भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों से चौतरफा घिरी मनमोहन सरकार के लिए विकिलीक्स के खुलासे के बाद मुश्किलें और बढ़ गई हैं । मनमोहन सिंह की सरकार की साख पर लगातार लग रहे बट्टे ने प्रधानमंत्री की छवि को कमजोर किया है । यूपीए वन के दौरान जिस तरह से न्यूक्लियर डील पर सरकार बचाने के लिए सांसदों की खरीद फरोख्त का खुलासा हुआ है, उसके बारे में उस वक्त भी काफी चर्चा हुई थी और जांच वगैरह भी हुई थी । लेकिन ताजा खुलासे ने विपक्ष को सरकार पर एक बार फिर हमला करने का मौका दे दिया । खुलासे पर फजीहत होते देख पहले सरकार के कद्दावर मंत्री और संकटमोचक प्रणब मुखर्जी ने मोर्चा संभाला । संसद में विपक्ष के हमलावर तेवर पर पलटवार करते हुए वित्त मंत्री ने यह कहकर विपक्ष के आरोपों की हवा निकालने की कोशिश की यह पूरा मामला चौदहवीं लोकसभा का है और पंद्रहवीं लोकसभा पिछली लोकसभा में हुई घटनाओं पर विचार नहीं कर सकती । इतने संगीन इल्जाम पर सरकार की ओर से वित्त मंत्री और कानून, संसदीय परंपरा और सरकारी नियमों के चलते फिरते इंसाइक्लोपीडिया माने जानेवाले प्रणब मुखर्जी ने बेहद हल्की बात करके पूरे देश को चौंका दिया । प्रणब मुखर्जी की याददाश्त का लोहा पूरा देश मानता है । क्या प्रणब मुखर्जी यह भूल गए कि जब इमरजेंसी के खत्म होने के बाद हुए चुनाव के बाद सातवीं लोकसभा का गठन हुआ थो तो सदन ने इंदिरा गांधी को उसके पहले के लोकसभा के दौरान उनके किए कार्यों पर कार्रवाई की थी । उस वक्त इंदिरा गांधी के निकट सहयोगी रहे प्रणब दा क्या यह भी भूल गए कि जब जनता सरकार के पतन के बाद उन्नीस सौ अस्सी में इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में आई और आठवीं लोकसभा का गठन हुआ तो उसने फिर से पिछली लोकसभा के इंदिरा गांधी के मुतल्लिक लिए गए फैसलों को पलट दिया था । इन दोनों उदाहरणों से यह साबित होता है कि सरकार के सबसे बड़े संकटमोचक से चूक हो गई । क्या प्रणब मुखर्जी और कांग्रेस पार्टी कुछ ही दिन पहले लिए गए सरकार के निर्णय को ही भूल गई । कुछ ही दिन पहले सरकार ने टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय दल का गठन किया है जो पिछली लोकसभा के दौरान लिए गए निर्णयों को कसौटी पर कसेगा । इन आधारहीन तर्कों को खारिज करते हुए विपक्ष ने सरकार पर अपना हमला जारी रखा और प्रधानमंत्री से सदन में बयान देने का दबाव बढ़ा दिया । नतीजे में प्रधानमंत्री को संसद में बयान देना पड़ा ।
आक्रमण सबसे अच्छा बचाव की तर्ज पर प्रधानमंत्री ने संसद के दोनों सदनों में बयान दिया । अपनी सरकार और पार्टी का जोरदार बचाव करते हुए प्रधानमंत्री ने नोट के बदले वोट के आरोपों को खारिज करते हुए विपक्ष पर तीखा प्रहार किया । मनमोहन सिंह ने अपनी पिछली सरकार को बचाने के लिए सांसदों की खरीद फरोख्त के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए विपक्ष को यह कहते हुए आईना दिखाने की कोशिश की कि जनता ने आमचुनाव में विपक्ष के इन आरोपों को तवज्जो नहीं दी । कांग्रेस पार्टी को पिछले आमचुनाव में 2004 के चुनाव के मुकाबले ज्यादा सीटें मिली । प्रधानमंत्री मनमोहमन सिंह ने संसद में दिए अपने बयान में बीजेपी और वामदलों को चुनाव में मिली कम सीटें भी गिना दीं । मनमोहन सिंह ने यह तर्क दिया कि विपक्ष जनता द्वारा नकारे गए आरोपों को फिर से हवा देकर बेवजह सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है । अपने वित्त मंत्री की राह पर चलते हुए प्रधानमंत्री ने भी बेहद लचर तर्कों का सहारा लिया । क्या चुनाव जीत जाने से सारे आरोप और जुर्म खारिज हो जाते हैं । क्या सही गलत का फैसला जनता की अदालत में ही हुआ करेगी, क्या अब जांच एजेंसी और जांच कमेटियां बेमानी हो जाएंगी ।
