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Saturday, August 17, 2019

स्वायत्ता की आड़ में अराजकता


हाल ही में ललित कला अकादमी ने अपना स्थपना दिवस समारोहपूर्वक मनाया। दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में भारत सरकार के संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल समेत कला जगत के कई मूर्धन्य उपस्थित थे। अपने संबोधन में ललित कला अकादमी के अध्यक्ष और प्रतिष्ठित कलाकार उत्तम पचारणे ने संस्कृति मंत्रालय पर अकादमी के कामकाज में बाधा डालने की बात कही। मंत्री की मौजूदगी में कही गई उनकी इन बातों का मंत्री ने नोटिस तो लिया लेकिन बेहद संजीदगी से उन्होंने नसीहत दी कि इल तरह की बातें सार्वजनिक मंच से ना होकर आपसी संवाद के जरिए की जानी चाहिए। बात आई-गई हो गई लेकिन ललित कला अकादमी के अध्यक्ष की बातों से ऐसा लगा कि मंत्रालय और अकादमी के बीच सामंजस्य की कमी है। ये भी लगा कि कुछ तो है जिसकी परदादारी है और वो बाहर आने के लिए बेचैन है। दरअसल ललित कला अकादमी काफी समय से विवादों में रही है। अलग अलग समय पर अलग अलग कारणों से विवाद होते रहे हैं। अब तो अध्यक्ष ने साफ तौर पर कह दिया है कि मंत्रालय और अकादमी के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। तो ऐसे में मंत्रालय और अकादमी दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि संवादहीनता और कामकाज की बाधाओं को दूर किया जाए।
दिल्ली के रवीन्द्र भवन में तीन अकादमियां चलती हैं, संगीत नाटक अकादमी, ललित कला अकादमी और साहित्य अकादमी। संगीत नाटक अकादमी अभी हाल में अपने पुरस्कारों को लेकर विवाद में रही। साहित्य अकादमी भी 2015 के बाद काफी चर्चा में रही है। पिछले दिनों इस तरह की खबरें आईं कि साहित्य अकादमी के प्रतिनिधिमंडल को चीन जाने की अनुमति संस्कृति मंत्रालय से नहीं मिली और इसकी वजह से लंबे समय से चीन के साथ चली आ रही विचार-विनिमय की परंपरा बाधित हुई। लेकिन ललित कला अकादमी का मामला इन दोनों अकादमियों से अलग है। इसके पूर्व सचिव सुधाकर शर्मा को लेकर भी काफी विवाद हुआ था। अशोक वाजपेयी जब ललित कला अकादमी के अध्यक्ष थे तो उन्होंने सुधाकर शर्मा को सचिव पद से हटा दिया था। फिर बहाली हुई, फिर हटाए गए। अशोक वाजपेयी का कार्यकाल भी विवादित रहा। उनपर भी कई तरह के आरोप लगे। इन आरोपों की सीबीआई जांच भी कर रही है। गवाहों के बयान आदि भी हो चुके हैं। सीबीआई चार्जशीट की प्रतीक्षा है। अशोक वाजपेयी के बाद के के चक्रवर्ती ललित कला अकादमी के अध्यक्ष बने। इनका कार्यकाल भी विवादित रहा, इनके समय में भी सुधाकर शर्मा को सस्पेंड किया गया। के के चक्रवर्ती भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और उनको बीच में ही हटाकर मंत्रालय ने ललित कला अकादमी को अपने अधीन कर लिया। ललित कला अकादमी के संविधान में ये प्रावधान है कि अगर मंत्रालय को ये लगता है कि वहां गड़बड़ियां हो रही हैं तो वो संस्थान के प्रशासन को अपने अधीन कर प्रशासक नियुक्त कर सकता है। मंत्रालय ने कृष्णा शेट्टी को अकादमी का प्रशासक नियुक्त कर दिया। प्रशासक का काम ललित कला अकादमी