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Thursday, August 16, 2012

रामदेव का संघ योग



दिल्ली के रामलीला मैदान में भगवा वेश धारी बाबा रामदेव का आंदोलन खत्म हो गया और वो वापस अपने घर हरिद्वार लौट गए हैं । रामदेव इस बार के अपने आंदोलन से बेहद खुश हैं और अंबेडकर स्टेडियम से निकलने के पहले अपनी जीत की दुंदुभि बजाते हुए हरिद्वार रवाना हुए । उनके समर्थक भी ये प्रचारित कर रहे हैं कि रामदेव ने पिछले साल रामलीला मैदान से अनशन के बीच से औरत का वेश धारण कर भागने का दाग अपने दामन से छुड़ा लिया है । जयघोष और जीत के इस जश्न के बीच रामदेव और उनके समर्थक ये भूल गए कि दिल्ली में छह दिनों तक के आंदोलन का आकलन होना शेष है । पिछले साल जब जून में रामदेव दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे थे तो सत्याग्रह ज्यादा दिन टिक नहीं पाया था और वो पुलिस के डर से वहां से भागते धरे गए थे । रामदेव ने उस वक्त दलील दी थी कि अगर वो वहां से भागने का प्रयास नहीं करते तो पुलिस उन्हें मार डालती । रामदेव के मैदान छोड़कर भागने और उसके बाद जान से मार डालने की दलील से उनकी जमकर फजीहत हुई थी । अपनी उस फजीहत को रामदेव भूले नहीं थे । इसलिए इस बार वो पुलिस के सामने सीना तानकर खड़े थे औऱ उनसे बहस भी कर रहे थे । उन्हें ये बात समझ में आ गई थी कि चौबीस घंटों के समाचार चैनलों के दौर में फर्जी मुठभेड़ लगभग नामुमकिन है । अब सवाल यह उठता है कि रामदेव को इस बार दिल्ली में छह दिन के आंदोलन से क्या हासिल हुआ । रामदेव पिछले दो तीन सालों से काला धन के खिलाफ देशभर में मुहिम चला रहे हैं । इस बार वो अपने आंदोलन के एक दिन पहले तक ये बताने को तैयार नहीं थे कि उनकी मांगे क्या है । वो अनशन कर रहे हैं या आंदोलन । लगातार सस्पेंस बनाए रखने और धीरे-धीरे खोलने की रणनीति पर काम रहे थे । पहले दिन रामदेव ने लगभग घंटेभर के अपने भाषण में देश दुनिया के तमाम मुददे गिनाए और सरकार से उन सभी पर त्वरित कार्रवाई की मांग की । रामदेव ने काले धन के अलावा अन्ना हजारे की मांगों मसलन लोकपाल, सिटीजन चार्टर, ज्यूडिशियल अकाउंटिबिलिटी बिल के अलावा देश के प्राकृतिक संसाधनों की लूट को रोकने की मांग की । उन्होंने ना केवल अन्ना की मांगों को अपनी मांगों में शामिल किया बल्कि अन्ना की टोली के अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा कि शुगर के मरीज शिकंजी पिएं । गौरतलब है कि अरविंद शुगर के मरीज हैं । इसमें कोई दो राय नहीं कि योग शिविरों में भाषण देते देते रामदेव ने जनता से बेहतरीन संवाद करने की कला मै महारात हासिल कर ली। अब अगर हम पहले दिन के भाषण को देखें तो रामदेव ने कांग्रेस समेत किसी भी दल के नेता के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया बल्कि सोनिया गांधी को तो सोनिया माता और राहुल को राहुल भाई कहकर संबोधित किया । पहले दिन तो रामलीला मैदान में ठीक ठाक भीड जुटी थी लेकिन बाद में के दो दिनों में भीड़ अपेक्षा से कम जुटने से रामदेव और उनके रणनीतिकार बौखला गए । इसी बौखलाहट में वो मीडिया पर गलत कवरेज का आरोप जड़ बैठे और कहा कि मीडिया कम भीड़ की बात को प्रचारित कर रहा है । लेकिन कम भीड़ से रामदेव और उनके सिपहसलारों के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी । रामदेव के भाषण का ओज निस्तेज होने लगा था । हताशा और निराशा उनकी बॉडी लैंग्वेज में साफ झलकने लगी थी । पिछली बार जिस सरकार के चार बड़े मंत्री रामदेव की अगवानी के लिए एयरपोर्ट गए थे वही सरकार इस बार रामदेव की उपेक्षा पर उतारू थी । तीसरे दिन तक आंदोलन के बेअसर होने के आसार बनने लगे थे ।
कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार से जब किसी तरह की कोई पहल नहीं हुई तो रामदेव ने अन्य दलों का दरवाजा खटखटाना शुरू किया । आरएसएस में रामदेव के समर्थकों ने भी दिल्ली से लेकर हरिद्वार तक में आपात बैठकें हुई। संघ की तरफ से जनता पार्टी के अध्यक्ष और आजकल बीजेपी की आंखों के तारे सुब्रहम्ण्यम स्वामी सक्रिय हो गए । फिर तय हुआ कि भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक शरद यादव रामदेव के मंच पर आएंगे । एक राष्ट्रीय पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष किसी आंदोलन के मंच पर जा रहा होता है तो उस पार्टी और उसके जुड़े संगठनों का दायित्व होता है कि उनको सुनने के लिए भीड़ का इंतजाम किया जाए । ना सिर्फ प्रमुख विपक्षी पार्टी का अध्यक्ष बल्कि प्रमुख विपक्षी गठबंधन का संयोजक भी जा रहा हो तो ये दायित्व और बढ़ जाता है । लिहाजा जब रामदेव के आंदोलन के चौथे दिन नितिन गडकरी और शरद यादव रामदेव के मंच पर पहुंचे तो रामलीला मैदान में ठीक ठाक भीड़ जमा कर दी गई थी । प्रत्यक्ष रूप से गडकरी और शरद यादव का साथ मिलने से बाबा बम बम करने लगे । यहां से रामदेव के बॉडी लैंग्वेज में साफ तौर पर बदलाव को लक्षित किया जा सकता था । अब जब गडकरी और शरद यादव मंच पर हों तो सोनिया गांधी को माता तो कहा नहीं जा सकता है लिहाजा रामदेव ने आक्रामक अंदाज में कांग्रेस पर जमकर हमला बोला और उसे देश की सबसे भ्रष्ट पार्टी करार देते हुए जनता से उसे हराने की अपील तक कर डाली । मनमोहन सिंह पर भी जमकर हमला बोला । मंच पर स्वामी के साथ गलबहियां करते मौजूद जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर बेहद संगीन इल्जाम मढे ।

