भारत सरकार के मानव संस्थान विकास मंत्रालय से
संबद्ध एक संस्था है नाम है राष्ट्रीय पुस्तक न्यास। इस संस्थान की स्थापना 1957
में देश में पुस्तक संस्कृति के विकास के लिए की गई थी। इसका उद्देश्य हिंदी,
अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में उच्च कोटि की पुस्तकों का प्रकाशन और पाठकों
तक उचित मूल्य पर पहुंचाना है। इसके अलावा इस संस्थान का उद्देश्य देश में पुस्तक
पढ़ने की प्रवृति को बढ़ावा देना भी है जिसके लिए ये पुस्तक मेलों का आयोजन आदि
करती है। दिल्ली में प्रतिवर्ष आयोजित होनेवाला विश्व पुस्तक मेला इसी उद्देश्य की
पूर्ति के लिए किया जाता है। लेखकों और संस्थाओं को आर्थिक अनुदान भी देती है। राष्ट्रीय
पुस्तक न्यास की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक संस्थान बच्चों के लिए
भीली, गोंडी, संथाली, और कई उत्तर पूर्व की भाषाओं जैसे नागा, भूटिया, बोरो, गारो,
खासी, कोकबोरोक, लेप्चा, लिंबू, मिंजो आदि में पुस्तकों का प्रकाशन करती है। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास का दावा है कि वो
उन विषयों के पुस्तकों के प्रकाशन पर विशेष ध्यान देता है जो अन्य प्रकाशकों
द्वारा पर्याप्त रूप से प्रकाशित नहीं की जाती है। इसके अलावा ये जानकारी भी
उपलब्ध है कि न्यास विदेशों में भी पुस्तक प्रोन्नयन के लिए केंद्रीय अभिकरण के
रूप में विभिन्न अंतराष्ट्रीय पुस्तक मेलों में सहभागिता करता है और वहां भारत के
विभिन्न प्रकाशकों की चुनिंदा पुस्तकों की प्रदर्शनियों का आयोजन करता है। देश में
पुस्तक संस्कृति के निर्माण और विकास के लिए न्यास का काम उचित कहा जा सकता है
लेकिन विदेशों में पुस्तक प्रोन्नयन का काम किस तरह होता है इसको समझने की जरूरत
है।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास मैक्सिको में तीस
नवंबर से आठ दिसंबर तक आयोजित होनेवाले पुस्तक मेले में भाग लेने जा रहा है। इसके
पहले न्यास फ्रैंकफर्ट, मास्को, संदन, बीजिंग, आबू धाबी और शारजाह के अलावा कई
अन्य देशों में पुस्तक प्रोन्नयन हेतु वहां लगनेवाले पुस्तक मेलों में भाग ले चुका
है। यहां इस बात पर गौर करना जरूरी है कि इनमें से ज्यादातार पुस्तक मेले बिजनेस
टू बिजनेस यानि प्रकाशकों के विभिन्न कारोबार के लिए आयोजित किए जाते हैं पाठक
वहां पुस्तक खरीद नहीं कर सकते हैं। मैक्सिको में आयोजित होनेवाला पुस्तक मेला बी
टू सी यानि बिजनेस टू कस्टमर (कारोबार के साथ पुस्तक बिक्री) है जिसमें भाग लेने
के लिए राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत से 18 लेखकों का भारी भरकम प्रतिनिधिमंडल लेकर
जा रहा है। इस प्रतिनिधि मंडल में सी एस लक्ष्मी, लीलाधर जगूड़ी, सुकन्या दत्ता,
मकरंद परांजपे, विनॉय बहल, अरुप कुमार दत्ता, मंजुला राणा, मिनि सुकुमार, मधु पंत,
अनुष्का रविशंकर, रचना यादव, कैलाश विश्वकर्मा, योगेन्द्र नाथ अरुण, सुबीर रॉय,
सोन्या सुरभि गुप्ता, अमीश त्रिपाठी(सहायक के साथ), बी आर रामकृष्णा और
दिव्यज्योति मुखोपाध्याय शामिल हैं। इन लेखकों के अलावा न्यास के अधिकारियों और
कर्मचारियों की टीम भी मैक्सिको में पुस्तकों के प्रोन्नयन हेतु जा रहे हैं। सवाल
ये उठता है कि इतने लेखकों को ले जाने का औचित्य क्या है और वो किस तरह से वहां
पुस्तकों का प्रोन्नयन करेंगे। वो क्या वहां आनेवाले प्रकाशकों के साथ बातचीत करके
भारतीय भाषा के पुस्तकों का प्रोन्नयन करेंगे या फिर भारतीय भाषा के लेखकों की
पुस्तकों के अनुवाद के अधिकार आदि पर बात करेंगे। इन सवालों के उत्तर खोजने की