अगर प्रधानमंत्री के इन बयानों को मान लिया जाए तो तमाम अपराधी और गुंडे जो विधायक या सांसद बन जाते हैं उनके जुर्म चुनाव जीतते ही खत्म हो जाते हैं । इस तर्क के आधार पर बिहार के बाहुबली सांसद रहे शाहबुद्दीन के तमाम जुर्म गलत हैं क्योंकि अदालत द्वारा मुजरिम करार दिए जाने और कोर्ट से चुनाव लड़ने पर रोक लगाने के पहले तो शाहबुद्दीन को जनता लगातार चुनकर लोकसभा में भेजती रही थी । क्या अपने बयान से प्रधानमंत्री यह संदेश देना चाह रहे हैं कि आप चाहें जितना भी बड़ा अपराध करें अगर जनता ने आपको चुन लिया है तो आपके सारे पाप धुल जाते हैं । क्या प्रधानमंत्री अपने इस बयान से डीएमके के नेताओं को यह संदेश देना चाह रहे हैं कि ए राजा पर चाहे एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ के टेलीकॉम घोटाले का आरोप लगा हो लेकिन अगर वो फिर से चुनाव जीत जाते हैं तो सारे आरोप खारिज हो जाएंगे । देश के शीर्ष पद पर बैठा एक जिम्मेदार व्यक्ति अगर देश की सबसे बड़ी पंचायत में इस तरह का गैर जिम्मेदाराना बयान देता है तो लोकतंत्र के लिए बेहद चिंता की बात है । चिंता इस बात को लेकर भी होती है कि जिसके हाथ में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को चलाने और उसकी गरिमा को बचाने की जिम्मेदारी है वह लोकतंत्र और जनता के समर्थन को ही घोटालों से बचने की ढाल बना रहा है । संसद में प्रधानमंत्री के उक्त बयान को कांग्रेस के लोग बेहद आक्रामक और हमलावर बयान करार देकर खुद की पीठ थपथपा रहे हैं । आक्रामक दिखने वाले उक्त बयान में ना तो गंभीरता है और ना ही दम ।
जिस तरह की लचर दलील और जनता के समर्थन की आड़ लेकर प्रधनामंत्री मनमोहन सिंह ने नोट के बदले वोट के आरोपों को नकारनेवाला बयान दिया है उसी से मिलता जुलता बयान लंदन में भारत के हाई कमिश्नर रहे बी के नेहरू ने भी दिया था । जब 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को चुनावी गड़बड़ियों के आधार पर खारिज कर दिया था, तब बी के नेहरू ने कहा था कि अदालत के इस फैसले से इंदिरा गांधी के राजनीतिक भविष्य पर कोई असर नहीं पड़नेवाला है । श्रीमती गांधी को अब भी देश की जनता का जबरदस्त समर्थन हासिल है और मुझे लगता है कि भारत के प्रधानमंत्री को उस वक्त तक अपने पद पर बने रहना चाहिए जब तक कि जनादेश उनके खिलाफ ना हो । उस वक्त इंदिरा गांधी के चमचों ने उन्हें देश में इमरजेंसी लगाने की सलाह दी थी और पद छोड़ने के भयानक दबाव में श्रीमती गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा थी । उसके बाद क्या हुआ यह इतिहास है । अब वक्त आ गया है कि सरकार देश को गुमराह करना छोड़े, जनता की आड़ लेकर लोकतंत्र को कमजोर करनेवालों लोगों की इमानदारी से पहचान की जाए और उन्हें सख्त सजा मिले ताकि भविष्य में इस तरह की हरकतें नहीं दुहारई जाएं ।
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