस्थाओं को संस्कृति मंत्रालय के अधीन लाना चाहती है। क्या इन सभी संस्थाओं को एक साथ मिलाकर कोई नई संस्था बनाने की कोशिश कर रही है। कुछ वर्षों पूर्व बजट में इंडियन इंस्टीट्यूट आफ हेरिटेज की घोषणा की गई थी। क्या उसको प्राणवायु देने के लिए जमीन तैयार की जा रही है। इनसे बेहतर हो कि संस्कृति मंत्रालय से पर्यटन विभाग को अलग कर दिया जाए ताकि वहां के मंत्री संस्कृति पर पूरा ध्यान दे सकें। 


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