जरूरत है। सवाल तो ये भी उठता है कि पुस्तक न्यास के किस नियम के तहत इतनी बड़ी
संख्या में लेखकों को विदेश यात्रा पर ले जाया जा रहा है और इनके चयन का मानदंड
क्या है। मैक्सिको जानेवाले लेखकों का चयन एक समिति ने किया जिसमें इंदिरा गांधी
राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी, साहित्य अकादमी के सचिव के
एस राव और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अखिलेश मिश्र आदि शामिल थे। इस बात की
पड़ताल होनी चाहिए कि क्या उनके सुझाए नामों में न्यास के अध्यक्ष ने कोई बदलाव
किया या नहीं। अगर किया तो वो किन नियमों के तहत किया।
इसके पहले भी आबू धाबी में आयोजित पुस्तक
मेले में लेखकों और न्यास के कर्मचारियों और अधिकारियों को ले जाने पर विवाद हो
चुका है। अबूधाबी में पुस्तक के प्रोन्नयन में न्यास के दर्जनभर से अधिक
कर्माचरियों को ले जाया गया था जिसमें अधिकारियों के निजी सहायक तक शामिल थे। इसके
अलावा वहा जाने वाले लेखकीय प्रतिनिधिमंडल में कुछ ऐसे लोग भी गए थे जिनकी लेखकीय
प्रतिभा से अभी साहित्य जगत का परिचय होना शेष है। दरअसल इस तरह के पुस्तक मेलों
में लेखकों के प्रतिनिधिमंडल को ले जाने का काम साहित्य अकादमी का होता है।
मैक्सिको पुस्तक मेला में भी साहित्य अकादमी की टीम अलग से जा रही है बावजूद इसके
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास डेढ दर्जन लेखकों को लेकर जा रहा है। इस बात की पड़ताल
होनी चाहिए कि विदेशों में बिजनेस टू बिजनेस पुस्तक मेलों में में कितने भारतीय
लेखकों की कृतियों के अनुवाद का अधिकार बिक सका, कितनी पुस्तकों के प्रकाशन को
लेकर विदेशी प्रकाशकों के साथ करार हुआ और सबसे बड़ी बात कितने भारतीय लेखकों का
प्रकाशन उस देश की भाषा में हो सका। यहां पाठकों को यह भी जानना चाहिए कि पिछले
मैक्सिको पुस्तक मेले में भी न्यास की टीम गई थी लेकिन प्राप्त जानकारी के मुताबिक
वहां कोई कारोबारी करार नहीं हो पाया था। जरूरत इस बात की है कि न्यास के विदेशों
में किए जा रहे पुस्तक प्रोन्नयन के इन कामों के बारे में सूक्ष्मता से जांच की
जानी चाहिए क्योंकि न्यास करदाताओं की गाढ़ी कमाई से चलता है और वहां किसी तरह के
अपव्यय पर ध्यान रखना जरूरी है।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास का मुख्य काम उचित
मूल्य पर भारतीय भाषाओं के पुस्तकों का प्रकाशन है लेकिन पुस्तक प्रकाशन की क्या
स्थिति है और किस अनुपात में भारतीय भाषाओं की पुस्तकों का प्रकाशन हो रहा है ये
जानना भी दिलचस्प होगा। हर घर तक
पुस्तक पहुंचे इसके लिए जरूरी है पुस्तकों की उपलब्धता को राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
सुनिश्चित करे। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत विश्व का छठा सबसे बड़ा किताबों का बाजार है । अनुमान के मुताबिक
किताबों का ये बाजार सालाना करीब साढे उन्नीस फीसदी की दर से बढ़ेगा और 2020 तक इस
बाजार का आकार तेहत्तर हजार नौ सौ करोड़ तक पहुंच जाएगा । किताबों के बाजार में
हिंदी किताबों का शेयर पैंतीस फीसदी है और अन्य भारतीय भाषाओं की किताबों की
हिस्सेदारी मात्र दस फीसदी है। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास को ये सुनिश्चित करना चाहिए
कि भारतीय पुस्तक बाजार में अन्य भारतीय भाषा की पुस्तकें भी आनुपातिक हद में
रहें। मैक्सिको जानेवाले लेखकों की सूची पर ध्यान दें तो यहां भी भारतीय भाषाओं के
