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Tuesday, August 20, 2013

कविताओं की नई दुनिया

ठीक से याद नहीं है कि मैं लेखिका और अनुवादक के तौर पर हिंदी और उड़िया में ख्याति अर्जित कर चुकी सुजाता शिवेन से कब मिला लेकिन अगर मेरी स्मृति मेरा साथ दे रही है तो तकरीबन पंद्रह साल पहले उनसे दिल्ली के उनके लक्ष्मीनगर के घर पर मुलाकात हुई थी । उनके पति जयप्रकाश पांडे हमारे मित्र हैं । उस वक्त हमलोग एक ही संस्थान में काम करते थे लिहाजा दोस्ती रोज रोज के साथ दफ्तर आने जाने की भी थी । बहुधा जयप्रकाश जी, जिनको मैं शरारतपूर्वक पंडित जी कहकर बुलाता था, के घर हमारी बैठकी हुआ करती थी । उस वक्त भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पत्रिका यंग इंडिया के संपादक अनिल अत्रि भी हमारी बैठकी में शामिल होते थे बल्कि शायद वो पंडित जी के साथ ही रहते थे । अनिल अत्री से भी मेरा परिचय भी वहीं हुआ था । हमलोग पंडित जी के घर पर जमकर विमर्श करते थे । बात शुरू होती थी राजनीति और समकालीन विषयों पर लेकिन कई बार साहित्य तक भी जा पहुंचती थी । इन बहसों के बीच सुजाता जी स्नेहपूर्वक हमें लगातार चाय पानी मुहैया करवाती रहती थीं । कई बार बहसों के दौरान कुछ टिप्पणियां भी कर देती थी । यह सिलसिला कई सालों तक चला । बाद में सुजाता जी और पंडित जी के दिल्ली के द्वारका और मेरे मयूर विहार से इंदिरापुरम इलाके में शिफ्ट हो जाने की वजह से यह सिलसिला टूट गया । लेकिन इस बीच सुजाता जी ने अनुवाद का प्रचुर काम किया और एक अनुवादक के तौर पर अपने को स्थापित कर लिया । उन्होंने हिंदी रचनाओं का उड़िया में अनुवाद किया जो उड़ीसा की महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में छपीं । सुजाता जी ने चित्रा मुद्गल, विश्वनाथ तिवारी, राजेन्द्र अवस्थी जैसे वरिष्ठ लेखकों की रचनाओं का तो अनुवाद किया ही , साथ ही नए लेखकों में से सूर्यनाथ सिंह और ब्रजेन्द्र त्रिपाठी की रचनाओं से उड़िया पाठकों का परिचय करवाया । सुजाता शिवेन ने साथ ही ओडिया के अहम लेखकों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया । सुजाता जी की एक अनुवादक के रूप में छिपी प्रतिभा का पता मुझे बहुत बाद में चला । वो एक बेहतरीन अनुवादक हैं । उन्होंने हिंदी के पाठकों को उड़िया साहित्य के एक बड़े लेखक वर्ग और उनकी रचनाओं से परिचय कराया है। उनकी अबतक अनुवाद की तकरीबन दर्जनभर किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और पांच किताबें प्रकाशनाधीन हैं । उनकी किताबें हिंदी के लगभग सभी शीर्ष प्रकाशकों के यहां से छप चुकी हैं । उन्होंने मनोज दास की कई रचनाओं का हिंदी अनुवाद किया जो पुस्तकाकार प्रकाशित हैं । इसके अलावा सीताकांत महापात्र, रमाकांत रथ, प्रतिभा राय, जे पी दास , बिपिन बिहारी मिश्र से लेकर इंदुलता मोहंती और महेन्द्र के मिश्र जैसे उड़िया के बड़े लेखकों की कृतियों का भी अनुवाद किया । उन्हें हिंदी में एक अनुवादक के रूप में पर्याप्त ख्याति मिल चुकी है । सुजाता जी की हिंदी से उडिया और उड़िया से हिंदी में आवाजाही से दोनों भाषा के पाठकों को लाभ मिलता है । उनके द्वारा उड़िया से हिंदी में अनुदित कई कृतियों को मैंने पढ़ा है जो अनुवाद के बेहतर उदाहरण के तौर पर पेश किए जा सकते हैं । किसी एक कृति का नाम लेना अन्य कृतियों के साथ नाइंसाफी होगी । लेकिन मैं इतना अवश्य कह सकता हूं कि उड़िया और हिंदी दोनों भाषाओं के स्थानीय शब्दों का ज्ञान होने की वजह से अनुवाद का प्रवाह बना रहता है । भाषा की रवानगी बाधित नहीं होती है और पाठकों को अपनी ही भाषा में पढ़ने का आस्वाद मिलता है ।
