अमिताभ की अदाकारी ने भारतीय फिल्म जगत को गहरे
तक प्रभावित किया। पहले तो कहानीकारों ने उनकी फिल्मी छवि को ध्यान में रखकर
कहानियां लिखीं। उनके बोलने के अंदाज को ध्यान में रखकर डॉयलॉग लिखे गए। वर्ष 1980
तक आते आते अमिताभ बच्चन की छाप हिंदी सिनेमा पर इतनी गहरी हो गई कि उनके उनके बाद
की पीढ़ी के अभिनेताओं ने उनकी अदाकारी के प्रमुख आयाम- एंग्री यंगमैन, को अपने
अभिनय का अभिन्न अंग बना लिया। संभव है कि ये निर्देशकों की या कहानी लिखने वालों
की सोच रही हो लेकिन एक पूरी पीढ़ी पर अमिताभ के अंदाज, फिल्मों में उनके
प्रदर्शन, उनकी फिल्मी छवि का असर दिखा और हिंदी फिल्मों ने उसको शिद्दत से
अपनाया। किसी भी फिल्म अभिनेता के लिए यह बहुत बड़ी बात है। अमिताभ बच्चने के बाद
के दौर के अभिनेताओं ने अपनी अलग छवि बनाने की जरूर कोशिश की लेकिन उसमें अमिताभ
की झलक लगातार दिखती रही।
मिथुन चक्रवर्ती भले ही डिस्को डांसर के तौर पर
लोकप्रिय हुए लेकिन अपनी ज्यादातर फिल्मों में वो डांसर के साथ-साथ एंग्री यंगमैन
भी होते थे। डांसर के साथ-साथ गुस्सा और मार-धाड़ अवश्य होता था। मिथुन के बाद अगर
हम अनिल कपूर की अदाकारी को देखे तो उसमें भी एंग्री यंगमैन की छवि साफ तौर पर
दिखती है। फिल्म मशाल में अनिल कपूर के अभिनय के कई भाव को अमिताभ की अभिनय की छाप
और छाया के तौर पर लक्षित किया जा सकता है। हलांकि बाद की फिल्मों में अनिल कपूर
ने एंग्री यंगमैन की छवि के साथ एक खिलंदड़ापन जोड़ा लेकिन उसमें भी अमिताभ के
अभिनय के कई शेडस दिखते हैं। अगर आप याद करें फिल्म शोले में अमिताभ का किरदार, जब
वो तांगे पर पीछे बैठे होते हैं और धर्मेन्द्र आगे हेमा मालिनी के साथ । तांगे पर
जिस तरह का संवाद होता है वैसा ही संवाद फिल्म रामलखन में अनिल कपूर और माधुरी
दीक्षित के बीच देखा जा सकता है। सिर्फ ये दो ही नहीं बल्कि संजय दत्त की फिल्मी छवि
भी प्रयत्नपूर्वक एंग्री यंगमैन की बनाई गई। उस छवि को अलग दिखाऩे के लिए उसको
थोड़ा संवेदनशील दिखाया गया। जैकी श्राफ ने तो पूरी तरह से एंग्री यंगमैन की छवि
को अपनाया और सफल भी रहे। अमिताभ के चलने तक का स्टाइल आप जैकी की चाल में देख
सकते हैं। इस छाप को अब के नायकों पर भी देख सकते हैं। अमिताभ ने अपने अभिनय में
जितने प्रयोग किए उतना कम ही अभिनेताओं ने किया ज्यादातर तो अपनी सफल फिल्मी छवि
की गिरफ्त में ही जकड़ कर रह गए।
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