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Sunday, November 9, 2025

वादा तो निभाया


फिल्म जानी मेरा नाम आज से करीब 55 साल पहले प्रदर्शित हुई थी और जबरदस्त हिट रही थी। इस फिल्म से कई बेहद दिलचस्प कहानियां जुड़ी हैं। अभी बिहार विधान सभा के चुनाव चल रहे हैं तो सबसे पहले बिहार से जुड़ा एक किस्सा। शूटिंग के लिए हेमा मालिनी और देवानंद नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों के पास चलनेवाले रोपवे पर रोमांटिक सीन शूट कर रहे थे। नीचे शूटिंग देखनेवालों की भीड़ जमा थी। अचानक रोपवे का केबिन रुक गया। पता चला कि बिजली कट गई है। सीढ़ी लगाकर देवानंद और हेमा को नीचे उतारा गया। शूटिंग देखनेवालों की भीड़ के बीच पुलिस ने घेरा बनाया। जब दूसरा सीन शूट होने लगा तो किसी ने देवानंद को बताया कि भीड़ के आगे कुर्ता पायजामा पहने एक व्यक्ति खड़े हैं वो जयप्रकाश नारायण हैं। वो शूटिंग देखने आए हैं। देवानंद ने चौंक कर उनकी ओर देखा। नजरें मिलीं। जयप्रकाश जी मुस्कुरा रहे थे। फिर दोनों मिले इस प्रसंग की चर्चा देवानंद ने अपनी आत्मकथा में की है। दोनों के बीच इस फिल्म के दौरान हुई भेंट एक रिश्ते में बदली और देवानंद ने इमरजेंसी में तमाम दबाव के बावजूद इंदिरा गांधी का समर्थन नहीं किया। 

ये तो हुई शूटिंग की बात। फिल्म बनाने के निर्णय के पहले भी काफी रोचक घटनाएं हुईं। इस फिल्म के प्रोड्यूसर थे गुलशन राय। इसके पहले उनकी फिल्म फ्लाप रही थी। उनके मित्र बी आर चोपड़ा ने उनको सलाह दी कि वो फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन का ही काम किया करें। ये बात गुलशन राय को चुभ गई। उन्होंने तय किया कि वो एक ऐसी फिल्म जरूर बनाएंगे जो हिट हो। गुलशन राय का ज्योतिष में विश्वास था। वो पंजाब के होशियारपुर जाया करते थे। उन दिनों होशियारपुर में कई ज्योतिषी रहते थे जो महर्षि भृगु की परंपरा से खुद को जोड़ते हुए जन्मकुंडली बनाते थे। उनमें से एक ज्योतिष से गुलशन राय ने अपनी सफलता के बारे में जानना चाहा। उनको बताया गया कि गोल्डी नाम का एक व्यक्ति आपकी फिल्म बनाएगा तो बहुत हिट होगी। गुलशन राय की भी महर्षि भृगु में आस्था थी। आप याद करें उनकी फिल्मों में त्रिमूर्ति फिल्म्स के लोगो के पहले भृगु की तस्वीर आती थी। होशियारपुर से लौटकर उन्होंने गोल्डी (विजय आनंद) से बात की और फिल्म बनाना तय हुआ। विजय आनंद इस फिल्म का नाम ‘दो रूप’ रखना चाहते थे। गुलशन राय ज्योतिष और अंक गणना के हिसाब से फिल्म का नाम ज शब्द से रखना चाहते थे। आखिरकार फिल्म का नाम जानी मेरा नाम रखा गया। फिल्म में प्रेमनाथ का चयन भी ज्योतिष के कारण ही हुआ। प्रेमनाथ लगातार गोल्डी को फिल्म के लिए मना कर रहे थे। एक दिन गोल्डी उनसे मिलने पहुंच गए। अनीता पाध्ये ने लिखा है कि अचानक प्रेमनाथ को याद आया कि उनको हिमालय से आए एक ज्योतिषी ने कहा था कि उनको अगर किसी फिल्म का प्रस्ताव मिले तो मना मत करना। इसके बाद उन्होंने चेतन आनंद को स्वीकृति दे दी। 

राय ने फिल्म की नायिका के लिए हेमा का नाम सुझाया। गोल्डी को स्लिम नायिका चाहिए थी। उनको हेमा मालिनी के चलने का अंदाज और दक्षिण भारतीय उच्चारण भी नहीं भा रहा था। जब वो दोनों हेमा से मिले तो गोल्डी की राय बदल गई। हेमा मालिनी फिल्म में नायिका के तौर पर ले ली गईं। हीरो तो देवानंद थे ही। हीरो के भाई की खोज आरंभ हुई। गोल्डी को लगा कि प्राण से बेहतर कोई हो नहीं सकता। वो प्राण से मिलने पहुंचे। प्राण ने अपने अंदाज में डायरी उनके सामने रक दी और कहा कि जो डेट खाली हो ले लो। इतना सुनते ही गोल्डी वहां से उठे और चले गए क्योंकि उनको पता ता कि ये प्राण का मना करने का तरीका था। उधर प्राण को लग रहा था कि गोल्डी मिन्नतें करेंगे। जब ऐसा कुछ नहीं हुआ तो प्राण ने चकित होकर अपने सेक्रेट्री से कहा कि इस आदमी में कुछ तो बात है, इसको डेट्स दे दो। पद्मा खन्ना को चुने जाने की भी एक रोचक कहानी है। पद्मा जब चेतन आनंद से मिलने आईं तो उस समय् डंसर के रोल के लिए संघर्ष कर रही थीं। गोल्डी से जब मिलीं तो उनके दांत पान खाने के कारण लाल थे। बाल बिखरे हुए थे। बगैर मेकअप आदि के चेहरा भी पसीने से तरबतर था। चेतन आनंद ने पद्मा खन्ना से कहा कि डांसर का रोल तो दूंगा लेकिन पहले किसी अच्छे डेंटिस्ट से अपने दांत साफ करवाओ। वेस्टर्न कपड़े पहनो और पाश्चात्य डांस सीखो। पद्मा खन्ना ने ये सब किया। और आप याद करिए जानी मेरा नाम का पद्मा खन्ना पर फिल्माया गीत- हुस्न के लाखों रंग कौन सा रंग देखोगे। सेंसर बोर्ड ने इस गाने पर आपत्ति भी की थी। इन सबके बाद जब फिल्म रिलीज हुई तो जनता ने इसके गानों को, इसके फिल्मांकन को, इसके संवाद को, पात्रों के अभिनय को बेहद पसंद किया। हेमा मालिनी के करियर को नई राह मिली तो देवानंद भी नई ऊंचाई पर पहुंचे। पद्मा खन्ना को तो पहचान ही मिली। कहना ना होगा कि ये फिल्म जितनी अच्छी थी उतनी ही दिलचस्प है इसके बनने की कहानी।  


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