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Monday, September 2, 2013

बरगलाने की सियासत

आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन का सह-संस्थापक और भारत के विभिन्न शहरों को अपनी आतंकवादी हमलों से थर्रानेवाला यासीन भटकल की गिरफ्तारी के चंद घंटों बाद ही उसपर सियासत शुरू हो गई । समाजवादी पार्टी के सचिव कमाल फारुकी ने अपने बयान से आतंकवादी यासीन भटकल की गिरफ्तारी पर भ्रम पैदा करने की कोशिश की । कमाल फारूकी ने कहा कि भटकल अगर आतंकवादी है तो उसे सजा मिलनी चाहिए लेकिन अगर सिर्फ मुसलमान होने की वजह से उसे पकड़ा गया है तो हमें सावधान रहना चाहिए क्योंकि इससे बगैर जांच के एक समुदाय विशेष की छवि को धक्का पहुंच सकता है । क्या फारूकी ने कभी ये अनुसंधान करने की कोशिश की क्यों कर आतंक के साथ एक समुदाय विशेष के लोगों का ही का नाम जुड़ता है । क्या उसकी कोई सामाजिक, आर्थिक और अन्य वजहें हैं । बयानवीर कमाल फारुकी यह बात क्यों भूल गए कि यासीन भटकल को अमेरिका तक ने आतंकवादियों की सूची में शामिल किया हुआ है । कमाल फारूकी को यह समझना होगा कि आतंक का ना तो कोई रंग होता है और ना ही कोई मजहब । आतंकवादी ना तो भगवा आतंकवादी होता है और ना ही वह इस्लामिक आतंकवादी होता है, वो सिर्फ मौत का सौदागर होता है  । दरअसल फारूकी ने यह बयान बहुत सोच-समझ कर दिया है । उत्तर प्रदेश में विश्व हिंदू परिषद की चौरासी कोसी परिक्रमा को रोककर अखिलेश सरकार ने मुसलमानों को एक संदेश देने की कोशिश की योजना बनाई थी । नूरा कुश्ती के तौर पर आयोजित चौरासी कोसी परिक्रमा के बहाने सूबे के मुस्लिम समुदाय में भय पैदा करना था, ताकि वोटों का ध्रुवीकरण हो सके। लेकिन विश्व हिंदी परिषद की धर्म की आड़ में की गई राजनीतिक यात्रा को पर्याप्त जनसमर्थन नहीं मिलने से मुलायम की उस योजना पर पानी फिर गया । अब कमाल फारुकी ने आतंकवादी यासीन भटकल पर बयान देकर संदेह का धुंध खड़ा करने की कोशिश की है । कमाल फारुकी समाजवादी पार्टी के सदस्य हैं और वो इस तरह का बयान अपने आलाकमान की मंजूरी के बगैर दे सकते हैं, इसमें संदेह होता है । समाजवादी पार्टी के कर्ताधर्ता को लगता है कि इस तरह के बयानों से वो अपने मुस्लिम वोटबैंक को और पक्का कर लेंगे । समाजवादी पार्टी नेताओं को
यह बात समझने की जरूरत है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भी अगर वो वोटों की राजनीति करेगें तो उसका फायदा लंबे समय तक मिलने वाला नहीं है संवेदनाओं को बार बार नहीं भुनाया जा सकता है ना तो बीजेपी और ना ही मुलायम सिंह यादव यह बात समझ रहे हैं । बीजेपी भी बार-बार राम मंदिर की राजनीति के फेर में पड़ती है । देश के सियासतदां को अब यह बात जान लेनी चाहिए कि मुसलिम समुदाय अब अपने हितों को बखूबी समझने लगी है और बरगलानेवालों की पहचान भी उनको है । और वक्त आने पर वो इस तरह की सियासत करनेवालों को सबक भी सिखाती रही है ।


