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Sunday, March 3, 2013

साहित्य का मीना बाजार


पिछले कई सालों से जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल ने ना सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के साहित्यक मानचित्र पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है । बेहद छोटे स्तर से शुरु हुए इस लिटरेचर फेस्टिवल ने छह सालों में एक लंबा सफर तय किया है । इन छह सालों में इस फेस्टिवल में विश्व के अनेक भाषाओं के लेखकों ने शिरकत की और साहित्य से जुड़े गंभीर विषयों पर विमर्श किया । लेकिन समय बदला तो इस महोत्सव का स्वरूप भी बदला । पिछले साल सलमान रश्दी के जयपुर आने को लेकर मचे बवाल ने लिटरेचर फेस्टिवल को लोकप्रियता और चर्चा के शीर्ष पर पहुंचा दिया था । सलमान रश्दी के नहीं आने से भी कोई फर्क नहीं पड़ा था क्योंकि विवाद फिर भी हुआ था । जीत थाईल, रुचिर शर्मा और हरि कुंजरू ने सलमान रश्दी की विवादित किताब के अंश पढ़ दिए थे । उसके बाद जीत थाईल पर जयपुर और अजमेर में आठ केस दर्ज किए गए थे । यह अलग बात है कि साल भर बीत जाने के बाद भी इन केस की अबतक फाइल खुली ही नहीं है । जीत थाईल इस साल भी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में पहुंचे और उन्हें उनके उपन्यास नारकोपोलिस पर प्रतिष्ठित डीएससी पुरस्कार भी मिला ।
अपने छठे एडिशन तक आते आते जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल साहित्यक उत्सव से अपना फलक बड़ा करते हुए साहित्य के मीना बाजार में तब्दील होता नजर आया । मैं पिछले कई सालों से जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल को देखता आ रहा हूं । इस बार इस साहित्य मेले में कई नई चीजें देखने को मिली । पहले जयपुर के दिग्गी पैलेस में आयोजित इस मेले में साहित्य पर गंभीर विमर्श हुआ करते था, इस बार भी हुआ लेकिन विमर्श के साथ साथ मेले में कारोबार का भी प्रवेश हो गया । शुरुआत में जब इस साहित्यक उत्सव की कल्पना की गई होगी तब भी उसके पीछे साहित्य पर गंभीर चिंतन के अलावा लाभ कमाने का भी उद्देश्य रहा होगा । लेकिन पिछले पांच मेलों तक यह थोड़ा ढंके छुपे तौर पर चल रहा था । इस बार मेले में खुलकर कारोबार हो रहा था । इस साल मेले में हर मंडप के पास तरह तरह के खाने पीने के स्टॉल लगे थे । कुल्हड़वाली चाय जो इस मेले की खासियत हुआ करती है उसके दाम में पिछले साल की तुलना में सौ फीसदी का इजाफा करते हुए उसे बीस रुपए प्रति कुल्हड़ कर दिया गया । खाने-पीने तक तक अगर यह मामला रुका रहता तब भी बात समझ में आती वेकिन इस बार तो विदेशी मेहमानों को ध्यान में रखते हुए हैंडीक्राफ्ट की भी कई दुकानें वहां लगाई गई थी जिसनें जयपुरी बलॉक प्रिंट के कपड़ों से लेकर थैले और टोपियां मिल रही थी । सबसे हैरानी की बात तो यह थी कि इस बार मेले में पहली बार गहनों की भी एक दुकान थी । साहित्यक मेले में गहनों की दुकान का मतलब समझ में नहीं आया । क्या आयोजकों को यह लगता है कि लिटरेचर फेस्टिवल में आनेवाले लोग वहां साहित्य सुनने और अलग अलग सत्रों में होनेवाले विमर्श में शामिल होने के अलावा पिकनिक और मौज मस्ती और शॉपिंग के लिए आते हैं । या फिर लिटरेचर फेस्टिवल की लोकप्रियता को भुनाते हुए आयोजक ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा लेना चाहते हैं । इन सवालों के जबाव अबतक अनुत्तरित हैं । हलांकि इस बार जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के प्रोड्यूसर संजॉय रॉय के हवाले से खबरें छपी कि मेले के आयोजन में तकरीबन डेढ़ करोड़ रुपए का नुकसान होगा । आयोजकों की दलील थी कि एकदम आखिरी वक्त में दो बड़े प्रायोजकों ने हाथ खींच लिया । साहित्यक मेले का इस साल का बजट तकरीबन साढ़े पांच करोड़ का था और प्रायोजकों से चार करोड़ रुपए मिले थे । इस लिहाज से मोटे तौर पर जो बैलेंस शीट बनती है उसमें डेढ करोड़ का नुकसान है ।
