मोदी मानवता के हत्यारे हैं- संजय सिंह
इस कीचड़ में मुझे मत डाले- अन्ना हजारे
मोदी ना केवल सांप्रदायिक हैं बल्कि भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देते हैं- अरविंद केजरीवाल
मोदी इस देश के निर्वाचित मुख्यमंत्री हैं और कोई उनसे मिले तो किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए- कुमार विश्वास
कालेधन पर बाबा के जंग में हम उनके साथ हैं – किरण बेदी
ये पांच बयान हैं जो दो दिनों के अंदर टीम अन्ना के अहम सदस्यों ने दिए हैं । इस बयान के केंद्र में है गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और बाबा रामदेव का मंच साझा करना और उसी मंच से रामदेव का नरेन्द्र मोदी की तारीफ करना । रामदेव और नरेन्द्र मोदी के एक साथ मंच पर आने से टीम अन्ना के अंदर का झगड़ा और मतभेद दोनों सामने आ गए । मोदी और रामदेव के मसले पर अन्ना हजारे, किरण बेदी और कुमार विश्वास गोलबंद हो गए हैं वहीं दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया हैं । रामदेव के मोदी के साथ मंच साझा करने और नितिन गडकरी की रामदेव के पांव छूती तस्वीर, फिछले साल दिल्ली में रामदेव के आंदोलन में हिंदूवादी साध्वी ऋतंभरा का शामिल होने को अगर मिलाकर देखें तो एक साफ तस्वीर उभरती है । जो तस्वीर है वो धर्मनिरपेक्ष तो नहीं ही है । इन्हीं तस्वीरों के आधार पर कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह तो साफ तौर यह आरोप लगा चुके हैं कि रामदेव और अन्ना हजारे का पूरा आंदोलन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की योजना के मुताबिक चल रहा है । हम यहां याद दिला दें कि अन्ना हजारे भी एक बार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ कर चुके हैं । बाद में जब अन्ना हजारे घिरे तो मीडिया पर तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाकर टीम अन्ना ने बेहद सफाई से अन्ना के उस बयान से पल्ला झाड़ लिया था । लेकिन जिस तरह से अब टीम अन्ना रामदेव के साथ कंधा से कंधा मिलाकर आंदोलन कर रही है उससे दिग्विजय सिंह के आरोप और गहराने लगे हैं । जंतर मंतर पर चल रहे अनशन के दौरान इस तरह का विवाद उठना अनशन और आंदोलन दोनों की विश्वसनीयता को कठघरे में खड़ा कर देती है । अन्ना हजारे बार बार पंथ निरपेक्षता की बात करते हैं लेकिन लगातार रामदेव के साथ गलबहियां भी करते नजर आते हैं । रामदेव की आस्था और प्रतिबद्धता दोनों बिल्कुल साफ है । अनशन के दौरान जंतर मंतर पर रामदेव अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के साथ हाथ खड़े कर हुंकार भरते हैं और अगले ही दिन अहमदाबाद जाकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की वंदना करने लग जाते हैं ।
मोदी-रामदेव मुलाकात पर जिस तरह से टीम अन्ना में मतभेद खुलकर सामने आया है वो आंदोलन के भविष्य और उसकी साख के लिए अच्छा नहीं है । जिस जनता की टीम अन्ना लगातार दुहाई देती है वही जनता आज टीम अन्ना से और विशेष तौर पर अन्ना हजारे से ये जानना चाहती है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी तारीफों के पुल बांधनेवाले रामदेव के बारे में उनकी राय क्या है । अन्ना हजारे को इस बारे में अपनी राय साफ करनी होगी कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर उनकी सोच क्या है । जो व्यक्ति दो हजार दो के गुजरात दंगों के लिए कठघरे में खड़ा हो, जिसके मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य में तमाम संवैधानिक संस्थाओं की धज्जियां उड़ी हों, जिसके शासनकाल के दौरान राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाई हो उसके बारे में चुप्पी साधना टीम अन्ना की विश्वसनीयता के साथ साथ उनकी मंशा पर भी शक का धुंधलका बनकर छाने लग गई है ।
