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Saturday, February 22, 2025

भारत और हिंदुत्व के विरुद्ध आर्थिक मदद


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक बयान ने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया है। ट्रंप ने कहा कि भारत में लोकसभा चुनाव 2024 के समय मतदाताओं की संख्या बढ़ाने के लिए अमेरिका की तरफ से करोड़ों डालर दिए गए। उन्होंने ये भी प्रश्न उठाया कि क्या ये धन भारत में सत्ता परिवर्तन के लिए भेजा गया था। राष्ट्रपति ट्रंप के बयान के बाद इस बात की फैक्ट चेकिंग भी आरंभ हो गई है कि अमेरिका से धन भारत भेजा गया या नहीं। दरअसल अमेरिका की एक एजेंसी है यूनाइटेड स्टेटस एजेंसी फार इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) जो दुनिया के देशों को अलग अलग कारणों से आर्थिक मदद करता है। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, लोकतंत्र को मजबूत करने आदि के नाम पर धन दिया जाता है। अधिकतर मामलों में ये आर्थिक मदद स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से की जाती है। कई बार सरकारों को भी धन दिया जाता है कि ताकि वो किसी विशेष कार्यक्रम को चला सकें। प्रश्न ये नहीं है कि अमेरिका से लोकसभा चुनाव के समय धन आया कि नहीं प्रश्न तो ये है कि भारत की जिन संस्थाओं को पूर्व में अमेरिका की एजेंसी यूएसएआईडी के माध्यम से धन मिला उनका इतिहास कैसा है। क्या वो भारत में किसी खास विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए काम करते रहे हैं। क्या वो किसी धर्म विशेष के प्रचार प्रसार में लगी संस्थाएं हैं। जिन गैर सरकारी संगठनों को अमेरिका से पूर्व में धन मिला था क्या उन संगठनों के कर्ताधर्ता किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए हैं। जब भारत में चुनाव के पहले मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा था और ये नैरेटिव गढा जा रहा था कि मोदी सरकार फासिस्ट है तो इस पूरी व्यवस्था के साथ जो लोग थे उनसे जुड़ी संस्थाओं को यूएसएआईडी से कितना धन मिला था। अगर इन बातों की पड़ताल करेंगे तो पूरी तस्वीर साफ हो जाएगी। 

भारतीय चुनव के फंडिंग के पहले हमें जरा वैश्विक राजनीति के विभिन्न कोणों को समझना होगा। 2024 में पूरी दुनिया के 60 देशों में चुनाव होनेवाले थे लेकिन मतदाताओं की संख्या के हिसाब से भारत में सबसे बड़ा चुनाव होने जा रहा था। वैश्विक मंच पर भारत एक शक्ति के रूप में उभर रहा है और भूरणनीति और भूराजनीति की परिधि से केंद्र की ओर बढ़ रहा है। रूस यूक्रेन युद्ध या इजरायल हमास संघर्ष के दौरान भारत ने जिस प्रकार का स्टैंड लिया उससे पूरी दुनिया की निगाहें भारत पर टिकीं। राजनीति में भारत के महत्व बढ़ने और आर्थिक रूप से संपन्न होने से वैश्विक समीकरणों पर असर पड़ा। भारत के लोकसभा चुनाव को लेकर दुनिया के देशों में उत्सुकता थी। भी जानना चाहते थे कि सरकार किसकी बनेगी। मोदी सरकार की विदेश नीति कई विकसित देशों को असहज कर रही थी। भारत ने अपने हितों को आगे रखना आरंभ कर दिया था। चुनाव में अगर जनता किसी अन्य दल को चुनती तो इसका असर वैश्विक भूरणनीति और भूराजनीति पर पड़ता। जी 20 सम्मेलन के दौरान जिस प्रकार से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को मदर आप डेमोक्रेसी कहा और उसको वैश्विक मंच पर मजबूती से रखा उसने भी लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करनेवाले अमेरिका को असहज किया था। अमेरिका के कुछ धनकुबेर भारत में मोदी सरकार को हटाना चाहते थे। उन्होंने सार्वजनिक रूप से भी इस तरह का बयान भी दिया था। कई संस्थाएं इस कार्य में लग गई थीं। वैश्विक स्तर पर मोदी सरकार के खिलाफ नैरेटिव बनाने में जुटी । आपको याद दिलाते चलें कि 2021 के सितंबर में अमेरिका में एक आनलाइन सम्मेलन हुआ था जिसको डिसमैंटलिंग हिदुत्व का नाम दिया गया था। इस सम्मेलन में भारत से जिन वक्ताओं का नाम था उनमें से अधिकतर 2015 में असहिष्णुता के मुद्दे पर पुरस्कार वापसी का षडयंत्र भी रचा था। इनमें से जुड़े कई लोगों की संस्थाओं या वो जिन संस्थाओं से जुड़े हैं उसको अमेरिका से फंडिंग मिलने की बात सामने आ रही है। इस तरह के कई कार्यक्रम वैश्विक स्तर पर चलाए जिसके उद्देश्य मोदी सरकार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाने पर लेना था। 