इसके पहले वोटों के लिए इसी तरह का खतरनाक खेल कांग्रेस पार्टी भी खेलती रही है । दिल्ली के बटला हाउस एनकाउंटर पर भी लंबे समय तक सवाल खड़े होते रहे । कांग्रेस पार्टी में मुसलमानों के रहनुमा होने का दावा करनेवाले दिग्विजय सिंह ने चंद फोटोग्राफ्स के आधार पर दिल्ली के बटला हाउस एनकाउंटर को शक के दायरे में ला दिया था । दिग्विजय सिंह ने साफ तौर पर बटला हाउस मुठभेड़ को फर्जी तो करार नहीं दिया लेकिन उसपर सियासी आंसू बहाकर एक समुदाय विशेष को बरगलाने का दांव चला था । जबकि उनकी पार्टी के ही तत्कालीन गृहमंत्री इस एनकाउंटर को सही करार दे चुके थे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और कोर्ट ने भी मुठभेड़ को सही ठहराया था दरअसल दिग्विजय सिंह और उनकी पार्टी कांग्रेस ने दो हजार दस के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के वक्त वोटों के ध्रुवीकरण के लिए बटला हाउस एनकाउंटर को भुनाने की कोशिश की थी लेकिन वहां दि्गविजय और कांग्रेस का दांव उल्टा पड़ गया था कांग्रेस इस बात का आकलन नहीं कर पाई कि उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को इस बात का एहसास हो गया था कि कांग्रेस वोटों के लिए उनकी भावनाओं के साथ लगातार खिलवाड़ कर रही है लिहाजा राहुल गांधी के तमाम जोर लगा देने के बाद भी कांग्रेस विधानसभा चुनाव में खड़ी तक नहीं हो पाई । कहते हैं कि काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती है । हमारे देश की सियासी जमात को यह भी सोचना होगा कि ऐसा करके वो एक पूरी जमात को इस बात का एहसास बार-बार दिलाते हैं कि पूरे समाज के साथ इंसाफ नहीं हो पा रहा है
अपनी सत्ता के लिए वो जानते बूझते देश का बहुत बड़ा नुकसान कर देते हैं अगर एक समुदाय विशेष को बार बार यह एहसास दिलाया जाएगा कि इस देश में उनके साथ न्याय नहीं हो पा रहा है तो उस समुदाय विशेष की राष्ट्र और वहां की राजनीतिक व्यवस्था में आस्था धीरे धीरे खत्म होने लगती है । वैसी स्थिति भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत घातक होगी   मंथन तो मुस्लिम समाज को भी करना होगा कि कब तक कमाल फारूकी जैसे नेता उनकी संवेदनाओं के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे कब तक उनका इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर होता रहेगा मुस्लिम समाज को वोट बैंक की राजनीति करनेवालों की पहचान कर उनको हर मौके पर सबक सिखाना होगा मुस्लिम समाज के रहनुमाओं को यह हिम्मत भी दिखानी होगी कि अगर कोई आतंकवादी है चाहे वो किसी भी समुदाय का हो तो उसकी सार्वजनिक तौर पर निंदा करनी होगी उन्हें कमाल फारूकी जैसे नेताओं से मुसलमानों की शिक्षा और बेहतरी के बारे में सवाल करना होगा मुस्लिम समाज के नवयुवकों के लिए रोजगार और कारोबार के अवसरों के बारे में पूछना होगा अगर ऐसा होता है तो ना केवल उस समुदाय की बेहतरी होगी बल्कि मुल्क की जम्हूरियत को भी इससे ताकत मिलेगी । मुसलमानों की बेहतरी का दावा करनेवाले राजनीति के ठेकेदारों को सीधा पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में क्या काम किया है ।
दूसरी अहम बात यह कि आतंक के खिलाफ लड़ाई में राजनीतिक दलों को आपसी मतभेद भुलाकर और लोभ-लाभ से उपर उठकर खड़ा होना पड़ेगा । जिस तरह से अमेरिका में अगर कोई भी आतंकवादी वारदात होती है तो रिपब्लिकन और डेमोक्रैट एक आवाज में कहते हैं कि वो सबसे पहले अमेरिकन हैं । उसी तरह से आतंक के खिलाफ लड़ाई में हमें भी यह कहना सीखना होगा कि हम सबसे पहले भारतीय है । जब हमारे दिलो दिमाग में देश सर्वोपरि होगा तो इस तरह की तुच्छ राजनीति से देश को नुक्ति मिलेगी । लेकिन हमारे नेताओं के लिए सबसे उपर व्यक्तिगत हित हो गए हैं उसके बाद पार्टी हित और फिर अगर वक्त बचता है तो राष्ट्रहित । इसको ठीक उल्टा करने की जरूरत है । अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो हमारे समाज के दुश्मनों को हमें बांटने और बरगलाने का मौका मिलता रहेगा ।

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