ऐसा नहीं है कि रामदेव और मोदी के मुद्दे पर ही टीम अन्ना के सदस्यों के बीच मतभेद हैं । और कई अन्य मुद्दे भी हैं जिसको लेकर मतैक्य नहीं है । एक ही मुद्दे पर अलग अलग बयान से जनता के बीच भ्रम फैलता है, जिससे आंदोलन के बिखर जाने का खतरा बन गया है । मसलन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को लेकर भी अन्ना और अरविंद केजरीवाल में मतभेद खुलकर सामने आ गए । अनशन के दौरान एक दिन अरविंद केजरीवाल ने सरेआम अन्ना हजारे से असहमति जताते हुए कहा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब मुखर्जी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगाए जाने चाहिए । अरविंद केजरीवाल जिन कुछ लोगों की बात कर रहे थे वो अन्ना हजारे और बाबा रामदेव थे जिन्होंने एक दिन पहले उसी मंच से ये ऐलान किया था कि राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब मुखर्जी के खिलाफ आरोप लगाने बंद होने चाहिए । अन्ना की मौजूदगी में अरविंद केजरीवाल ने महामहिम पर हमले किए । अरविंद केजरीवाल बेहद ईमानदार होंगे, उनके अंदर देशप्रेम का जज्बा भी होगा, वो देश के लिए वो बलिदान देने को भी तैयार होंगे लेकिन अरविंद केजरीवाल को यह बात समझनी होगी कि देश के राष्ट्रपति पद की कोई मर्यादा होती है और पूरा देश उस पद को एक इज्जत बख्शता है । लिहाजा प्रचारप्रियता के लिए देश के प्रथम नागरिक पर आरोप जड़ने से आम जनता के मन में केजरीवाल की क्रांतिकारी छवि नहीं बल्कि एक वैसे अराजक इंसान की छवि बनती है जो हर किसी को गाली देता चलता है । इसका नतीजा यह होता है कि उसकी गंभीरता कम होती है और लोग उनकी बातों को शिद्दत से लेना बंद करने लगेंगे ।
इस तरह की बयानबाजियों और टीम के सदस्यों के बीच मतभिन्नता से ये साफ है कि इस आंदोलन को नेतृत्व देनेवालों के बीच मुद्दों को लेकर जबरदस्त मतभेद हैं । इंडिया अगेंस्ट करप्शन में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा । पिछले एक साल से जिस तरह से कई लोगों ने संगठन में पारदर्शिता के आभाव और अरविंद केजरीवाल पर मनमानी के आरोप लगाते हुए खुद को अलग किया उससे भी जनता के बीच गलत संदेश गया । सोशल मीडिया में आंदोलन की कमान संभालने वाले शिवेन्द्र सिंह ने भी खत लिखकर टीम में चल रही राजनीति और टीम के नेतृत्व के गैरलोकतांत्रिक होने का मुद्दा उठाया था । लेकिन उन मुद्दों को तवज्जो नहीं दिए जाने से शिवेन्द्र सिंह ने अपने आपको समेट लिया । पिछले साल अपना सबकुछ छोड़ छाड़कर इस आंदोलन से जुड़े कितने ऐसे शिवेन्द्र हैं जिन्होंने नेतृत्व पर संगठन को गैरलोकतांत्रिक तरीके से चलाने के आरोप लगाते हुए टीम का साथ छोड़ दिया । इसके अलावा टीम के कई लोगों को तुरंत फुरंत मिली प्रसिद्धि ने भी काम बिगाड़ा । चौबीस घंटे न्यूज चैनलों के इस दौर में बहुत जल्दी प्रसिद्धि मिलती है उससे उस शख्स से अपेक्षा भी बढ़ जाती है । बहुधा होता यह है कि प्रसिद्दि के बोझ और नशे में जिम्मेदारियों से दूर हट जाते हैं । टीम अन्ना के कुछ सदस्यों के साथ भी ऐसा हो रहा है । प्रसिद्दि के दंभ में वो धरती छोड़ने लगे है जो ना तो आंदोलन के लिए अच्छा है और ना ही उनके खुद के लिए
