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Saturday, August 10, 2013

बीजेपी की चुनौतियां

महंगाई, भ्रष्टाचार, गरीबी की परिभाषा, रिटेल में विदेशी निवेश के उत्साहजनक परिणाम नहीं मिल पाने और खाद्य सुरक्षा अध्यादेश के बहाने सहयोगियों के साथ चल रहे शह और मात के खेल के बीच पूरे देश में कांग्रेस के विरोध में एक माहौल दिखाई देता है । मनमोहन सिंह सरकार पर फैसले नहीं लेने के आरोप लग रहे हैं । देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के खिलाफ इस माहौल को भुनाने में जुटी हुई है । बीजेपी के सामने दो हजार चौदह का आम चुनाव है और उसने नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में चुनाव लड़ने का फैसला किया है । मोदी को एक मजबूत नेता के तौर पेश करने की बेहद सधी हुई रणनीति पर काम किया जा रहा है । उनके पक्ष में माहौल बनाने में वो खुद और पार्टी प्राणपन से लगी है । सफलताएं भी मिल रही है । लेकिन हाल में भारतीय जनता पार्टी में दो ऐसी घटनाएं हो गई जो पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है । पार्टी की रणनीति पर ब्रेक लगा सकती है । पहली घटना हुई मध्य प्रदेश में । सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर के महाकाल मंदिर से चुनाव पूर्व साठ दिनों की अपनी जन आशीर्वाद यात्रा शुरू की । यह यात्रा सूबे के दो सौ उनतीस विधानसभाओं से गुजरेगी । उस यात्रा की आगाज के दौरान पोस्टरों से नरेन्द्र मोदी का नदारद रहना बहुत कुछ कह गया । शिवराज की इस यात्रा की शुरुआत के दौरान लालकृष्ण आडवाणी के पोस्टर बेहद प्रमुखता से लगाए गए । उनके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी, पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और यहां तक कि अनंत कुमार के भी पोस्टर लगे लेकिन नरेन्द्र मोदी गायब । जबकि नरेन्द्र मोदी पार्टी की कैंपेन कमेटी के मुखिया हैं । जब शिवराज से इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने जवाब टाल दिया । यह कोई चूक नहीं बल्कि एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है । मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सूबे के कामकाज और आगामी विधानसभा और लोकसभा में सफलता का सेहरा किसी और के सिर नहीं बंधने देना चाहते हैं । शिवराज सिंह चौहान का व्यक्तित्व बेहद विनम्र है और वो बड़े बड़े दावों और जुमलों के वीर नहीं हैं लेकिन अपनी बात बेहद दृढता और सोच समझ कर रखते हैं । उन्होंने अपनी जन आशीर्वाद यात्रा का दौरान इस बात को जोर देकर दोहराया कि आडवाणी भारतीय जनता पार्टी के सर्वोच्च नेता है । उन्होंने यह भी कहा कि आडवाणी ने भारतीय जनता पार्टी में उनके जैसे कई और नेता तैयार किए । इशारा साफ था ।
दरअसल शिवराज सिंह चौहान और मोदी के बीच सबकुछ सामान्य नहीं होने की नींव पार्टी की संसदीय बोर्ड से शिवराज को बाहर रखने के बाद से ही पड़ गई थी । शिवराज सिंह चौहान को जब भी मौका मिलता है वो इस बात को लेकर अपनी नाराजगी प्रदर्शित कर ही देते हैं । लेकिन उनकी नाराजगी का अंदाज अलहदा है । सूबे में विकास के बावत पूछे जाने पर उन्होंने एक इंटरव्यू में तमाम लोगों के साथ जुम्मन का नाम लेते हुए कहा था कि जब तक विकास उस तक नहीं पहुंचता है तब तक वो अर्थहीन है । यहां भी इशारा साफ था । वो समावेशी विकास के पैरोकार हैं । जबकि मोदी तो मुस्लिम टोपी तक पहनने से इंकार करते रहे हैं ।  इसके अलावा अगर हम उत्तराखंड त्रासदी के वक्त के शिवराज सिंह चौहान के ट्वीट देखें तो वहां से भी जो संकेत मिलते हैं वो मोदी के लिए चिंताजनक हैं । उन्होंने ट्वीट किया था कि मध्य प्रदेश सरकार के हेलीकॉप्टर ने उत्तराखंड में फंसे तीर्थयात्रियो को बाहर निकाला बगैर यह देखे कि वो किस राज्य के हैं । यह वो दौर था जब मोदी गुजरात के लोगों को वहां से बाहर निकालने में जुटे थे । उके विरोधी उनको क्षेत्रीय नेता के तौर पर पेश कर रहे थे। इस तरह के माहौल में शिवराज ने ट्वीट कर अपनी पोजिशनिंग एक ऐसे नेता की कर ली जो क्षेत्रीय क्षत्रप से ज्यादा की सोच रखता है।
