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Sunday, September 8, 2019

वेब सीरीज के नियमन पर हो मंथन


पिछले दिनों इस तरह की खबरें आई कि सरकार वेब सीरीज पर दिखाई जानेवाली सामग्री को लेकर विचार विमर्श शुरू करने जा रही है । खबरों के मुताबिक सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि वेब सीरीज पर जो कुछ भी दिखाया जा रहा है उसको लेकर इस महीने से मंथन शुरू हो रहा है। पिछले दिनों सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड और फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से मिले थे। उस बैठक में मंत्री ने भी इस बात की ओर इशारा किया था कि सरकार जल्द ही वेब पर दिखाई जानेवाली सीरीज और उसके कंटेंट को लेकर उससे जुड़े सभी लोगों से बातचीत करनेवाली है। दरअसल पिछले दिनों कई वेब सीरीज ऐसी आईं जिनमें भयानक हिंसा और अश्लील दृश्यों की भरमार दिखाई देती है। कहानी की मांग से इतर कई निर्माताओं ने जबरदस्ती हिंसा और यौनिक दृष्यों को पेश किया। माना गया कि ये सब लोकप्रियता हासिल करने के उद्देश्य से दिखाया गया। जब इस, तरह के कंटेंट की बहुतायत होने लगी तो उसपर लेख आदि लिखे जाने लगे। इस स्तंभ में भी कई बार इस ओर इशारा किया गया। अभी पिछले दिनों नेटफ्लिक्स पर एक वेब सीरीज का दूसरा सीजन दिखाया गया था। इस सीरीज का नाम है सेक्रेड गेम्स। इसमें कई संवाद ऐसे हैं जो साफ तौर पर इसके निर्देशक की सोच को दर्शाते हैं और समाज को बांटने जैसा है। जैसे एक जगह जब एक मुसलमान अभियुक्त से पुलिस पूछताछ के क्रम में कहती है कि उसको यूं ही नहीं उठाकर पूछताछ किया जा रहा है तो अभियुक्त कहता है कि इस देश में मुसलमानों को उठाने के लिए किसी वजह की जरूरत नहीं होती है। अब इस बात पर विचार किया जाना आवश्यक है कि इस सीरीजज क निर्माता और निर्देशक इस तरह के संवाद किसी पात्र के माध्यम से सामने रखकर क्या हासिल करना चाहते हैं। इस तरह के कई प्रसंग और संवाद इस सीरीज में है। इसके पहले सीजन में भी इस तरह के अनेक दृश्य और संवाद दिखाए गए थे। मुसलमानों के मन में देश की व्यवस्था के खिलाफ एक खास किस्म के गुस्से और नफरत का प्रकटीकरण नियमित तौर पर होता रहा है। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब इसी तरह की एक वेब सीरीज आई थी लैला। इस पूरी सीरीज में हिंदू धर्म को लेकर जो भयावह तस्वीर पेश की गई थी। जिस तरह से हिंदू लड़कियों के मुसलमान लड़के से शादी करने के परिणामों की बेहद आऐपत्तिजनक तस्वीर पेश की गई थी वो निश्चित तौर पर समाज को बांटनेवाले या एक समुदाय के खिलाफ दूसरे समुदाय के मन में शंका के बीज बोने जैसा था। मुस्लिम लड़कों से शादी करनेवाली हिंदू लड़कियों के शुद्धिकरण को लेकर जिस तरह के संवाद और दृश्य पेश किए गए थे, उसको देखने के बाद स्वाभाविक तौर पर मन में यह प्रश्न उठते हैं कि इसके पीछे का एजेंडा क्या है। इसके पीछे एक खास तरह की विचारधारा का पोषण और एक दूसरी विचारधारा को पुष्ट करने की मंशा को रेखांकित किया जा सकता है। इस तरह की एजेंडा सीरीज की पहचान इसके निर्देशकों के नाम और उनके पूर्व के काम को देखकर साफ तौर पर किया जा सकता है।
इसी तरह से अगर हम देखें तो कई सीरीज में देश को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बदनाम करने की कोशिशें भी दिखाई देती हैं। एक सीरीज में तो यहां तक दिखा दिया गया है कि कश्मीर में भारतीय वायुसेना के विमान स्कूल पर बम गिराकर छात्रों को मार डालते हैं। ये कैसी क्लपनाशीलता है जिसमें एक देश की सेना को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाए। एक और सीरीज में कश्मीर की जेल का चित्रण है जिसमें ये दिखाया जाता है कि वहां का जेलर एक पाकिस्तानी लड़की का जेल में ही रेप करता है। निर्माताओं को ये मालूम होना चाहिए कि भारतीय जेल में महिला कैदियों के साथ किसी तरह की यौनिक हिंसा करना कितना मुश्किल है। इस तरह के केंटेंट हमारे देश की संस्थाओं को ना केवल बदनाम करते हैं बल्कि उनके खिलाफ जनता के मन में नफरत और जहर भी भरते हैं। कलात्मक अभिव्यक्ति के नाम पर इस तरह की छूट दी जानी चाहिए, इसपर विचार करना आवश्यक है।