इस कीचड़ में मुझे मत डाले- अन्ना हजारे
मोदी ना केवल सांप्रदायिक हैं बल्कि भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देते हैं- अरविंद केजरीवाल
मोदी इस देश के निर्वाचित मुख्यमंत्री हैं और कोई उनसे मिले तो किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए- कुमार विश्वास
कालेधन पर बाबा के जंग में हम उनके साथ हैं – किरण बेदी
ये पांच बयान हैं जो दो दिनों के अंदर टीम अन्ना के अहम सदस्यों ने दिए हैं । इस बयान के केंद्र में है गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और बाबा रामदेव का मंच साझा करना और उसी मंच से रामदेव का नरेन्द्र मोदी की तारीफ करना । रामदेव और नरेन्द्र मोदी के एक साथ मंच पर आने से टीम अन्ना के अंदर का झगड़ा और मतभेद दोनों सामने आ गए । मोदी और रामदेव के मसले पर अन्ना हजारे, किरण बेदी और कुमार विश्वास गोलबंद हो गए हैं वहीं दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया हैं । रामदेव के मोदी के साथ मंच साझा करने और नितिन गडकरी की रामदेव के पांव छूती तस्वीर, फिछले साल दिल्ली में रामदेव के आंदोलन में हिंदूवादी साध्वी ऋतंभरा का शामिल होने को अगर मिलाकर देखें तो एक साफ तस्वीर उभरती है । जो तस्वीर है वो धर्मनिरपेक्ष तो नहीं ही है । इन्हीं तस्वीरों के आधार पर कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह तो साफ तौर यह आरोप लगा चुके हैं कि रामदेव और अन्ना हजारे का पूरा आंदोलन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की योजना के मुताबिक चल रहा है । हम यहां याद दिला दें कि अन्ना हजारे भी एक बार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ कर चुके हैं । बाद में जब अन्ना हजारे घिरे तो मीडिया पर तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाकर टीम अन्ना ने बेहद सफाई से अन्ना के उस बयान से पल्ला झाड़ लिया था । लेकिन जिस तरह से अब टीम अन्ना रामदेव के साथ कंधा से कंधा मिलाकर आंदोलन कर रही है उससे दिग्विजय सिंह के आरोप और गहराने लगे हैं । जंतर मंतर पर चल रहे अनशन के दौरान इस तरह का विवाद उठना अनशन और आंदोलन दोनों की विश्वसनीयता को कठघरे में खड़ा कर देती है । अन्ना हजारे बार बार पंथ निरपेक्षता की बात करते हैं लेकिन लगातार रामदेव के साथ गलबहियां भी करते नजर आते हैं । रामदेव की आस्था और प्रतिबद्धता दोनों बिल्कुल साफ है । अनशन के दौरान जंतर मंतर पर रामदेव अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के साथ हाथ खड़े कर हुंकार भरते हैं और अगले ही दिन अहमदाबाद जाकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की वंदना करने लग जाते हैं ।
मोदी-रामदेव मुलाकात पर जिस तरह से टीम अन्ना में मतभेद खुलकर सामने आया है वो आंदोलन के भविष्य और उसकी साख के लिए अच्छा नहीं है । जिस जनता की टीम अन्ना लगातार दुहाई देती है वही जनता आज टीम अन्ना से और विशेष तौर पर अन्ना हजारे से ये जानना चाहती है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी तारीफों के पुल बांधनेवाले रामदेव के बारे में उनकी राय क्या है । अन्ना हजारे को इस बारे में अपनी राय साफ करनी होगी कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर उनकी सोच क्या है । जो व्यक्ति दो हजार दो के गुजरात दंगों के लिए कठघरे में खड़ा हो, जिसके मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य में तमाम संवैधानिक संस्थाओं की धज्जियां उड़ी हों, जिसके शासनकाल के दौरान राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाई हो उसके बारे में चुप्पी साधना टीम अन्ना की विश्वसनीयता के साथ साथ उनकी मंशा पर भी शक का धुंधलका बनकर छाने लग गई है ।