हलांकि नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आशीर्वाद प्राप्त है लेकिन इस फ्रंट पर भी शिवराज सिंह चौहान को कमजोर कर नहीं आंका जा सकता है । उनकी ट्रेनिंग भी स्वयंसेवक के तौर पर ही हुई है और मध्य प्रदेश में उन्होंने संघ के एजेंडे को बेहतर तरीके से बगैर किसी हो हल्ले के लागू भी किया है । हो सकता है कि संघ शिवराज सिंह चौहान को मोदी के पक्ष में मना ले लेकिन शिवराज को जो संदेश देना था वो उन्होंने दे दिया । जनता और कार्यकर्ताओं के बीच जो संदेश जाना था चला गया । संघ ने मोदी को आगे बढाया है और अब उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वो मोदी-शिवराज के बीच के इस मनभेद को दूर करे । मोदी को नजदीक से जानने वालों का मानना है कि वो किसी भी चीज को जल्दी भूलते नहीं हैं। वो बातचीत में कहते भी हैं कि माफ कर दो लेकिन भूलो नहीं। उनका यह स्वभाव भी दोनों के बीच की स्थितियों के सामान्य होने की राह में बड़ी बाधा है । 
दूसरी घटना हुई कि पार्टी के वरिष्ठ नेता और वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे शत्रुघ्न सिन्हा ने भी इशारों इशारों में अपना मोदी विरोध जता दिया । शिवराज की ही तरह सिन्हा ने भी आडवाणी को पार्टी का सर्वोच्च नेता करार दिया है । शत्रुध्न सिन्हा पार्टी के उस धड़े को वाणी दे रहे हैं जो यह मानता है कि वो नमोनिया से ग्रस्त नहीं हैं । शत्रुध्न सिन्हा दो दिनों तक गरजते रहे लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं ने अध्यक्ष राजनाथ सिंह के विदेश में होने के बहाने की आड़ में इस प्रकरण से पल्ला झाड़े रखा । शत्रुघ्न सिन्हा का बयान इस लिहाज से भी अहम हो गया है कि हाल ही में बिहार में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन टूटा है । दोनों पार्टी के नेता एक दूसरे के खिलाफ जहर उगल रहे हैं । माहौल ऐसा बनता जा रहा है कि चुनाव बाद की स्थितियों में नीतीश कुमार किसी भी कीमत पर मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी को समर्थन नहीं देंगे ।  दरअसल बिहार में बीजेपी अपने दम पर लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें जीतने का आकलन किए बैठी है । ऐसे माहौल में शत्रु भैया की नाराजगी पार्टी को भारी पड़ सकती है । शत्रुध्न सिन्हा और शिवराज के बयानों से जिस तरह से आडवाणी के लिए शब्द निकल रहे हैं वही चुनाव बाद की स्थितियों में नरेन्द्र मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती हो सकती है ।  लोकसभा चुनाव में अभी तकरीबन दस महीने बाकी हैं । यह देखना दिलचस्प होगा कि भारतीय जनता पार्टी जनता की कांग्रेस से नाराजगी को भुनाने में कामयाब होती है या फिर आपसी महात्वाकांक्षा का शिकार होकर रह जाती है ।

3 comments:

मार्कण्‍डेय पाण्‍डेय said...

बहुत सुंदर आलेख है ।
मार्कण्‍डेय पाण्‍डेय
mpprayag@gmail.com

Nil nishu said...

आपसी महत्वाकांक्षा..... ?
वाह बढ़िया लेख ....

Nil nishu said...

आपसी महत्वाकांक्षा..... ?
वाह बढ़िया लेख ....