नई सरकार के गठन और मंत्रियों की योग्यता से लेकर अनुच्छेद तीन सौ सत्तर और समान
नागरिक संहिता पर बहस के शिगूफे से मचे शोरगुल के बीच अन्य मंत्रियों की तरफ से मिल
रहे अहम संकेत नेपथ्य में चले गए । विवादों के इस कोलाहल में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन
की केंद्रीय स्वास्थ्य नीति बनाने के संकेत सूत्र को मीडिया में तवज्जो नहीं मिल पाई
। डॉ हर्षवर्धन ने केंद्रीय मंत्री का कामकाज संभालने के बाद तंबाखू मुक्त भारत की
बात करके सबको चौंका दिया था। उन्होंने इस बात के संकेत भी दिए कि सिगरेट और अन्य तंबाखू
उत्पाद पर उत्पाद शुल्क बढ़ाया जाएगा । इसके अलावा केंद्रय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन
ने इस बात कि ओर भी इशारा किया कि स्वास्थ्य बीमा के दायरे को बढाया जाएगा । स्वास्थ्य
मंत्री की बातों से निकले इन सूत्रों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि नई सरकार देश में
एक नई स्वास्थ्य नीति पेश कर सकती है । भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव के अपने
घोषणा पत्र में कहा भी था कि ‘भारत में अब समग्र स्वास्थ्य
नीति की जरूरत है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी जटिल चुनौतियों का सामना किया जा सके । जनसांख्यिकीय
बदलाव और स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए बदलाव को देखते हुए इसकी सख्त जरूरत है । भारतीय
जनता पार्टी नई स्वास्थ्य नीति की पहल करेगी ।‘ हमारे देश में
पिछली बार दो हजार दो में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के वक्त राष्ट्रीय
स्वास्थ्य नीति बनी थी । बारह वर्ष के बाद देश के हालात बहुत बदल गए हैं , लेकिन सरकारी
अस्पतालों की हालत में बहुत सुधार नहीं हो पाया है । इतना अवश्य हुआ कि देश में फाइव
स्टार अस्पतालों की बहुतायत हो गई है । इन निजी अस्पतालों में चिकित्सा सुविधा अवश्य
बेहतर हुई है लेकिन स्वास्थ्य सेवा के कॉरपोरेटाइजेशन की वजह से खर्च भी बहुत ज्यादा
बढ़ गया है । ये निजी अस्पताल आम आदमी की पहुंच से बाहर हो चुके हैं । ये तो शहरों
का हाल है गांवों में स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवा का हाल और भी बुरा है । सरकारी डिस्पेंसरियों
में डाक्टर पहुंचते ही नहीं हैं । वहां मौजूद कर्मचारी ही छोटी मोटी दवाइयां देकर मरीजों
को रुखसत कर देते हैं । जिला अस्पतालों में डाक्टर पहुंचते तो हैं लेकिन मरीजों की
संख्या इतनी ज्यादा होती है कि अस्पताल उनके लिए छोटा पड़ जाता है । इसके अलावा जिला
अस्पतालों में पर्याप्त चिकित्सा उपकरणों और संसाधनों की कमी भी स्वास्थ्य सेवा में
बड़ी बाधा है । देश की राजधानी दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान
संस्थान यानि एम्स की इमरजेंसी में स्ट्रेचर पर मरीज कई दिनों तक अपना इलाज करवाते
हैं । किस्मत वाले मरीजों को ही एम्स में दाखिला मिल पाता है । देश में स्वास्थ्य व्यवस्था
की बदहाली की इस पृष्ठभूमि में एक नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की दरकार भी है जिसमें
मौजूदा हालात के मद्देनजर अस्पतालों और चिकित्सा शिक्षा की नई नीति बनाई जाए ।
अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में जब दो हजार दो में सरकार बनी थी तो देश में हेल्थ
सेक्टर में पर्याप्त निवेश नहीं हो रहा था । स्वास्थ्य शिक्षा का फैलाव देशभर में नहीं
था । जब राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति बनाई गई थी तब इस बात पर जोर दिया गया था कि सरकारी
स्वास्थ्य सेवा का लाभ समाज के सबसे निचले पायदान के व्यक्ति तक पहुंच सके । साथ ही
दो हजार दो की स्वास्थ्य नीति में ग्रामीण इलाके में मौजूद स्वास्थ्य सेवा और उसके
नेटवर्क को मजबूत करने को प्राथमिकता दिया जाना तय किया गया था । इन लक्ष्यों को हासिल
करने के लिए स्वास्थ्य सेवा पर खर्च बढाए जाने की बात भी की गई थी । चूंकि स्वास्थ्य
सेवा राज्य सरकारों के तहत आता है इस वजह से केंद्र की तरफ से अलग अलग समय पर योजनाएं
बनाकर राज्य सरकारों को धन मुहैया करवाने की योजना बनी थी । आजादी के बाद से लेकर नब्बे
के दशक तक के अंत तक मेडिकल और डेंटल कॉलेजों की स्थापना देश के भौगोलिक क्षेत्र के
हिसाब से बेहद असंतुलित तरीके से हुई थी । दो हजार दो की स्वास्थ्य नीति में इस असामनता
तो खत्म करने पर भी जोर दिया गया था । इस फैसले का परिणाम भी मिला और यूपीए की सरकार
के दौरान हर राज्य में एम्स जैसे संस्थान बनाने पर काम शुरू हुआ, लेकिन देरी होने की
वजह से इसका अपेक्षित लाभ अबतक नहीं मिल पाया है ।
नई स्वास्थ्य नीति बनाते
समय सरकार को कई महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना होगा । वैश्वीकरण और बाजारवाद के भारत
में पांव पसारने के बाद दवाइयों की कीमत में भी इजाफा हुआ है लेकिन अब भी विश्व के
अन्य देशों की तुलना में ये काफी सस्ती हैं । बाजारीकरण के इस दौर में और मल्टी नेशनल
कंपनियों के भारत आने के बाद इस बात का अंदेशा है कि जैनेरिक दवाइयों की कीमत में बढ़ोतरी
हो सकती है । नई नीति में सरकार को इस बात पर पर्याप्त ध्यान देना होगा नहीं तो इलाज
महंगा होने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा । नई स्वास्थ्य नीति में सरकारी अस्पतालों के
आधुनिकीकरण से लेकर दवा वितरण को तर्कसंगत बनाने की आवश्यकता है । स्वास्थ्य मंत्री
को पल्स पोलियो अभियान सफलतापूर्वक चलाने का अनुभव है लिहाजा नई स्वास्थ्य नीति में
टीकाकरण अभियान को पूरे देश में चलाने की नीति को अमली जामा पहनाना होगा । नीतियों
को बनाना और उसको लागू करने से ज्याद बड़ी चुनौती है इस सेवा को घुन की तरह खा रहा
भ्रष्टाचार । पूरे देश ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का हश्र उत्तर प्रदेश में
देखा है जहां मंत्री से लेकर संतरी तक ने इस कार्यक्रम से करोडों रुपए बनाए । भले ही
आज वो जेल में हों, उनको सजा भी हो जाए लेकिन गांव के गरीबों के हक पर तो डाका डल गया
।
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