का चुनाव करवाकर महा-परिषद और कार्यकारी बोर्ड का गठन करवाना होता है। परंतु शेट्टी अपने कार्यकाल में इसका गठन नहीं करवा पाए। कृष्णा शेट्टी के बाद मंत्रालय ने अपने एक संयुक्त सचिव को प्रोटेम चेयरमैन नियुक्त कर दिया। ललित कला अकादमी के संविधान की किस धारा के अंतर्गत प्रोटेम चेयरमैन बनाए गए इसपर कलाकारों के बीच लंबे समय तक चर्चा होती रही थी। इन सबके बीच मामला कोर्ट में भी गया था लेकिन पता नहीं किन परिस्थितियों में महा-परिषद का चुनाव नहीं हो पाया। समय समय पर मंत्रालय के कई अधिकारियों को यहां का कामकाज देखने की जिम्मेदारी दी गई। थोड़ा वक्त और बीता और उत्तम पचारणे को यहां का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। अकादमी की बेवसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक अबतक महा-परिषद के सदस्यों का चुनाव नहीं हो पाया। जाहिर सी बात है कि जब महा-परिषद का गठन ही नहीं हो पाया तो कार्यकारी बोर्ड कैसे बनती, क्योंकि इसके कुछ सदस्य तो महा-परिषद के सदस्यों के बीच से ही चयनित होते हैं। महा-परिषद के नहीं होने से ललित कला अकादमी के कामकाज में पारदर्शिता नहीं दिखाई देती है। इनमें से ज्यादातर घटनाएं पूर्व संस्कृति मंत्री महेश शर्मा के कार्यकाल में हुईं। सबसे दिलचस्प तो सुधाकर शर्मा का केस है। वो सचिव पद से कई बार हटाए और बहाल किए गए और आखिरकार जब वो रिटायर हुए तो सस्पेंड ही थे। स्वायत्ता के नाम पर अराजकता के उदाहरण के तौर पर ललित कला अकादमी के क्रियाकलापों को देखा जा सकता है।   
ललित कला अकादमी में इन तमाम विवादों को देखते हुए संसद में 17 दिसंबर 2013 को सस्कृति मंत्रालय से संबद्ध स्थायी समिति रिपोर्ट का स्मरण हो रहा है। संस्कृति संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने अपने 201वें प्रतिवेदन में अकादमियों के संबंध में कहा था, हमारे संस्थापकों ने संस्कृति को राजनीति से दूर रखने के लिए इन्हें स्वायत्ता दी थी, परंतु आज ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीति इसमें पिछले दरवाजे से गुपचुप तरीके से प्रवेश कर गई है। इन संस्थाओं के संस्थापकों को लेखकों और कलाकारों क समुदाय की एकता पर दृढ़ विश्वास था और आज वे इन संस्थाओं को बाधित करनेवाली समस्याओं का पूर्वानुमान नहीं लगा पाए। इसके परिणामस्वरूप प्रक्रिया में पारदर्शिता परिणाम से संबंध में जवाबदेही का अभाव है। वस्तुत: पारदर्शिता और जवाबदेही के बिना उसकी स्वयत्ता एक दोधारी हथियार बन गई है जिसका कोई भी अरनी सुविधानुसार उपयोग कर सकता है। प्रशासनिक शब्दावली में जवाबदेही का अर्थ नियंत्रण नहीं है बल्कि वह जिम्मेदारी है जिसके लिए स्वयत्तता का प्रयोग किया जाना है।....संकट की यह स्थिति संस्कृति मंत्रालय की उदासीनता, ध्यान नहीं देने और कभी कभी असाहयता वाली भूमिका के कारण और भी गंभीर हो जाती है। मंत्रालय द्वारा उनके कार्यों में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है।