मुझे सुजाता जी के अनवाद के क्षेत्र में काम का अंदाजा था लेकिन उनके कवि होने का इल्म भी मुझे नहीं था। यह मेरी अज्ञानता थी क्योंकि बाद में पता चला कि उनकी हिंदी में लिखी कविताएं कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रकिकाओं में छप चुकी थी । मेरी नजर तो तब पड़ी जब एक दिन मैं शिल्पायन प्रकाशन के दफ्तर गया था । वहां मुझे ताजा ताजा छपकर आई किताब कुछ और सच दिखा जिसकी लेखिका सुजाता शिवेन थी । मैंने किताब को पलटा तो पता चला कि ये सुजाता की कविताओं का संग्रह था । मैं उनका कविता संग्रह अपने साथ ले आया । घर लौटकर जब मैंने पढ़ना शुरू किया तो मुझे सुजाता जी के अंदर छिपी एक कवि प्रतिभा का पता चला । कुछ और सच में सुजाता शिवेन की छोटी बड़ी छियनवे कविताएं प्रकाशित हैं । हिंदी में किताबों के ब्लर्ब किसी मशहूर लेखक से लिखवाने या फिर बगैर नाम के खुद ही लिख देने की परंपरा रही है । लेकिन सुजाता शिवेन ले अपने कविता संग्रह का ब्लर्ब खुद से ही लिखा और उसमें बताया कि इनमें खुशियां भी हैं, सपने और उम्मीदें भी । जाहिर है जीवन संघर्ष तो इसमें होगा ही, हर नारी के जीवन में शायद यह किसी भी पुरुष से ज्यादा जो होता है । इस एक वाक्य से सुजाता की कविताओं के बारे में पाठकों को अंदाजा हो जाता है । अपनी कविता जाने क्यों में सुजाता कहती हैं यूं ही क्या कम था/गम जिंदगी में/फसाना जाने क्यों/बना के लोग/जख्म बना देते हैं/क्यों हुए बेआबरू हम/फूछने की फुर्सत किसे/जाने क्यों कानाफूसी करने की लोग/जहमत उठा लेते हैं । इन पंक्तियों से कवयित्री के अंदर का जो भाव निकल कर आता है वह हमारे समाज की मानसिकता पर, हमारे आसपास के लोगों की महिलाओं को लेकर सोच का पता देती है। इसी कविता की अंतिम लाइनें हैं जिंदगी ने जब भी /पिलाया कड़वा घूंट/ हमने छक कर पी /जाने क्यों लोग/ बस अमृत /पीना चाहते हैं । इन पंक्तियों से कवयित्री का एरक तरीके से मोहभंग और समाज को लेकर एक उपेक्षा बाव दोनों सामने आती है ।
एक और कविता अलगाव में सुजाता शिवेन ने नारी मन की व्यथा को वाणी देते हुए बताती हैं कि किस तरह से एक महिला खुद में सिमटने लगती है जब वो किसी के बिछोह में होती है । सुजाता शिवेन की कविताओं का रेंज सिर्फ घर परिवार समाज ही नहीं बल्कि उससे भी आगे जाता है । लेकिन उनकी कविता का मूल स्वर नारी की संवेदना और नारीमन के विश्लेषण के अलग अलग शेड्स लिए हुए है । इन कविताओं से गुजरते हुए पाठक बहुधा उससे एक रागात्मक संबंध बनाते हैं जो सुजाता शिवेन की कविता की ताकत है । भावना प्रधान कविताओं में मिलने की खुशी है तो बिछड़ने का गम भी है, दर्द को पी जाने का जज्बा भी । कुल मिलाकर सुजाता शिवेन की कविताएं आज के दौर में विचारधारा विशेष के प्रभाव में लिखी जानेवाली नारेबाज कविता से अलग हटकर है जो पाठकों को सुकून देती है । सुजाता की कविताएं मानवीय सरोकार के बंधन में बंधी है और विचारधारा की बेड़ी में नहीं जकड़ी हुई है इस वजह से यह पाठकों के मन के करीब है । कुल मिलाकर मैं यह कह सकता हूं कि सुजाता शिवेन अनुवाद के क्षेत्र में तो अहम काम कर ही रही हैं उन्होंने अपनी कविता संग्रह के माध्यम से अपने लेखक व्यक्तित्व के एक और पहलू को सामने रखा है । मुजे पूरा विश्वास है कि हिंदी के पाठक सुजाता जी कविताओं को भी उसी तरह से पसंद करेंगे जैसे उनके द्वारा अनुदित रचनाओं का स्वागत किया है ।

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