दिल्ली के विज्ञान भवन में गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन होना था। एक दिन अचानक उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिखर सम्मेलन के संयोजक नटवर सिंह से पूछा कि क्या गुटनिरपेक्ष देशों के राष्ट्राध्यक्षों और प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को एशियाड विलेज के फ्लैट्स में रखा जा सकता है? नटवर सिंह ने छूटते ही कहा कि ये कैसे संभव है। इंदिरा गांधी ने अपनी गंभीर आवाज में कहा कि आप इस संभावना को तलाशिए और रिपोर्ट करिए। इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी, पीसी एलेक्जेंडर, जी पार्थसारथी और उस समय के दिल्ली के एलजी जगमोहन को एशियाड विलेज जाकर सुविधाओं को जायजा लेने का हुक्म दिया। सबलोग एशियाड विलेज पहुंचे। फ्लैट्स आदि देखने के बाद न तो एलेक्जेंडर कुछ बोल रहे थे न ही जगमोहन। सब राजीव गांधी के बोलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। पार्थसारथी ने कहा कि एशियाड विलेज के फ्लैट्स में विदेश मंत्रियों को रुकवाया जा सकता है। नटवर सिंह इसके लिए राजी नहीं थे। राजीव कुछ बोल नहीं रहे थे। कोई फैसला नहीं हो पा रहा था। दरअसल राजीव गांधी के कुछ दोस्तों ने विदेशी अतिथियों को एशियाड विलेज में रुकवाने का आयडिया दे दिया था। उन्होंने इंदिरा जी को। बात फैलने लगी थी कि विदेशी प्रतिनिधिमंडल को एशियाड विलेज में रुकवाया जाएगा। ये बात उन देशों के राजदूतों तक भी पहुंची। उनमें से कइयों ने नटवर सिंह को स्पष्ट कर दिया कि अगर ऐसा होगा तो कोई नहीं आएगा। बात इंदिरा जी तक पहुंची और मामला किसी तरह से टला।
इस तरह के सैकड़ों दिलचस्प किस्से नटवर सिंह के पास थे। जब भी आप उनसे उनके दिल्ली के जोरबाग वाले घर में मिलते और वो मूड में होते तो किस्सों का दौर आरंभ हो जाता। उनकी स्मरण शक्ति इतनी तेज थी और घटनाओं का वर्णन इतने दिलचस्प अंदाज में करते थे कि आप घंटों उनको सुन सकते थे। एक बार अपने घर पर हुई मुलाकात नें उन्होंने ऐसा ही एक किस्सा सुनाया था जो इंदिरा गांधी, फिडेल कास्त्रो और यासिर अराफात से जुड़ा था। 1983 में दिल्ली में गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन के दौरान फिलीस्तीनी नेता यासिर अराफात इस बात से नाराज हो गए कि उनको सम्मेलन में जार्डन के राजा के बाद बोलने का अवसर मिला। इसको अराफात ने अपना अपमान माना और सम्मेलन छोड़कर वापस लौटने की बात की। नटवर सिंह ने तुरंत इंदिरा गांधी को सूचित किया। इंदिरा गांधी ने फिडेल कास्त्रो से बात की। इंदिरा और कास्त्रो दोनों फौरन विज्ञान भवन पहुंचे और अराफात को लेकर एक कमरे में गए। यासिर गुस्से से लाल पीले हो रहे थे। कास्त्रो और इंदिरा गांधी ने उनकी बातों को थोड़ी देर तक सुना। कास्त्रो ने अराफात से पूछा कि आप इंदिरा को अपना दोस्त समझते हो। गुस्से में अराफात ने कहा कि ये दोस्त नहीं मेरी बड़ी बहन है। इतना सुनते ही फिडेल बोले कि फिर छोटे भाई की तरह बर्ताव करिए और चुपचाप दोपहर के सत्र में शामिल होइए। एक बड़ा कूटनीतिक मसला हल हो गया। नटवर सिंह के निधन से दिल्ली में रहनेवाला एक बड़ा किस्सागो चला और साथ चली गईं उनकी स्मृतियों में बसी घटनाएं।
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