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Saturday, December 27, 2025

धर्म-परंपराओ को अपनाना आवश्यक


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत जब भी हिंदू धर्म या हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं तो विपक्षी दल विशेषकर वामपंथी और उनका इकोसिस्टम उछलने लगता है। वो धर्म को राजनीति से दूर रखने की वकालत करने लग जाते हैं। इसी तरह से जब प्रधानमंत्री मोदी हिंदू धर्म की बात करते हैं या हिंदू या सनातन धर्म के प्रतीकों को रेखांकित करते हैं तो कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल के नेता इसको धर्म और राजनीति का घालमेल बताने लग जाते हैं। संविधान और उसके अनुच्छेदों को उद्धृत करने लगते हैं। दुनिया के अन्य देशों का उदाहरण देने में प्राणपन से जुट जाते हैं। जहां तक मुझे स्मरण है कि कुछ वर्षों पूर्व जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो एक रिपोर्ट आई थी जिसमें भारत में धार्मिक असहिष्णुता की बात की गई थी। अब तो अमेरिका में भी बदलाव की बयार देखने को मिल रही है। वहां खुल कर ईसाई धर्म की और उसकी रक्षा की विस्तार से बातें की जा रही है। पिछले दिनों अमेरिका में चार्ली किर्क की फ्रीडम टी शर्ट पहनने वाली एक महिला जेनी को जब सार्वजनिक रूप से प्रताड़ित किया गया तो पूरे अमेरिका में उसके समर्थन की लहर दौड़ गई। देखते देखते जेनी के समर्थन में ढाई लाख डालर से अधिक की क्राउड फंडिंग हो गई। उनका अमेरिका फेस्ट के मंच पर अभिनंदन किया गया। चार्ली किर्क अमेरिका का दक्षिणपंथी राजनीतिक कार्यकर्ता था जो अमेरिकी समाज की परंपराओं  को लेकर निरंतर मुखर रहता था। इस वर्ष उनकी हत्या कर दी गई थी। अमेरिका में चार्ली किर्क को परंपरावादी माना जाता था। राष्ट्रपति ट्रंप से उनके करीबी रिश्ते थे।

अभी क्रिसमस बीता है। क्रिसमस के पहले अमेरिका में कमला हैरिस का एक वक्तव्य खूब वायरल हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति की चुनावी रैली में कमला ने कहा था ‘हाउ डेयर यू विश क्रिसमस’। करीब 15 दिनों तक कमला हैरिस के इस वीडियो को चलाकर उनकी आलोचना की गई। प्रतीत होता है कि इसका उद्देश्य कमला हैरिस और उनकी पार्टी को धर्म विरोधी बताने का था। ऐसा इसलिए भी लगता है कि व्हाइट हाउस ने क्रिसमस के अवसर पर एक्स पर पोस्ट किया, वी आर सेइंग मेरी क्रिसमस अगेन। इसके बाद क्रिसमस ट्री की फोटो और अमेरिका का झंडा लगया गया है। इस पोस्ट में क्रिसमस ट्री के आगे डोनाल्ड ट्रंप की फोटो थी और उनके आफिशियल हैंडल को टैग किया गया। इस पोस्ट को कमला हैरिस के लिए संदेश के तौर पर देखा गया। इतना ही नहीं डोनाल्ड ट्रंप ने अपने एक्स हैंडल से जो पोस्ट किया वो और भी मारक है- ‘सभी को मेरी क्रिसमस। उन नीच रैडिकल लेफ्ट को भी जो अमेरिका को ध्वस्त करने के हर संभव प्रयास से जुड़े हुए हैं लेकिन बुरी तरह असफल हो रहे हैं। अब हमारी कोई सीमा खुली हुई नहीं है, पुरुष महिलाओं के वस्त्र में नहीं हैं और कानून का पालन करवाने वाली एजेंसियां कमजोर नहीं हैं। हमारा स्टाक मार्केट रिकार्ड स्तर पर है। महंगाई नहीं है। बीते कल हमारी जीडीपी 4.3 पर थी जो उम्मीद से दो प्वाइंट अधिक है। टैरिफ से खरबों डालर मिले जिससे हम समृद्ध हुए। हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा उच्चतम स्तर पर है। पूरी दुनिया में हमारा सम्मान बढ़ा है। भगवान! अमेरिका पर कृपा बनाए रखें।‘ ट्रंप का ये एक्स पोस्ट पूरी तौर पर राजनीतिक है और क्रिसमस और भगवान को केंद्र में रखकर लिखा गया है। कल्पना कीजिए अगर हमारे देश में प्रधानमंत्री मोदी या राष्ट्रपति इस तरह की पोस्ट लिख दें तो कैसा बवाल मचता। 

धर्म के नाम पर अमेरिका में इतना ही नहीं हो रहा है। व्हाइट हाउस ने 26 दिसंबर को राष्ट्रपति ट्रंप का एक वक्तव्य जारी किया जिसमें लिखा है कि आज रात को कमांडर इन चीफ के तौर पर मेरे निर्देश पर संयुक्त राज्य ने आई एस आई एस के नीच आतंकवादियों पर पूरी ताकत के साथ मारक हमला किया। ये वही आतंकवादी हैं जो पिछले कई दिनों से निर्दोष ईसाइयों पर हमला कर रहे हैं और उनकी जान ले रहे हैं। इस संदेश से ये स्पष्ट है कि पूरी दुनिया में अगर ईसाइयों पर कहीं हमला होगा तो अमेरिका उसमें प्रभावी हस्तक्षेप करेगा। इसकी एक पृष्ठभूमि है। दो नवंबर को ट्रंप ने नाइजीरिया सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर वहां की सरकार इस्लामिक आतंकवादियों को ईसाई जनता को मारने से नहीं रोकेगी तो हर तरह के प्रतिबंध लगाए जाएंगे। ट्रंप ने अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने का निर्देश दिया था। अगर नाइजीरिया सरकार अपने देश में निर्दोष और मासूम ईसाइयों की हत्या नहीं रोकती है तो हमलावरों पर उससे अधिक त्वरा से हमला होगा जैसे आतंकवादी वारदात को अंजाम देते हैं। ये वही दौर था जब ईसाई समुदाय के लोगों ने ट्रंप से नाइजीरिया में ईसाइयों की हत्या को रोकने की मांग की थी। अमेरिका के इस कदम को अगर कूटनीतिक स्तर पर देखा जाए तो जिस तरह से बंग्लादेश में हिंदूओं पर हमले हो रहे हैं वैसे में भारत को हिंदुओं की रक्षा का अधिकार मिलता है। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष में कुटुंब प्रबोधन की बात कर रहा है। परिवार को जोड़ने और और परिवार की महत्ता पर बल देने का उपक्रम जारी है। इस कार्यक्रम से संघ विरोधियों के पेट में दर्द हो रहा है। कुछ लोग इसको आधुनिक सोच के विपरीत बताने में जुटे हैं। वो व्यक्तिगत अधिकारों और अपना जीवन अपनी मर्जी से जीने के अधिकारों की बात करते हुए संविधान को बीच में लाते हैं। जबकि संविधान कहीं से भी कुटुंब का विरोधी नहीं है। कुछ दिनों पहले सरसंघचालक मोहन भागवत ने हिंदू दंपति को तीन बच्चा पैदा करने की सलाह दी थी। उस समय इसको लेकर खूब हंगामा हुआ । खुद को प्रगतिशील समझने और घोषित करनेवाले राजनीतिक विश्लेषकों ने मोहन भागवत की आलोचना की थी। अनेक प्रकार के तर्क दिए गए थे जबकि मोहन भागवत ने विशेषज्ञों की राय के आधार पर कहा था कि जिस समुदाय में जन्म दर तीन से कम होते हैं वो विलुप्त हो जाते हैं। प्रगतिशील और आधुनिकता का दंभ भरनेवालों को अमेरिका को देखना चाहिए। वहां परिवार, शादी, बच्चे की महत्ता पर खूब चर्चा हो रही है। एलान मस्क और अमेरिका के उफराष्ट्रपति जे डी वांस अपने बच्चों के साथ ओवल आफिस में देखे जाते हैं। गर्व से वो परिवार की बात करते हैं। प्रेस सेक्रेट्री कैरोलिन लेविट जब गर्भवती होती है तो इसकी घोषणा होती है। वहां समलैंगिक अधिकारों या लिवइन का हो हल्ला अब नहीं मच रहा है। अपनी जड़ों की ओर लौटने की बात हो रही है। अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुओं से तीन बच्चा पैदा करने की अपेक्षा कर रहा है तो न तो ये पुरातन सोच है और ना ही आधुनिकता विरोधी। आज वैश्विक स्तर पर अपनी परंपराओं और धर्म से जुड़ने का आग्रह बढ़ा है। इसको जो नहीं समझ पा रहे हैं वो हाशिए पर जा रहे हैं।    


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