संसद की इस समिति ने अध्यक्ष और सचिव के बीच कार्य विभाजन को स्पष्ट करने पर भी बल दिया था क्योंकि इनके गठन के दस्तावेजों इन दोनों के अधिकारों की सीमा अस्पष्ट थी। इसका नतीजा यह होता था कि कई बार अध्यक्ष ऐसी शक्तियों का उपयोग करने की चेष्टा करते थे जो उनको प्राप्त नहीं होती है और वो रोजमर्रा के कामकाज में सीधे हस्तक्षेप करने लगते थे। ललित कला अकादमी में तो स्थिति बहुत विषम है। वहां तो लंबे समय से महा-परिषद या कार्यकारी परिषद है ही नहीं लिहाजा अराजकता ज्यादा है। अध्यक्ष के निर्देशों के कार्यान्वयित करवाने में किसी प्रकार की चूक या नियमों के उल्लंघन के लिए सचिव जिम्मेदार होते हैं इस वजह से बहुधा दोनों के बीच तनातनी चलती रहती है। ललित कला अकादमी के सचिव के बार-बार सस्पेंड होने की वजह ये भी हो सकती है। संगीत नाटक अकादमी में भी सचिव पर गाज गिरी ही थी। वहां की सचिव रही हेलेन आचार्य का मामला तो कोर्ट-कचहरी तक गया था। इस समिति ने सरकार को इन अकादमियों के संविधान में स्पष्टता लाने के लिए एक हाई पॉवर समिति बनाने को कहा था। समिति बनी भी। उसने मई 2014 में अपनी रिपोर्ट भी दे दी। रिपोर्ट में ललित कला अकादमी के अध्यक्ष का कार्यकाल पांच वर्ष से तीन वर्ष तक करने की सिफारिश की गई। साथ ही अध्यक्ष को लगातार दो कार्यकाल देने पर भी आपत्ति जताई गई थी। हाई पवॉर समिति कि सिफारिशों के आधार पर ललित कला अकादमी के नए नियमों को मंत्रालय ने 26 अप्रैल 2018 को अधिसूचित कर दिया जिसका प्रकाशन भारत के राजपत्र में 27 अप्रैल को हो गया। इस बात को भी सालभर से ज्यादा हो गए लेकिन अबतक ललित कला अकादमी के महा-परिषद का गठन नहीं हो पाया है। चेयरमैन ही वहां के सर्वेसर्वा हैं और कोई नियमित सचिव भी नहीं हैं। एक सचिव नियुक्त भी हुए थे लेकिन वो कुछ ही दिनों में इस्तीफा देकर चले गए। जाहिऱ सी बात है कि इन सबकी अनुपस्थिति में चेयरमैन को असीमित शक्तियां मिली हुई हैं।
केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार के दोबारा सत्ता में आने के बाद संस्कृति के क्षेत्र में बड़ी चुनौती है। अकादमियों की वजह से जिस तरह से विवाद उठ रहे हैं उसके पीछे कई वजहें हैं। कुछ संस्थानों में निदेशक ऐऔर चेयरमैन नहीं हैं जैसे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय जैसे महत्वपूर्ण संस्थान में नियमित निदेशक का पद महीनों से खाली है और चेयरमैन भी नहीं है। अब वक्त आ गया है कि केंद्र सरकार को एक ठोस संस्कृति नीति के बारे में विचार करना चाहिए। संस्कृति नीति के अभाव में इन सांस्कृतिक संस्थानों में तदर्थ आधार पर कामकाज हो रहा है। प्रह्लाद सिंह पटेल अनुभवी हैं और संस्कृति के क्षेत्र में रुचि लेते दिख भी रहे हैं तो उनसे ये अपेक्षा की जा सकती है कि वो देश की संस्कृति-नीति के निर्माण की दिशा में सकारात्मकता के साथ विचार करेंगे। इससे इन संस्थानों के काम-काज में तो पारदर्शिता आएगी ही भारतीय प्राच्य विद्या के संरक्षण और संवर्धन का काम भी गंभीरता से हो सकेगा।   

1 comment:

Alaknanda Singh said...

श्री अनंत व‍िजय जी, प्रह्लाद सिंह पटेल से उम्मीद तो है परंतु जब तक इन अकादम‍ियों में पारदर्श‍िता का इंतज़ाम नहीं होगा तब तक इस व‍िमर्श के कोई मायने नहीं न‍िकलेंगे ... बहुत अच्छा और व‍िस्तृत जानकारी वाला लेख ल‍िखा है।