ऐसा नहीं है कि रामदेव और मोदी के मुद्दे पर ही टीम अन्ना के सदस्यों के बीच मतभेद हैं । और कई अन्य मुद्दे भी हैं जिसको लेकर मतैक्य नहीं है । एक ही मुद्दे पर अलग अलग बयान से जनता के बीच भ्रम फैलता है, जिससे आंदोलन के बिखर जाने का खतरा बन गया है । मसलन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को लेकर भी अन्ना और अरविंद केजरीवाल में मतभेद खुलकर सामने आ गए । अनशन के दौरान एक दिन अरविंद केजरीवाल ने सरेआम अन्ना हजारे से असहमति जताते हुए कहा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब मुखर्जी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगाए जाने चाहिए । अरविंद केजरीवाल जिन कुछ लोगों की बात कर रहे थे वो अन्ना हजारे और बाबा रामदेव थे जिन्होंने एक दिन पहले उसी मंच से ये ऐलान किया था कि राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब मुखर्जी के खिलाफ आरोप लगाने बंद होने चाहिए । अन्ना की मौजूदगी में अरविंद केजरीवाल ने महामहिम पर हमले किए । अरविंद केजरीवाल बेहद ईमानदार होंगे, उनके अंदर देशप्रेम का जज्बा भी होगा, वो देश के लिए वो बलिदान देने को भी तैयार होंगे लेकिन अरविंद केजरीवाल को यह बात समझनी होगी कि देश के राष्ट्रपति पद की कोई मर्यादा होती है और पूरा देश उस पद को एक इज्जत बख्शता है । लिहाजा प्रचारप्रियता के लिए देश के प्रथम नागरिक पर आरोप जड़ने से आम जनता के मन में केजरीवाल की क्रांतिकारी छवि नहीं बल्कि एक वैसे अराजक इंसान की छवि बनती है जो हर किसी को गाली देता चलता है । इसका नतीजा यह होता है कि उसकी गंभीरता कम होती है और लोग उनकी बातों को शिद्दत से लेना बंद करने लगेंगे ।
इस तरह की बयानबाजियों और टीम के सदस्यों के बीच मतभिन्नता से ये साफ है कि इस आंदोलन को नेतृत्व देनेवालों के बीच मुद्दों को लेकर जबरदस्त मतभेद हैं । इंडिया अगेंस्ट करप्शन में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा । पिछले एक साल से जिस तरह से कई लोगों ने संगठन में पारदर्शिता के आभाव और अरविंद केजरीवाल पर मनमानी के आरोप लगाते हुए खुद को अलग किया उससे भी जनता के बीच गलत संदेश गया । सोशल मीडिया में आंदोलन की कमान संभालने वाले शिवेन्द्र सिंह ने भी खत लिखकर टीम में चल रही राजनीति और टीम के नेतृत्व के गैरलोकतांत्रिक होने का मुद्दा उठाया था । लेकिन उन मुद्दों को तवज्जो नहीं दिए जाने से शिवेन्द्र सिंह ने अपने आपको समेट लिया । पिछले साल अपना सबकुछ छोड़ छाड़कर इस आंदोलन से जुड़े कितने ऐसे शिवेन्द्र हैं जिन्होंने नेतृत्व पर संगठन को गैरलोकतांत्रिक तरीके से चलाने के आरोप लगाते हुए टीम का साथ छोड़ दिया । इसके अलावा टीम के कई लोगों को तुरंत फुरंत मिली प्रसिद्धि ने भी काम बिगाड़ा । चौबीस घंटे न्यूज चैनलों के इस दौर में बहुत जल्दी प्रसिद्धि मिलती है उससे उस शख्स से अपेक्षा भी बढ़ जाती है । बहुधा होता यह है कि प्रसिद्दि के बोझ और नशे में जिम्मेदारियों से दूर हट जाते हैं । टीम अन्ना के कुछ सदस्यों के साथ भी ऐसा हो रहा है । प्रसिद्दि के दंभ में वो धरती छोड़ने लगे है जो ना तो आंदोलन के लिए अच्छा है और ना ही उनके खुद के लिए
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