अबतक जो कुछ पर्दे के पीछे था वो आईने की तरह साफ हो गया कि रामदेव का एक राजनैतिक एजेंडा है और वो उसी पर काम कर  रहे हैं । रामदेव का राजनैतिक एजेंडा वही है जो संघ के रणनीतिकार तय कर रहे हैं । संघ को लगता है कि बीजेपी नेताओं की साख उतनी नहीं रही कि केंद्र में सरकार बनाई जा सके । महंगाई के खिलाफ दो साल पहले बीजेपी के देशव्यापी आंदेलन का हश्र वो देख चुके थे । लिहाजा पहले अन्ना और बाद में रामदेव को साथ लेकर आगे बढ़ने की रणनीति पर काम शुरू हुआ । संघ हमेशा से दूसरों का इस्तेमाल बीजेपी को स्थापित करने में करते आया है चाहे वो जयप्रकाश नारायण हों या विश्वनाथ प्रताप सिंह । कभी प्रत्यक्ष तो कभी परोक्ष रूप से आंदोलनों से जुड़कर बीजेपी को फायदा पहुंचाता है । रामदेव ने कहा कि 2014 के चुनाव में कांग्रेस को हराना है लेकिन किसे जिताना है उस बारे में चुनाव के पहले बताएंगे । रामदेव को अब जनता को बताने की जरूरत नहीं है । जनता समझ उनकी मंशा और राजनीति दोनों समझ चुकी है । मुमकिन है रामदेव खुलकर चुनावी मैदान में ना आएं लेकिन अपनी राजनैतिक महात्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए वो बीजेपी से टिकटों का मोलतोल जरूर करेंगे तब शुरू होगा असली खेल । जिसके सूत्रधार ना तो रामदेव होंगे और ना ही गडकरी । सब कह रहे होंगे संघम शरण गच्छामि

2 comments:

Anonymous said...

खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में
कोमल निशाद और बाकी स्वर
शुद्ध लगते हैं, पंचम
इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का
प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी
झलकता है...

हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों
कि चहचाहट से मिलती
है...
My blog - संगीत

सिद्धार्थ प्रताप सिंह said...

श्रीमान जी आपकी लेखनी का मै कायल रहा हूँ ,मगर इस लेख को पढ़ने के बाद यह समझकर दुःख हुआ की मजबूरिओं (या फिर तुच्छ स्वार्थ) ने आपको भी दरबारी लेखक बना दिया ....वैसे आपको पूरी वैचारिक स्वतंत्रता है की आप कुछ भी लिखें और मुझ जैसे पाठकों को पूर्ण अधिकार है की वह किसे पढ़े और किसे नहीं | (वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की मै कांग्रेस सन्देश पढता हूँ अगर आपको उसी मुखपत्र में पढता तो शायद अपने को ठगा महसूस न करता |)