अपनी फसल को किसान बेहद मेहनत से तैयार करता है और जब फसल लहलहाने लगती है और तैयार
हो जाती है तो इलाके का दबंग जमींदार अपने कारकुनों के साथ पहुंच कर फसल कटवा लेता
है । यह दृश्य कई फिल्मों में कई बार फिल्माया गया है । अस्सी के दशक में बिहार में
बहुधा ऐसे वाकए सुनने को मिलते थे । इस बार लोकसभा के चुनाव में भी इससे ही मिलता जुलता
वाकया देखने को मिला । यूपीए सरकार के खिलाफ अन्ना आंदोलन से जो जमीन तैयार हुई थी
उसपर मोदी ने सियासी फसल काटी । दो हजार ग्यारह की बात है यूपीए सरकार के एक के बाद
एक लाखों करोड़ के घोटाले उजागर हो रहे थे । देश में महंगाई अपने चरम पर थी । पेट्रोल
के दाम लगातार बढ़ रहे थे । रुपए का लगातार अवमूल्यन हो रहा था । शेयर बाजार में सुस्ती
छाई थी । पूरे देश की जनता एक तरह से यूपीए सरकार से उबी हुई लग रही थी । सरकार लाचार
लग रही थी । प्रधानमंत्री हर बार महंगाई से निबटने के लिए एक नई तारीख दे रहे थे ।
सोनिया गांधी के अस्वस्थ होने की वजह से कांग्रेस की हालत बगैर कप्तान के टीम जैसी
हो गई थी क्योंकि उपकप्तान अपनी धुन में मस्त था । वह आदर्शवाद और व्यावहारिकता में
फर्क नहीं कर रहा था । महंगाई के खिलाफ देशभर में बीजेपी के प्रदर्शन की योजना टांय-टांय
फिस्स हो चुकी थी । विपक्ष भी सुस्ता रहा था । ऐसे ही माहौल में अरविंद केजरीवाल ने
जब अन्ना हजारे की अगुवाई में दो हजार ग्यारह में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन शुरू किया
था तो उसे अपार जनसमर्थन मिला था । दिल्ली का रामलीला मैदान हो या जंतर मंतर दोनों
जगह लाखों की भीड़ उमड़ी थी । अरविंद केजरीवाल की टीम ने दिल्ली में अन्ना हजारे के
दोनों अनशन के दौरान सोशल मीडिया और नेटवर्किंग साइट्स के अलावा यूट्यूब का भी जमकर
उपयोग किया था। अपनी बात को जनता तक पहुंचाने से लेकर जनता को मोबलाइज करने तक में
। राजनीति पर बारीक नजर रखनेवालों ने उस आंदोलन के दौरान सोशल मीडिया, नेटवर्किंग साइट्स
और इंटरनेट की पहुंच और ताकत का अंदाज लगा लिया था । अनशन के पहले जब अन्ना हजारे को
दिल्ली के मयूर विहार इलाके से गिरफ्तार किया गया था तो उनकी गिरफ्तारी के फौरन बाद
टीम अन्ना ने उनका प्रीरिकॉर्डेड मैसेज यूट्यूब पर अपलोड कर दिया था । अन्ना के उस
मैसेज का जोरदार असर हुआ और उनके तिहाड़ जेल पहुंचने से पहले हजारों की भीड़ वहां पहुंच
चुकी थी । एक असर यह भी हुआ था कि तिहाड़ जेल के बाहर पहुंची हजारों की भीड़ कभी भी
हिंसक नहीं हुई । अन्ना के आंदोलन के दौरान अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए बनाया
गया इंडिया अगेंस्ट करप्शन का ट्विटर हैंडल के एक लाख से ज्यादा फॉलोवर थे । बाद में
जब टीम अन्ना में दरार हो गई तो यह ट्विटर हैंडल उनके पास से निकल गया । लेकिन तबतक
अरविंद केजरीवाल का अपना ट्विटर हैंडल खासा लोकप्रिय हो चुका था । इस पूरी कहानी को
बताने का मकसद सिर्फ इतना है कि देश में सियासत की फसल लहलहा रही थी, जरूरत थी तो उसको
काटकर सत्ता का स्वाद चखने की । दिल्ली से दूर पश्चिम के एक राज्य गुजरात के मुख्यमंत्री
नरेन्द्र मोदी बारीकी से देश के हालात पर नजर रखे हुए थे । हम यहां नरेन्द्र मोदी की
तुलना गांव के उस दबंग से तो नहीं कर सकते हैं जो खड़ी फसल को काट लेता है लेकिन केजरीवाल
