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Tuesday, November 25, 2008

अंग्रेजी अखबारों का उपेक्षा भाव

भारतीय भाषाओं के लिए दिया जानेवाला पुरस्कार ज्ञानपीठ इस बार हिंदी के वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण को देने का ऐलान किया गया है । ये पुरस्कार कुंवर जी को वर्ष दो हजार पांच के लिए दिया गया है । कुंवर जी को ये पुरस्कार देकर ज्ञानपीठ का ही सम्मान बढ़ा है । लेकिन में ये इस पुरस्कार की सूचना देने के लिए नहीं लिख रहा हूं बल्कि बेहद क्षुब्ध होकर आप सबों के सामने एक बात रख रहा हूं । कुंवर जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार का ऐलान हआ लेकिन अंग्रेजी के अखबारों की उदासीनता तकलीफनाक रही । किसी भी अंग्रेजी दैनिक ने इस खबर को छापने लायक भी नहीं समझा । जहां छपा भी वो इतना छोटा छपा कि किसी भी पाठक का ध्यान आकर्षित नहीं कर सका । ये बात मेरे लिए हैरान करनेवाली नहीं थी क्योंकि अंग्रेजी मीडिया का हिंदी साहित्या को लेकर एक उपेक्षा का भाव रहा है जो नियमित तौर पर समाने आता रहा है । अंग्रेजी अखबारों में काम करनेवाले पत्रकार हिंदी के लेखकों को हीम समझते हैं और जब भी मौका मिलता है उसे प्रदर्शित भी करते हैं । कुंवर जी का उदाहरण आपके सामने है, जबकि कुंवर जी की कविताएं जिन्होंने पढ़ी हैं उनको ये मानने में कोई गुरेज नहीं होगा कि वो समकालीन हिंदी कविता के सबसे अहम कवि हैं । सवाल ये उठता है कि अंग्रेजी दैनिकों की हिंदी लेखकों को लेकर इस उदासीनता का कारण क्या उनकी ये उदासीनता है या फिर वो औपनिवेशिक मान्यता कि हिंदी वाले बेहतर काम कर ही नहीं सकते और अंग्रेजी तो हमेशा से श्रेष्ठ रही है । मैं आप सबों के सामने ये सवाल छोड़ता हूं कि कि इस उपेक्षा की वजह पर अपनी राय दें ताकि इस बहस को आगे बढाया जा सके

3 comments:

अनुनाद सिंह said...

किसी गुलाम मानसिकता वाले भारतीय को बुकर पुरस्कार मिल जाय तो ये अंग्रेजी अखबार खूब चिल्लाते हैं.

विधुल्लता said...

ये अंग्रेजी अखबारों नही बल्कि अंग्रेजी मानसिकता वाले गुलाम लोगों के कारण है कुवंर जी जैसे कवि और उनकी लेखकीय अद्भुत छमता को ये समझ भी नही पायेंगे उन्ही की एक कविता है जिसमें कौमी एकता के साथ ऐसे लोगों के विषय मैं भी इशारा है कभी अपने ब्लॉग पर दूंगी ,अच्छा आलेख है आपने लिखा तो सही ,साधुवाद.

सोनू said...

मेरे ख़याल से तो औपनिवेशिक षड्यंत्र अभी भी चालू है। इस ब्लॉग पोस्ट में नीचे Naiyer की टिप्पणी पढ़ें। ख़ैर,इस टिप्पणी में जो बात कही गई है उसको सीधा करने की नीतियाँ भी हैं। प्रो॰ मीनाक्षी मुखर्जी पर यह आलेख पढ़ें और हो सके तो ऑक्सफ़ॉर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित उनकी यह किताब ख़रीद भी लें।