देश को स्वाधीन हुए एक वर्ष होने को था। स्वाधीनता पूर्व हिमांशु राय और देविका रानी ने जिस बांबे टाकीज की स्थापना की थी उसको चलाने का दायित्व अशोक कुमार ने संभाल लिया था। अशोक कुमार के सामने बांबे टाकीज को फिर से सफल बनाने की चुनौती थी। अशोक कुमार को भूतों के किस्से में काफी रुचि थी। उनके नजदीकी बहुधा अपने साक्षात्कारों में इस बात का उल्लेख करते हैं कि अशोक कुमार को भूतों और पुनर्जन्म में विश्वास था। वो काफी समय से भूत को केंद्रीय थीम लेकर एक फिल्म बनाना चाहते थे। 1948 के मध्य की बात होगी। एक दिन बांबे टाकीज के कुछ कर्मचारी अशोक कुमार के पास पहुंचे और बताया कि परिसर में उन्होंने हिमांशु राय के भूत को देखा है। इसको सुनकर अशोक कुमार की भूत केंद्रित फिल्म बनाने की इच्छा और बलवती हो गई। उसी वर्ष उनके साथ एक और घटना घटी। वे बांबे (अब मुंबई) के निकट एक भूत बंगले के नाम से मशहूर घर में कुछ समय बिताने गए। एक दिन रात में जब वो सोने जा रहे थे तो दरवाजे पर एक महिला ने दस्तक दी। उसने अपनी गाड़ी खराब होने की बात कहकर मदद मांगी। गाड़ी ठीक नहीं की जा सकी। वो गाड़ी वहीं छोड़कर चली गई। देर रात शोर शराबे से अशोक कुमार की नींद खुली। उन्होंने देखा कि वही गाड़ी उनके घर के बाहर खड़ी है। उसमें एक व्यक्ति की लाश पड़ी है। सुबह अशोक कुमार ने अपने नौकर से रात की घटना के बारे में पूछा। नौकर ने उनको बताया कि रात में तो ऐसा कुछ घटा ही नहीं, आप तो आराम से सो रहे थे। वो सपना होगा। घर के बाहर कोई गाड़ी नहीं थी। परेशान अशोक कुमार स्थानीय थाने पहुंचे थे। पुलिसवाले ने पूरी बात सुनने के बाद बताया कि 14 साल पहले इस तरह की एक वारदात वहां हुई थी। एक महिला हत्या करने के बाद लाश गाड़ी में छोड़कर भाग गई थी। भागने के क्रम में दुर्घटना हुई और उसकी मौत हो गई।
अशोक कुमार ने
बांबे लौटकर ये पूरा किस्सा कमाल अमरोही को बताया। कमाल अमरोही ने इसके आधार पर एक
फिल्मी प्रेम कहानी गढ़ी। इस तरह से आरंभ होती है फिल्म महल। कहानी तैयार होने के
बाद बांबे टाकीज के कर्ताधर्ता चाहते थे कि इस फिल्म के लीड रोल में अशोक कुमार के
साथ अभिनेत्री सुरैया को लिया जाए। कमाल अमरोही मधुबाला के नाम पर अड़े रहे। अंत
में उनकी ही चली क्योंकि वो महल के निर्देशक बनाए जा चुके थे। फिल्म की शूटिंग
आरंभ हुई। अक्तूबर 1949 में फिल्म रिलीज की गई। दर्शकों ने इस फिल्म को खूब पसंद
किया। इस फिल्म से दो सितारे हिंदी फिल्माकाश पर चमके। मधुबाला और लता मंगेशकर।
फिल्म की सफलता ने मधुबाला को शीर्ष अभिनेत्री की पंक्ति में खड़ा कर दिया। लता
मंगेशकर का गाया गीत, आएगा आने वाला बेहद लोकप्रिय हुआ। फिल्म में कई बार इस गीत
के हिस्से का निर्देशक ने उपयोग किया है। फिल्म की थीम के हिसाब से खेमचंद प्रकाश
ने संगीत बनाया। आज भी अगर कोई सस्पेंस सीन दिखाना होता है तो महल का बैकग्राउंड
म्यूजिक या उसकी तर्ज पर बनाए गए म्यूजिक का ही उपयोग होता है। खेमचंद प्रकाश जब
आएगा, आएगा आनेवाला गीत रिकार्ड कर रहे थे तो लता की आवाज के बावजूद उनके मन-मुताबिक
प्रभाव पैदा नहीं हो पा रहा था। लता बार-बार माइक पर गातीं। खेमचंद संतुष्ट नहीं
हो रहे थे। वो गीत के आरंभिक को दूर से आई आवाज जैसा रिकार्ड करना चाह रहे थे। अचानक
उनके दिमाग में एक आयडिया आया। उन्होंने लता को माइक से दूर जाने को कहा और गाते
हुए माइक तक आने को कहा। वो चाहते थे कि गीत की पंक्ति, खामोश है जमाना, चुपचाप
हैं नजारे दूर से आती हुई लगे और जैसे ही गायिका आएगा आएगा आनेवाला तक पहुंचे तो
वो माइक की समान्य आवाज लगे। लता को माइक से दूर जाकर गाते हुए इस तरह माइक तक आना
पड़ता था कि आएगा आएगा माइक पर गा सके। लता मंगेशकर ने अपने एक इंटरव्यू में इस
प्रसंग की चर्चा की थी। उन्होंने कहा कि तब तकनीक इतना उन्नत नहीं था और म्यूजिक
डायरेक्टर अपने हुनरे से गानों को सजाते थे। कई बार के रिहर्सल के बाद खेमचंद
प्रकाश संतुष्ट हुए। आज 75 वर्षों बाद भी ये गाना लोगों की जुबां पर है।
फिल्म में
मधुबाला का चरित्र ऐसा गढ़ा गया जिसकी मासूम आंखों से मुहब्बत टपकती थी। चेहरे पर
एक भोलापन और प्यार की चमक लिए अभिनेत्री जब पर्दे पर आती तो नायक के साथ दर्शक
उसके आकर्षण में बंध जाता। मधुबाला की उम्र भले ही उस समय 16 वर्ष के आसपास थी
लेकिन वो एक दर्जन से अधिक फिल्मों में काम कर चुकी थी। अभिनय की बारीकियां उसको
पता थीं। इस फिल्म में उसके संवाद अपेक्षाकृत कम हैं। उनकी उपस्थिति और आंखों से
बहुत कुछ कह जाना प3भाव छोड़ता है। कमाल अमरोही ने भले ही किस्से का दुखांत रचा, लेकिन
जिस तरह के संवाद फिल्म के आखिरी सीन में अशोक कुमार और उनके दोस्त के बीच है वो प्यार
की उष्मा से भरपूर है। बिमल राय की एडिटिंग को भी रेखांकित किया जाना चाहिए। कानपुर
और इलाहाबाद ( अब प्रयागराज) के बीच चलनेवाली इस हारर मूवी में एक भी हत्या नहीं
होती है लेकिन रहस्य और रोमांच भरपूर रूप से बरकरार रहता है।
No comments:
Post a Comment