लेखकों के प्रतिनिधित्व में एक असंतुलन साफ दिखाई देता है। देश में आयोजित
होनेवाले पुस्तक मेलों से पुस्तक बाजार में भारतीय भाषाओं की हिस्सेदारी बढ़ाई जा
सकती है। देश का तीन सबसे बड़े पुस्तक मेला में से एक पटना पुस्तक मेला में
राष्ट्रीय पुस्तक न्स की अनुपस्थिति रेखांकित की जानी चाहिए। मैक्सिको पुस्तक मेला
में भागीदारी और पटना पुस्तक मेला में अनुपस्थिति, हैरान करती है।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से अपेक्षा ये की
जाती है कि वो उच्च कोटि के साहित्य या फिर उच्च कोटि के लेखन को भारतीय पाठकों के
सामने उचित मूल्य पर प्रस्तुत करेंगे लेकिन कई ऐसी संपादित पुस्तकें वहां से
प्रकाशित हुई हैं जो बहुत ही निम्न कोटि की हैं। किसी का नाम लेना यहां उचित नहीं
होगा लेकिन स्तरीयता से भी कई बार समझौता होता है। उन लेखकों की वो कृतियां भी
घुमा फिराकर यहां से प्रकाशित हो जाती हैं जो पहले से किसी ना किसी प्रकाशक के
यहां से प्रकाशित हो चुकी हैं। भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन
इस संस्थान को चलाने के लिए बोर्ड ऑफ ट्रस्टी होते हैं, एक्जीक्यूटिव कमेटी होती
है। अलग अलग भाषाओं की सलाहकार समितियां होती हैं। इतना बड़ा अमला होने के बावजूद
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास अपने रचनात्मक कार्यों की वजह से चर्चा में नहीं आता है। आज
भी देशभर में पुस्तकों की अनुपलब्धता पर चर्चा होती है, पुस्तकों की कम होती
दुकानों को लेकर बौद्धिक वर्ग में एक खास तरह की चिंता लक्षित की जा सकती है लेकिन
इस दिशा में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास का प्रयास भी दिखाई नहीं देता है। अपनी
स्थापना के छह दशक से अधिक बाद अब राष्ट्रीय पुस्तक न्यास को बदलते समय के साथ
अपनी कार्यशैली भी बदलनी चाहिए ताकि समकालीन समय की चुनौतियों से मुठभेड़ कर सके। यह
काम तभी संभव है जब न्यास के चेयरमैन और निदेशक सही फैसले लें और राष्ट्र और पाठक
हित में संस्थान के क्रियाकलापों को तय भी करें और उसका क्रिन्यावयन भी सुनिश्चित
करें। वैसे कई अन्य सांस्कृतिक संस्थाओं की तरह इस वक्त राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
में भी निदेशक का पद खाली है।
3 comments:
आपने एक बहुत जरूरी मुद्दे को उठाया है। सरकारी संस्थाएँ करदाताओं की गाढ़ी कमाई से चलती हैं अत: उन्हें इसके कार्यकपाल के बारे में जानने, प्रश्न करने का पूरा-पूरा अधिकार है। नियमावली, चयन आदि में पारदर्शिता आवश्यक है। इन महत्वपूर्ण बातों की ओर ध्यानाकर्षित करने हेतु आभार।
आपने एक बहुत जरूरी मुद्दे को उठाया है। सरकारी संस्थाएँ करदाताओं की गाढ़ी कमाई से चलती हैं अत: उन्हें इसके कार्यकपाल के बारे में जानने, प्रश्न करने का पूरा-पूरा अधिकार है। नियमावली, चयन आदि में पारदर्शिता आवश्यक है। इन महत्वपूर्ण बातों की ओर ध्यानाकर्षित करने हेतु आभार।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से प्रकाशित किताबें मैं अक्सर पुस्तक मेलों में ही जाकर लेता हूँ। यह तो सच है किताबें काफी अच्छी कीमत में उपलब्ध रहती हैं। हाँ, अमेज़न जैसे बड़े ऑनलाइन स्टोर में शायद यह सुविधा नहीं रहती है। रही लेखकों को ले जाने की बात तो सरकारी तंत्र कैसे काम करता है यह हम सब बखूबी जानते हैं। लेखक कितना भी बढ़ा क्यों न हो वो सरकारी खर्चे पर घूमने का लोभ संवरण नहीं कर पाता है। जाँच तो होनी चाहिए लेकिन शायद होगी नहीं।
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