समाज में नफरत के बीज बोने के अलावा सेक्रेड गेम्स में जिस तरह के अश्लील दृश्य और अप्राकृतिक यौनाचार दिखाई गए थे या दिखाए जा रहे हैं, उस तरह के दृश्यों के लिए क्या हमारा समाज तैयार है, इसपर भी गहरे मंथन और विचार विमर्श की जरूरत है। इसी तरह से लस्ट स्टोरीज में जिस तरह के यौन प्रसंगों को उभारा गया था उसको भी कलात्मक अभिव्यक्ति की श्रेणी में डालकर प्रश्न नहीं पूछना अनुचित होगा। क्या हमारा समाज पश्चिमी देशों की तरह इस बात के लिए तैयार है कि टॉपलेस नायिकाओं और रति प्रसंगों का सार्वजनिक प्रदर्शन हो। कई वेब प्लेटऑर्म तो ऐसे हैं जो अपने को हॉट और वाइल्ड एंड लस्टफुल कहकर प्रचारित भी करते हैं। सरकार को इसके नियमन के बारे में भी विचार करना चाहिए, क्योंकि फिल्मों और वेब सीरीज के लिए दोहरे मानदंड उचित नहीं है। फिल्मों में गाली हो तो उसको बीप करना होता है, बेव सीरीज पर गालियों की भरमार, फिल्मों में लंबे चुंबन दृष्यों पर कैंची और वेब सीरीज में रति प्रसंगों को फिल्माने की छूट। फिल्मों में विकृत हिंसा के दृष्यों को संपादित करने का नियम तो बेव सीरीज में हिंसा के जुगुप्साजनक दृष्यों की भरमार। अश्लील दृश्यों की भरमार वाले सीरीज दिखानेवाले ये तर्क देते हैं कि इंटरनेट पर तो कितने ही पोर्न साइट हैं जहां इस तरह की सामग्री मौजूद है तो जिनको इस तरह के दृष्य देखने होंगे वो वहां बहुत आसानी से देख सकते हैं। लेकिन इस तरह के तर्क देनेवालों को यह सोचना चाहिए कि इंटरनेट पर मौजूद पोर्न सामग्री और इस तरह के वैध प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध पोर्न को देखने में फर्क है। यहां कहानी की शक्ल में इसको पेश किया जाता है। दूसरा तर्क ये दिया जाता है कि इन प्लेटफॉर्म पर जानेवाले लोग जानते हैं कि वो क्या करने जा रहे हैं. वो इनकी सदस्यता लेते हैं, शुल्क अदा करते हैं और उसके बाद वेब सीरीज देखते हैं। तो किसी को भी क्या सामग्री देखनी है ये चयन करने का अधिकार तो होना ही चाहिए। ठीक बात है कि हर किसी को अपनी रुचि की सामग्री देखने का अधिकार होना चाहिए लेकिन उन अपरिपक्व दिमाग वाले किशोरों का क्या जिनके हाथ में बड़ी संख्या में स्मार्टफोन भी है, उसमें इंटरनेट कनेक्शन भी है और इतने पैसे तो हैं कि वो इन ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म की सदस्यता ले सके। क्या हम या इन प्लेटफॉर्म पर सामग्री देनेवाली संस्थाएं ये चाहती हैं कि हमारे देश के किशोर मन को अपरिपक्वता की स्थिति से ही इस तरह से मोड दिया जाए कि आगे चलकर इस तररह की सामग्री को देखनेवाला एक बड़ा उपभोक्ता वर्ग तैयार हो सके। इसके अलावा जो एक और खतरनाक बात यहां दिखाई देती है वो ये कि इन प्लेटफॉर्म्स पर कई तरह के विदेशी सीरीज भी उपलब्ध हैं जहां पूर्ण नग्नता परोसी जाती है। ऐसी हिंसा दिखाई जाती है जिसमें मानव शरीर को काटकर उसकी अंतड़ियां निकाल कर प्रदर्शित की जाती हैं। जिस कंटेंट को भारतीय सिनेमाघरों में नहीं दिखाया जा सकता है उस तरह के कंटेंट वहां आसानी से उपलब्ध हैं। चूंकि वेब सीरीज के लिए किसी तरह का कोई नियमन नहीं है लिहाजा वहां बहुत स्वतंत्र नग्नता और अपनी राजनीति चमकाने या अपनी राजनीति को पुष्ट करनेवाली विचारधारा को दिखाने का अवसर उपलब्ध है। इस तरह की सामग्री को जब लगातार दिखाया जाता है तो कहीं न कहीं से इसके निमयन को लेकर बात शुरू होती है।
फिछले दिनों इस तरह की वेब सीरीज दिखानेवाले कई प्लेटफॉर्म्स ने स्व नियमन करने की कोशिश की लेकिन सभी के बीच सहमति नहीं बन पाने से यह बहुत प्रभानी नहीं हो पाया है। किसी भी कंटेंट पर सेंसरशिप अंतिम कदम होना चाहिए उसके पहले सभी तरह के विकल्पों पर विचार करना होगा। क्या इस तरह की कोई ऐसी स्वयत्त संस्था बन सकती है जो इन वेब सीरीज पर दिखाए जानेवाले कंटेंट की शिकायत मिलने पर विचार करे और उसपर फैसला ले लेकिन इस संस्था को इतना अधिकार होना चाहिए कि उसके फैसले का सम्मान हो और उसको लागू करवाने के लिए उसके पास वैध अधिकार हों। अगर इस दिशा में कुछ नहीं किया गया तो इंटरनेट की इस दुनिया में अराजकता और बढ़ेगी और फिर उसको काबू करने के लिए बेहद कठोर कदम उठाने होंगे जो बेवजह विवाद को जन्म दे सकते हैं।

2 comments:

अजय कुमार झा said...

बहुत ही जरूरी विषय है और इससे पहले की बहुत देर हो जाए ये निहायत आवश्यक था कि इन पर कोई स्पष्ट दिशा निर्देश और नियम आदि बने | सार्थक आलेख के लिए शुक्रिया और आभार सर

pritpalkaur said...

सही बात है. वेब सीरीज और फिल्मों पर भी सेंसर होना ही चाहिए