Translate

Saturday, February 8, 2025

वैश्विक षडयंत्र पर अस्थायी ब्रेक


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के बजट सत्र आरंभ होने के पहले अपने पारंपरिक वक्तव्य में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही जिसको रेखांकित किया जाना आवश्यक है। उसकी चर्चा आगे करते हैं, उसके पहले ये बताना आवश्यक है कि अपने पारपंरिक भाषण का आरंभ मोदी ने समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी की प्रार्थना के साथ किया। बजट सत्र के पहले प्रधानमंत्री का मां लक्ष्मी को याद करना भारतीय परंपरा का पालन और छद्म पंथ निरपेक्षता का निषेध है। बजट सत्र के पहले मां लक्ष्मी को याद करना प्रधानमंत्री का लालकिला की प्राचीर से लिए गए पंच प्रण के अनुरूप भी है। विकसित भारत के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 में लाल किला की प्राचीर से पंच प्रण लिए थे। उसमें से एक प्रण था गुलामी की सोच से आजादी। बजट सत्र के पहले शायद ही पहले किसी प्रधानमंत्री ने देवी लक्ष्मी का स्मरण किया हो। मोदी ने भारतीयता और धर्म को स्थापित करने के कई छोटे छोटे उपक्रम किए जिसने जनता के मन को छुआ। संसद की सीढ़ियों के सामने खड़े होकर मां लक्ष्मी का स्मरण करना, तीसरी पारी के पहले पूर्ण बजट को विकसित भारत का आधारो बजट बताना महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने देश के सर्वांगीण विकास के संकल्प को लेकर मिशन मोड में आगे बढ़ने की बात की। 

अब प्रधानमंत्री के संक्षिप्त भाषण में कही गई उस बात की चर्चा कर लेते हैं जिसका संकेत ऊपर दिया गया है। उन्होंने कहा कि 2014 से लेकर अबतक शायद ये संसद का पहला सत्र है जिसके एक दो दिन पहले कोई विदेशी चिंगारी नहीं भड़की। विदेश से आग लगाने की कोशिश नहीं हुई है। 2014 से मैं देख रहा हूं कि शरारत करने के लिए लोग बैठे हुए हैं और यहां उन शरारतों को हवा देनेवालों की कोई कमी नहीं है। ये पहला सत्र जिसमें किसी भी विदेशी कोने से कोई चिंगारी नहीं उठी। प्रधानमंत्री जब ये बात कह रहे थे तो उनके चेहरे पर एक व्यंग्यात्मक मुस्कान भी थी। बजट सत्र के पहले ना तो किसी हिंडनबर्ग की कोई रिपोर्ट आई ना ही विदेशी मीडिया में भारत को लेकर कोई निगेटिव रिपोर्ट आई। ना ही विपक्षी दलों के नेताओं विदेश की धरती पर कोई सरकार विरोधी बयान दिया। हिंडनबर्ग, जिसने उद्योगपति अदाणी के खिलाफ सनसनीखेज रिपोर्ट प्रकाशित की थी, अपनी दुकान समेटेने की घोषणा कर चुका है। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद उस देश में सक्रिय भारत विरोधी शक्तियों को झटका लगा है। अमेरिका के जो संगठन भारत में अथिरता फैलाने के लिए धन मुहैया करवाते थे वो भी ट्रंप के गद्दी संभालने के बाद से सशंकित हैं। ऐसा नहीं है कि उन्होंने अपने प्रयासों को रोक दिया होगा। वो अलग तरह की रणनीति बनाने में जुटे होंगे ताकि भारत को अस्थिर किया जा सके। अमेरिका से भारत की संस्थाओं को धन भेजने के नए तरीकों की खोज जारी होगी। गृह मंत्रालय ने भी समाजसेवी संगठनों को विदेश से चंदा लेने पर कानून सम्मत होने की ना सिर्फ बात की है बल्कि उसको कानून सम्मत बनाया। इसके अलावा ना तो किसी कोने से मानवाधिकार की बात आई ना ही किसी संस्था ने संसद के बजट सत्र के पहले धार्मिक असिष्णुता की बात की।