मैंने इस मेले को साहित्य का मीना बाजार इस वजह से कहा क्योंकि इस बार मेले में मीना बाजार में मौजूद तकरीबन हर चीज वहां मौजूद थी एक सिर्फ चरखी को छोड़कर । इस मेले के पहले इस साल रायल्स इलेवन और लेखकों की टीम के बीच एक क्रिकेट मै भी खेला गया । मेले को सफल बनाने के लिए कई फिल्मी सितारों को भी बुलाया गया । इस बार पहली बार शाम को होनेवाले म्यूजिकल कार्यक्रम को आयोजन स्थल, दिग्गी पैलेस से हटाकर एक अलग होटल के लॉल में आयोजित किया गया । जहां शामिल होने के लिए तीन सौ रुपए का टिकट भी था । लेकिन ऐसा नहीं है कि जयपुर साहित्य उत्सव सिर्फ कारोबार है, सिर्फ चकल्लस का अड्डा है । जैसा कि हमारे कई बुद्धिजीवी और बुद्दिजीवी होने का भ्रम पाले बैठे लोग सोचते हैं । जयपुर लिट फेस्ट में कई गंभीर मुद्दों पर भी चर्चा हुई । कई लोगों को इस बात पर आपत्ति है कि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में साहित्यक विमर्श के नाम पर हल्की चर्चा हुई । यह मानसिकता उन लोगों की है जो पूर्वग्रह से ग्रसित हैं और समाज में कुछ भी अच्छा और रचनात्मक घटित होना, उनके हिसाब से देश की अस्सी फीसदी गरीब जनता के साथ छल है ।
इस तरह के तर्क देनावाले लोग यह भूल जाते हैं कि इसी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के सत्र ऑफ वुमन आुटकास्ट्स प्रजेंट्स एंड रिबेल्स में में अपने जीवन काल में ही महान लेखिका का दर्जा हासिल कर चुकी महाश्वेता देवी ने कहा था कि सपने देखना इंसान का पहला और मूलभूत अधिकार है । नक्सलवादी भी सपने देखते हैं । उनका अपराध यही तो है कि उन्होंने सपने देखने का सहस किया, तो उनको फिर यह अधिकार क्यों नहीं होना चाहिए । महाश्वेता देवी के इस बयान पर लंबा विमर्श चला । अखबारों में विशेष संपादकीय लिखे गए । एक ओर जहां महाश्वेता यह बात कह रही थी वहीं दूसरी ओर इसी मेले में किनशिप्स ऑफ फेश नाम के सत्र में तिब्बती धर्मगुरू और नोबेल पुरस्कार प्राप्त दलाई लामा ने शांति की जमर वकालत की । दलाई लामा ने कहा कि जो लोग मैं मैं के बारे में सोचते हैं उन्हें दिल का दौरा पड़ने की संभावना ज्यादा रहती है । दिल पर ऐसा दबाव ना बनाएं । दूसरों के बारे में भी सोचें । यही इस तरह के साहित्यक उत्सव की खूबसूरती है । उसी मेले में पाकिस्तान की उर्दू साहित्यकार और महिलावादी लेखिका फहमीदा रियाज का दर्द भी झलक आया, जब उन्होंने पूछा कि कहां जाऊं- उस पार जाऊं तो लोग मुझे भारत का एजेंट कहते हैं और यहां आती हूं तो विरोध की धमकी दी जाती है । धर्म में औरतों की हालात पर गीतकार जावेद अख्तर और फहमीदा के बीच जमकर तकरार हुई । जावेद का मानना था कि हर धर्म औरतों के खिलाफ है जिसका  फहमीदा ने जमकर विरोध किया और कहा कि इस तरह किसी भी मसले का सरलीकरण नहीं किया जा सकता है ।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में जो और बात रेखांकित की जा सकती है वह यह है कि इसमें युवाओं की भागीदारी ने पिछले कई सालों के कीर्तिमान तोड़ दिए । इस बार के साहित्योत्सव में स्कूली छात्रों ने भी जमकर हिस्सा लिया । स्कूली छात्रों की भीड़ को देखकर ब्रिटिश लेखक एच जैक्ब्सन ने मजाक में कहा- हमारे मुल्क में मेरे श्रोताओं की औसत उम्र नब्बे साल से ज्यादा रहती है लेकिन यहां जयपुर में मुझे औसतन चौदह साल की बच्चियां प्रशंसक के रूप में मिली । मजाक में कही इस बात पर गंभीरता से चिंतन किया जा सकता है । हम इसको अपने देश के किशोर और नौजवानों के साहित्य में झुकाव के तौर पर देख सकते हैं । कई हिंदी लेखकों को यह अंग्रेजीवालों का जमावड़ा लगता है लेकिन इस बार एक और बात साफ हो गई कि हिंदी और उर्दू के सत्रों में अंग्रेजी साहित्य के सत्रों से ज्यादा श्रोता मौजूद थे । यह भी तो कुछ ना कुछ कहता ही है जिसको डिकोड किया जाना चाहिए । जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल साहित्य का मीना बाजार तो बन गया है लेकिन अगर इस मीना बाजार से देऎश के किशोरों और युवाओं के बीच साहित्य के सवालों को सुनने और उससे टकराने की रुचि जागती है तो इस मीनाबाजर का स्वागत किया जाना चाहिए । इस मीना बाजार से अगर देश के किसी भी हिस्से में नई पीढ़ी में साहित्य का संस्कार विकसित होता है तो हमें तमाम विरोध के बावजूद इसका समर्थन करना चाहिए ।

 

1 comment:

Anonymous said...

बहुत खुब
rohit sharma