यूएसएआईडी ने उन संस्थाओं को भी मदद की जो भारत में मतांतरण के कार्य में लगे हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़ और यहां तक कि मणिपुर में भी सक्रिय हैं। मणिपुर में जिस तरह हिंसा हुई और जिस तरह से वैश्विक स्तर पर भारत को बदनाम करने के लिए एक नैरेटिव बनाया गया उसके पीछे की मंशा को भी समझना चाहिए। ये सब लोकसभा चुनाव के आसपास हो रहा था। कांग्रेस से जुड़ी रहीं एक महिला ने महिलाओं के विकास के नाम पर संस्था बनाई। उनको पद्मभूषण से सम्मानित भी किया गया और कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा की सदस्यता भी दी गई। उस संस्था को यूएसएआईडी ने आर्थिक मदद की थी। बाद में उनको मैगासेसे सम्मान भी मिला। उस फाउंडेशन को भी मदद दी गई जो कश्मीर को विवादित क्षेत्र बताता रहा है। इस नैरेटिव को वैश्विक मंच प्रदान करता रहा है। एशिया में काम करने के नाम पर इस फाउंडेशन को करोडो डालर की मदद दी गई। तरह तरह की संस्थाएं भी बनाई गईं। कोई भारत में चुनाव सुधार के नाम पर तो कोई मतदाताओं को बढ़ाने के नाम पर आर्थिक मदद लेते रहे। जार्जजटाउन विश्वविदयालय को भी मदद दी गई। ये विश्वविद्यालय भारत और हिंदुत्व के खिलाफ नैरेटिव बनाने में लगा रहा है। इस विश्वविद्यालय का ब्रिज इनेशिएटिव नाम से चलनेवाले कार्यक्रम को अगर ध्यान से देखा जाए तो आपको उस नैरेटिव की सचाई नजर आ जाएगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अर्धसैनिक संगठन बताने का नैरेटिव यहीं गढ़ा गया। इसको अमेरिकी थिंक टैंक और खुफिया एजेंसियों का समर्थन भी बताया जाता है। अब यहीं से संयोगों का आरंभ भी होता है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी अमेरिका जाते हैं तो इस विश्वविद्यालय से संबद्ध संस्था ना सिर्फ उनका कार्यक्रम करवाती है बल्कि भारत में लोकतंत्र को लेकर विवादित बयान भी वहीं से आता है। ये विश्वविद्यालय घोषणा करता है कि उसके यहां से ग्रेजुएट करनेवाले छात्र अमेरिकी खुफिया एजेंसी के लिए काम करते हैं। अमेरिका में इसको स्पाई फैक्ट्री के नाम भी जाना जाता है। धर्मिक स्वतंत्रता के नाम पर इस विश्वविद्यालय से जुड़े प्रो नुरुद्दीन ने चुनाव के पहले मणिपुर और भारत में इस्लामोफोबिया के नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी। इसके अलावा मोदी मिराज, न्यू स्टडी इंडीकेट्स डिक्लाइन इन इंडियाज ग्लोबल रेपुटशन अंडर बीजेपी नाम से एक रिपोर्ट का सहलेखन भी नुरुद्दीन ने किया। इस रिपोर्ट को लोकसभा चुनाव को प्रभावित करनेवाली रिपोर्ट के तौर पर देखा गया था। बताया जाता है कि इस रिपोर्ट को फ्रेंड्स आफ डेमोक्रेसी ने स्पांसर किया था। इस संस्था को भी यूएसएआईडी से आर्थिक मदद मिलती है। यूएसएआईडी की फंडिंग का ऐसा मकड़जाल है जिसको समझने और समझाने के लिए पूरी किताब लिखी जा सकती है। अब समय आ गया है कि भारत सरकार इस तरह के प्रकल्पों पर नजर रखे और समय समय पर उसको उजागर भी करते रहे। जिन व्यक्तियों या संस्थाओं को लोकतंत्र या धार्मिक सहिष्णुता के नाम पर मदद मिलती है उनपर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।    

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