प्रधानमंत्री जब ऐसा कह रहे हैं तो ये अकारण नहीं है। भारत विरोधी वातावरण बनाने में विदेश से सक्रिय संगठनों और इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म्स की भी बड़ी भूमिका रहती है। भारत विरोधी ताकतें इनका उपयोग करके देश में अस्थिरता फैलाने का कार्य करती रही हैं। 2015 में जब कुछ लेखकों ने सरकार के खिलाफ असहिणुता का आरोप लगाकर पुरस्कार वापसी अभियान चलाया था तब उस तरह का संगठित विरोध को देश ने पहली बार देखा था। एक एक करके खास विचारधारा के लेखक और कलाकार पुरस्कार वापसी करते और पहले इंटरनेट मीडिया पर ये बात तेजी से फैलाई जाती। न्यूज चैनलों पर घंटों चर्चा होती। इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म सरकार के खिलाफ अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती। होता ये है कि ये संस्थाएं अपना अलगोरिदम बदल देती हैं। सरकार के विरोध वाली पोस्ट अधिक दिखती हैं और समर्थन वाली पोस्ट को बाधित कर देते हैं। पुरस्कार वापसी के समय पूरे देश ने इसको देखा था, नागरिकता संशोधन कानून के समय भी और उसके बाद भी कई अवसरों पर इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म का उपयोग सरकार के विरोध में माहौल बनाने के लिए किया गया था। छोटी घटना को इतना बड़ा कर दिया जाता है कि लगने लगता है कि जनमत सरकार के विरोध में है। सिर्फ अलगोरिदम बदलने से माहौल नहीं बनता है इसके लिए पूरी योजना बनाई जाती है। इंटरनेट मीडिया के माध्यम से देश में सत्ता विरोधी माहौल बनाया जाता है। छोटी सी घटना को इतना बड़ा करवाया दिया जाता है कि लगता है कि देश के सामने सबसे बड़ा मुद्दा वही है। याद करना चाहिए कि 2015 के बाद के कुछ वर्षों में देश में सबसे बड़ा मुद्दा लिंचिंग को बना दिया गया था। फिर मांसाहारियों के खिलाफ वातावरण बनाकर सरकार को घेरने की कोशिश की गई। छिटपुट घटनाओं के आधार पर ऐसा माहौल बनाया गया कि भारतत में अल्पसंख्यकों या मुसलमानों को जानबूझकर टार्गेट किया जा रहा है। समय के साथ ये बात सामने आई कि संगठित तौर पर मुसलमानों के खिलाफ कोई अभियान जैसा नहीं चलाया गया। कुछ आपराधिक घटनाएं घटित हुई थीं जिसको उसी हिसाब से निबटाया भी गया।

इन सबके के अलावा एक और खेल जाता रहा है, वो है लोकतंत्र को बचाने का। लोकतंत्र के नाम पर इस तरह का खेल खेला जाता रहा है जिससे प्रत्यक्ष रूप से तो ये लगता है कि लोगों की आकांक्षाओं को व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं को बचाने कके लिए अभियान चलाया जा रहा है लेकिन होता उसके उलट है। लोकतंत्र कमजोर होता है। अरब स्प्रिंग के नाम से हुए आंदोलन को याद करना चाहिए। 2010 के आसपास मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका के कुछ देशों के शासकों को तानाशाह बताकर डिजीटल के माध्यम से उनको गिराने की व्यूह रचना कि गई। 17 दिसंबर 2010 में ट्यूनीशिया में एक ठेलेवाले के साथ दुर्व्यवहार को आधार बनाकर पूरे देश में सत्ता विरोध की ऐसी हवा बनाई गई कि वहां के राष्ट्रपति को 14 जनवरी 2011 को देश छोड़कर भागना पड़ा। एक मानवाधिकार कार्यकर्ता को राष्ट्रपति बनाया गया। वहां इस्लामिक कट्टरपंथियों, कथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों और अरब स्प्रिंग के पहले के राष्ट्रपति के समर्थकों में संघर्ष आरंभ हुआ जो लंबा चला। सिर्फ ट्यूनीशिया ही क्यों दुनिया के कई देशों में इस तरह से सत्ता परिवर्तन की स्क्रिप्ट लिखी गई और उसपर अमल भी हुआ। बंगलादेश में भी लगभग यही प्रविधि अपनाई गई। 2024 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म्स ने अपना अलगोरिथम बदला था। मोदी विरोधियों को प्रमुखता दी गई थी। इस बदलाव और उसके प्रभाव पर शोध होना चाहिए। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी मोदी को तानाशाह बताया गया था। ये भ्रम फैलाया गया था कि उनकी पार्टी संविधान बदलने जा रही है। क्या ऐसा कुछ हुआ। नहीं। विदेश में बैठे कुछ लोग और संस्थाएं भले ही थोड़े समय के लिए चुप हैं लेकिन ये स्थायी होगा इसमें संदेह है। 

(नईदुनिया में रविवार और दैनिक जागरण में सोमवार को प्रकाशित)

No comments: