मराठी लेखक भालचंद्र नेमाडे को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित करने के मौके पर
हुए जलसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किताबों को लेकर गंभीर चिंता जताई। प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने कहा कि जब आर्किटेक्ट घर का डिजायन बनाता है तो वो बेडरूम से लेकर
घर में रहनेवाले की हर जरूरतों को ध्यान में रखकर जियाजन चैयार करता है । यहां तक कि
वो जूते रखने तक के लिए भी स्थान निर्धारित करता है लेकिन किताबों के लिए ना तो उसके
जेहन में कोई जगह आती है और ना ही मकान बनवाने की प्राथमिकता में यह होता है । प्रधानमंत्री
के शब्दों में थोड़ा बदलाव संभव है लेकिन भावर्थ पूरा यही था ।प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि हर घर में पूजा घर की तरह किताबों के लिए भी एक अलग
कमरा होना चाहिए । उन्होंने ये भी कहा कि आज की पीढ़ी गूगल गुरू से ज्ञान प्राप्त करती
है जबकि अध्ययन के लिए किताबों की जरूरत होती है । यह बिल्कुल सच बात है कि हमारे देश
में खासकर हिंदी में किताब खरीदने और पढ़ने की आदत खत्म सी होती जा रही है । इसकी कई
वजहें हैं । किताबों की खरीद की आदत खत्म होते जाने की सबसे बड़ी वजह है उसकी अनुपल्बधता
। दिल्ली समेत पूरी हिंदी पट्टी की अगर हम बात करें तो साहित्यक किताबों की दुकान मिलती
ही नहीं है । देश की राजधानी दिल्ली में हिंदी साहित्य बेचनेवाली दुकानें धीरे-धीरे
समाप्त हो रही हैं । काफी पहले दिल्ली के श्रीराम सेंटर में एक किताब की दुकान होती
थी जहां साहित्यक किताबों के अलावा पत्र-पत्रिकाएं भी मिल जाया करती थीं । उसके बंद
होने के बाद राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय या फिर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में मिलती
हैं लेकिन वहां भी स्टॉक बहुत सीमित होता है । यही हाल लखनऊ, पटना, चंडीगढ़, शिमला
आदि का भी है । अब अगर दिल्ली में किसी को कोई खास किताब खरीदनी हो तो उसके लिए पूरा
दिन खर्च करना होगा । इससे बचने के चक्कर में किताब खरीदने की आदत खत्म सी होने लगी
है । अवचेतन मन में यह चलता रहता है कि अगर ख्वाहिश हो तो भी खरीज नहीं सकते लिहाजा
उधर ध्यान जाना बंद हो गया है ।
जिन प़ॉश इलाकों में किताबों की दुकानें हैं वहां अंग्रेजी की ज्यादा किताबें मिलती
हैं, हिंदी की किताबें वहां हाशिए पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाती दिखाई देती हैं । वो
भी कहीं कहीं ही । दरअसल जब प्रधानमंत्री किताबों के बारे में उत्साह दिखाते हैं तो
उनसे अपेक्षा बढ़ जाती है । हमारे देश में किताबों को लेकर ना तो कोई ठोस नीति है और
ना ही कभी उस दिशा में गंभीरता से विचार किया गया । जिस तरह से देश में स्वास्थ्य नीति,
शिक्षा नीति आदि पर बातें होती हैं, मंथन होता है और फिर वो एक स्वरूप में सामने आता
है, उसी तरह से राष्ट्रीय पुस्तक नीति के बारे में विचार कियाजाना चाहिए । क्या हम
उस आदर्श स्थिति की कल्पना कर सकते हैं जब हमारे शहरों में किताबों की दुकानें हो जहां
उत्कृष्ट साहित्य उपलब्ध हों । क्या हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से यह अपेक्षा कर
सकते हैं कि वो संबंधित मंत्रालय को राष्ट्रीय पुस्तक नीति बनाने और उसपर देशव्यापी
चर्चा के लिए आदेश देंगे । यह एक आवश्यक काम है जिसमें प्रधानमंत्री को व्यक्तिगत रुचि
लेकर ठोस कदम उठाने होंगे । यह पीढ़ियों को संस्कारित करने का कार्य होगा । अगर सरकार
इस दिशा में कोई पहल करती है तो हिंदी के प्रकाशकों को भी आगे बढ़कर इसमें हिस्सा लेना
चाहिए । यह उनके मुनाफे का सौदा तो होगी ही साथ ही उनके सामाजिक दायित्व को निभाने
की तरफ उठा एक कदम भी होगा ।
2 comments:
आपने बिल्कुल सही कहा है ।
जी सहमत हूं पूर्णतया ।परंतु अभी तक आम जन के लिए कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। मैंने कल ही एक लघु आलेख अपने फेस बुक पेज पर पोस्ट किया है। जो कि मूलतः पुस्तक मेला संस्कृति और विश्व पुस्तक मेला 2023 पर केंद्रित है जिससे दैनिक जागरण में आई उक्त पुस्तक मेला की खबर के आधार पर तैयार किया और उसी में मैंने राष्ट्रीय पुस्तक नीति के विषय में जी लिखा है सादर
सूर्यकांत शर्मा
मोबाइल
7982620596
Post a Comment