जयपुर के दिग्गी पैसेल होटल परिसर में इक्कीस से पच्चीस जनवरी
तक चलनेवाले जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है । आठ सालों से
आयोजित इस सालाना लिटरेचर फेस्टिवल में इस बार साहित्य के अलावा भी कई अन्य विषयों
पर मंथन के लिए अपने अपने क्षेत्र के दिग्गज जुटेंगे । साहित्य के सवालों से टकराने
के लिए बना विमर्श का यह मंच अब उससे बहुत आगे निकल चुका है । अब इस लिटरेटर फेस्टिवल
के दैरान दिग्गी पैलेस परिसर में एक पूरा मीना बाजार सजता है । राजस्थानी कपड़ों से
लेकर हस्तशिल्प तक और सोने के गहनों से लेकर जूतियों तक की दुकानें वहां लगाई जाती
हैं । आयोजकों ने इस साहित्यक महफिल को पूरी तरह से मीना बाजार के माहौल के हिसाब से
बना दिया है । इस बार तो यह मीना बाजार और भी ग्लैमरस होने जा रहा है । इस बार इस साहित्यक
महोत्सव के केंद्र में फिल्म और फिल्म लेखन है । जावेद अख्तर और शाबाना आजमी के अलावा
गीतकार प्रसून जोशी और फिल्म पर गंभीर लेखन करनेवाले यतीन्द्र मिश्र फिल्मों पर बात
करेंगे । फिल्म समीक्षक अनुपमा चोपड़ा की किताब- द फ्रंट रो, कनवरसेशंस ऑन सिनेमा को
मशहूर फिल्म अभिनेत्री सोनम कपूर जारी करेंगी । इसके अलावा जावेद अख्तर के नए कविता
संग्रह का भी विमोचन किया जाएगा । आयोजक इस बात के लिए खुश होते हैं और सही दावा भी
करते हैं कि ये विश्व का सबसे बड़ा लिटरेचर फेस्टिवल है जहां लोगों का प्रवेश मुफ्त
है । जयपुर के इस साहित्योत्सव में अब विमर्श
कम भीड़ ज्यादा होती है । सात साल पहले जब उस महोत्सव की शुरुआत हुई थी तो दिग्गी पैलेस
के फ्रंट लॉन में सिर्फ साहित्य के गंभीर श्रोता और साहित्यप्रेमी ही मौजूद होते थे
। अब तो हालात यह है कि स्कूली बच्चों को बसों में भर भर कर मेला घुमाने के लिए लाया
जाता है । आयोजकों ने भी इस साहित्यक मेले को लोकप्रिय बनाने में कोई कोर कसर नहीं
छोड़ीहै । हर बार मशहूर लेखकों के अलावा तीन चार फिल्म कलाकार यहां आते ही हैं । इस
बार सोनम कपूर, वहीदा रहमान, जावेद अख्तर , शबाना आजमी समेत कई सितारे यहां चमकने के
लिए तैयार हैं । जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल को मशहूर करने में विवादों की भी बड़ी भूमिका
है । चाहे वो समाजशास्त्री आशीष नंदी के पिछड़ों पर दिए गए बयान और आशुतोष के प्रतिवाद
का विवाद हो या फिर सलमान रश्दी के जयपुर आने
को लेकर मचा घमासान हो । सलमान रश्दी के आने का वक्त उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव
के पहले का वक्त था लिहाजा सियासी दलों ने भी उसको भुनाने की कोशिश की थी । मामला इतना
तूल पकड़ गया था कि सलमान रश्दी का भारत दौरा रद्द करना पड़ा था । उस विवाद की छाया
लंबे समय तक जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल को प्रसिद्धि दिलाती रही । पिछले साल अमेरिकी उपन्यासकार
जोनाथन फ्रेंजन ने यह कहकर आयोजकों को झटका दिया था कि - जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल जैसी
जगहें सच्चे लेखकों के लिए खतरनाक है, वे ऐसी जगहों से बीमार और लाचार होकर घर लौटते
हैं । साहित्य के साथ साथ वहां बहुधा राजनीतिक
टिप्पणियां भी हो जाती हैं । पिछले साल नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन ने
आम आदमी पार्टी के उभार को भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती के तौर पर पेश किया । वहीं
अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के नेत्रहीन लेखक वेद मेहता ने मोदी पर निशाना साधते
हुए कहा था कि उनका पीएम बनना देश के लिए घातक हो सकता है । साहित्य से व्यावसायिकता
की राह पर चल पड़े जयपुर साहित्य महोत्सव को तमाम लटके झटकों के बावजूद इस बात का श्रेय
तो दिया ही जाना चाहिए कि इसने पूरे देश में साहित्यक उत्सवों की एक संस्कृति विकसित
की है । जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की देखादेखी आज देशभर में कई लिटरेचर फेस्टिवल आयोजित
होने लगे हैं । इससे देश में एक साहित्यक माहौल बनने में मदद तो मिल ही रही है
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