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Thursday, March 18, 2010

महिलाओं से दुश्मनी क्यों

देशभर में महिलाओं को संसद में आरक्षण दिए जाने पर जोरदार बहस चल रही है । महिलाओं को और अधिकार देने और उसे भारतीय पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों के बराबर दर्जा हासिल हो इस प्रयास को महिला आरक्षण बिल से बल मिला । लेकिन भारतीय महिला को ताकत मिले, वो देश की भागयविधाता बने, नीति-निर्धारण करे, यह बात हमारके देश में मौजूद धर्म के ठेकेदारों को मंजूर नहीं । महिला आरक्षण के समर्थन और विरोध के कोलाहल के बीच अयोध्या के राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंथ नृत्यगोपाल दास ने एक बेहद आपत्तिजनक और अव्यावहारिक बयान जारी कर दिया । नृत्यगोपाल दास ने कहा कि महिलाओं को अकेले मंदिर, मठ या देवालय में नहीं जाना चाहिए । अगर वो मंदिर, मठ या देवालय जाती हैं तो उन्हें पिता, पुत्र या भाई के साथ ही जाना चाहिए । राम जन्मभूमि न्यास के ही वरिष्ठ सदस्य रामविलास वेदांती तो इससे भी एक कदम आगे जाकर कहते हैं कि महिलाओं के अकेले मंदिर में जाने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए । मेरे जानते सनातन धर्म के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी हिंदू धर्म गुरू ने महिलाओं के मंदिर या मठ में जाने को लेकर ऐसी बात कही है । धर्म के इन दो ठेकेदारों के बयान के पीछे की मानसिकता और मनोविज्ञान पर विचार करने की आवश्यकता है । नृत्य गोपाल दास और वेदांती के ये विचार भारतीय परुष प्रधान समाज की जड़ मानसिकता और मनोविज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं । इन्हें लगता है कि हर समस्या की जड़ में नारी और उसका सौंदर्य है । इन दो धर्मानुभावों को यह लगता है कि अगर महिलाएं मंदिर में अकेले गई तो साधुओं और पुजारियों का मन डोल जाएगा और कुछ भी अनहोनी घटित हो जाएगा । इन जैसे महंथों और वेदांतियों को लगता है कि दुनिया के सारे पापों की जड़ में नारी है ।बजाए साधुओं और महात्माओं को संयम का उपदेश देने के बजाए ये लोग महिलाओं को ही सावधानी बरतने की सालह दे रहे हैं । यहां ये यह भी भूल जाते हैं कि मन तो सनातन धर्म के सबसे श्रद्धेय मुनि विश्वामित्र का भी डोल गया था ।
लेकिन ये धर्मानुभाव भारतीय सनातन परंपरा को भूल गए हैं जहां मंदिरों में नारियों को सदियों से सम्मान मिलता रहा है । दक्षिण भारत में तो महिलाएं मंदिरों में रहती भी हैं । भगवान को समर्पित ये महिलाएं मंदिरों और देवालयों में देवदासी कहलाती है । कालांतर में धर्म के ठेकेदारों और मठाधीशों की वजह से देवदासी परंपरा भी बदनाम हुई और उसमें कुछ ऐसे तत्व घुस आए जो स्त्रियों का शोषण करने लगे और उस पवित्र परंपरा को देह व्यापार में तब्दील कर दिया ।
हद तो तब हो जाती है जब धर्म के ये ठेकेदार अपने बयानों के लिए शास्त्रों को आधार बनाते हैं । लेकिन धर्म के नाम पर अपनी दुकान चलानेवाले इन आचार्यों को कौन बताए कि शास्त्रों और धर्मग्रंथों में तो मंदिरों का उल्लेख ही नहीं मिलता है । आश्रमों का जिक्र अवश्य है । शास्त्रों में तो गंगा की पूजा होती थी, सूर्य की आराधना होती थी, शिव की पूजा का उल्लेख है लेकिन मंदिरों का उल्लेख नहीं है । रावण को भी जब शिव की पूजा करना था तो वो कैलाश पर्वत गया था किसी मंदिर या मठ में नहीं । पहली बार किसी मंदिरनुमा चीज का उल्लेख रामायण में मिलता है जब राम ने लंका जाने के क्रम में शिवलिंग की पूजा की थी, जो बाद में सेतुबंध शिवलिंग के नाम से जाना गया । कहना ना होगा कि धर्म के ये ठेकेदार शास्त्रों और धर्मग्रंथों को आधार बनाकर देश की भोली भाली जनता को बेवकूफ बनाते हैं, और यह कोई नई प्रवृत्ति नहीं है, ये सालों से चल रहा है । जरूरत इस बात की है कि महंथ और वेदांती के बयानों की जोरदार शब्दों में निंदा करनी चाहिए क्योंकि इस तरह के बयान स्त्रियों को पीछे धकेलने की साजिश है । क्या यह महज संयोग है कि नृत्य गोपाल दास के बयान के चंद दिनों बाद ही शिया धर्म गुरू कल्बे जव्वाद का भी स्त्रियों को लेकर एक बयान आता है जिसमें वो कहते हैं कि लीडर बनना औरतों का काम नहीं है, उनका काम लीडर पैदा करना है । जव्वाद के मुताबिक कुदरत ने अल्लाह ने उन्हें इसलिए बनाया है कि वो घर संभालें, अच्छी नस्ल के बच्चे पैदा करें । कल्बे जव्वाद के इस बयान के समर्थन देश के सबसे बड़े मदरसे नदवा कॉलेज के आला मौलाना ने भी किया । सवाल यह उठता है कि क्या हर धर्म के ठेकेदारों को सशक्त महिलाओं से डर क्यों लगता है । वो क्या वजह है जो धर्म, मजहब, जाति के नाम पर एक दूसरे के खिलाफ जहर उगलनेवाले तत्व महिलाओं को अधिकार देने के खिलाफ एक ही प्लेटफॉर्म पर साथ खड़े नजर आते हैं । इस सवाल का जबाव बेहद जरूरी है ।
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