और अन्ना आंदोलन से जो सियासी जमीन तैयार हुई थी उसपर बहुमत की बुलंद इमारत उन्होंने
खड़ी कर ली और देश के सर्वोच्च कार्यकारी पद तक जा पहुंचे ।
अन्ना आंदोलन से यूपीए सरकार के खिलाफ जो एक माहौल बना, नरेन्द्र मोदी ने उसमें
अपने लिए संभावना तलाशी और योजनाबद्ध तरीके से अपनी पूरी टीम को सक्रिय कर दिया । सोशल
मीडिया पर, नेटवर्किंग साइट्स पर, इंटरनेट पर और यूट्यूब पर मोदी के पक्ष में पूरी
की पूरी टीम सक्रिय हो गई । देश के अलग अलग हिस्सों से ट्विटर पर मोदी के पक्ष में
हवा बनाई जाने लगी । फेसबुक पर मोदी के पेज के लाइक्स की संख्या लाखों में पहुंचने
लगी जो चुनाव तक एक करोड़ को पार कर गई । मोदी के एक मजबूत और निर्णायक नेता की छवि
गढ़ने में ट्विटर और फेसबुक की अहम भूमिका रही । मोदी के पक्ष में आक्रामकता के साथ
मुहिम और उनके विरोधियों पर टूट पड़ने को ट्विटर सेना मुस्तैदी के साथ डटी रहती थी
। यह काम चौबीसों घंटे चलता था । मोदी के पक्ष में लिखी बात ट्विटर पर लगातार रीट्वीट
होती रहती थी और जैसे ही कोई मोदी के खिलाफ कोई ट्वीट होता था तो लिखने वाले पर चौतरफा
हमले शुरू हो जाते थे । बहुधा मर्यादा की सीमा भी लांघी जाती थी । इस चुनाव के दौरान
ट्विटर, फेसबुक और अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट्स का विश्लेषण करनेवालों का कहना है कि
चुनाव के नतीजों के बाद इन साइट्स पर मोदी के पक्ष में सक्रियता काफी कम हो गई है ।
इससे इस बात के संकेत मिलते हैं कि फतह के बाद सेना बैरक में चली गई है ।
अन्ना आंदोलन से बने माहौल.
सोशल नेटवर्किंग साइट्स और इंटरनेट के बेहतरीन इस्तेमाल के अलावा मोदी ने अत्याधुनिक
तकनीक का भी जमकर इस्तेमाल किया । तमिल, तेलुगू, बांग्ला से लेकर अन्य कई भाषाओं में
मोदी की आवाज में डब किए गए उनके भाषण उनकी खुद की बेवसाइट के अलावा यूट्यूब पर फौरन
अपलोड की जाती थी । इन भाषणों के लिंक फेसबुक से लेकर ट्विटर पर दनानन फैलते थे और
हजारों की संख्या में हिट्स मिलते थे । इस चुनाव में थ्री डी तकनीक का इस्तेमाल कर
मोदी ने अपने विरोधियों को तो मात दी ही जनता को भी कम नहीं चौंकाया । एक जगह बैठकर
देश के कोने कोने में बैठे लोगों से चाय पर चर्चा करके भी मोदी देश के बहुसंख्यक मतदाताओं
तक अपनी बात पहुंचाने में कामयाब रहे । सोलहवीं लोकसभा के चुनाव के पहले हमारे परंपरावादी
राजनैतिक टिप्पणीकारों का यह मानना था कि जनतंत्र में जन के पास जाकर ही उनको संतुष्ट
किया जा सकता है । तर्क यह भी दिया जाता था कि जो लोग जनता तक पहुंच पाते हैं वो आभासी
माध्यमों के मार्फत जनता से संवाद स्थापित भले ही स्थापित कर लें लेकिन वोट लेने में
कामयाब नहीं हो पाएंगे । मोदी के पक्ष में आए चुनावी नतीजों ने इन सारे मिथकों को चकनाचूर
कर दिया । प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद भी मोदी को संवाद के इस आधुनिक टूल की
अहमियत पता है लिहाजा वो हर वक्त ट्विटर पर सक्रिय रहते हैं और सरकारी विभागों को भी
उन्होंने सक्रिय रहने का संदेश दे दिया है । शपथ लेने के चंद मिनट बाद प्रधानमंत्री
कार्यालय की बेवसाइट का बदल जाना और उसपर देशवासियों के नाम मोदी का संदेश अपलोड होना
इस बात की तस्दीक भी करता है ।
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