भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबद्ध एक स्वायत्त संस्था है,राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद। इसको एनसीईआरटी के नाम से भी जाना जाता है।1961 में इसकी स्थापना केंद्र और राज्य सरकारों को स्कूली शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए नीति और कार्यक्रम बनाने पर सुझाव देने के लिए की गई थी। इस संस्था का एक महत्वपूर्ण काम स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन का भी है। पुस्तकों के प्रकाशन में इस संस्था ने वामपंथी लेखकों के प्रभाव में जिस तरह की भाषा और जिस तरह की व्याख्या स्कूली छात्रों को अबतक पढ़ाई है वो एक अलग शोध की मांग करता है। नामवर सिंह से लेकर रोमिला थापर तक एनसीईआरटी की पुस्तकों के लिए नीति निर्धारण करते रहे हैं। परिणाम सबके सामने हैं कि छात्रों को क्या पढाया जा रहा है। अभी इस बात की जोरशोर से चर्चा हो रही है कि एनसीईआरटी ने बारहवीं कक्षा की पुस्तक ‘स्वतंत्र भारत में राजनीति’ में अनुच्छेद 370 को समाप्त किए जाने को लेकर महत्वपूर्ण बदलाव कर दिया है। परंतु महत्वपूर्ण बदलाव के नाम पर सिर्फ चंद पंक्तियां जोड़ी गई हैं। इस पुस्तक के पृष्ठ 158 पर यह जोड़ दिया गया है कि 5 अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 द्वारा अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया गया और राज्य को पुनर्गठित कर दो केंद्र शासित प्रदेश-जम्मू कश्मीर और लद्धाख बना दिए गए। न तो इस ऐतिहासिक कदम की पृष्ठभूमि बताई गई और न ही उन कारणों का उल्लेख किया गया है जिसको लेकर भारत सरकार ने ये फैसला लिया। इन कारणों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में विस्तार से बताया भी था, पर इस ओर एनसीईआरटी का ध्यान नहीं गया। ध्यान तो मानव संसाधन विकास मंत्रालय में बैठे जिम्मेदार लोगों का भी नहीं गया।
इस पुस्तक के ‘क्षेत्रीय आकाक्षाएं’ वाले अध्याय में अगर ‘जम्मू एवं कश्मीर’ पर विचार करते हैं तो यहां पहली ही पंक्ति से छात्रों को भ्रामक और गलत जानकारी दी गई है। अब इस पंक्ति पर गौर करिए, ‘आपने जैसा कि गत वर्ष पढ़ा है, जम्मू और कश्मीर को अनुच्छेद 370 के अंतर्गत विशेष दर्जा दिया गया था।‘ गड़बड़ी यहीं से शुरू होती है। यह अर्धसत्य बताकर छात्रों के मन में बचपन से ही गलत जानकारी बिठाई गई है। कहीं भी ये नहीं कहा गया है कि भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 को अस्थायी व्यवस्था बताया गया है। उसको इस तरह से लिखा गया है जैसे कि वो संविधान के अन्य अनुच्छेदों के समान है। इस अस्थायी व्यवस्था को छिपाकर विशेष दर्जा की बात को उभारा गया है और अंत में इसको खत्म करने की बात की गई है। स्वाभाविक तौर पर छात्रों के मन में प्रश्न उठेगा कि अगर मूल संविधान में किसी राज्य या भौगोलिक क्षेत्र को विशेष दर्जा दिया गया था तो उसको क्यों हटाया गया। यह पता नहीं कितने सालों से पढ़ाया जा रहा है और पीढ़ी दर पीढ़ी भ्रामक जानकारी देकर नए तरह का इतिहास गढ़ा जा रहा है।
इसी तरह से पृष्ठ 154 पर लिखा गया है ‘जम्मू और कश्मीर की राजनीति बाहरी और आंतरिक कारणों से विवादास्पद और द्वंद्वपूर्ण बनी रही। बाहर से पाकिस्तान ने सदा दावा किया कि कश्मीर घाटी पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए। जैसा हमने ऊपर जाना, पाकिस्तान ने 1947 में राज्य में कबायली हमला करवाया जिसके परिणामस्वरूप राज्य का एक हिस्सा पाकिस्तानी नियंत्रण में आ गया।‘ अगले पृष्ठ पर कहा गया कि ‘भारत दावा करता है कि इस पर गैर-कानूनी कब्जा किया गया है। पाकिस्तान इस क्षेत्र को ‘आजाद कश्मीर’ कहता है।‘ अब जरा इन पंक्तियों पर सावधानी और सूक्षम्ता से विचार करिए। ये हमारे देश की उस केंद्रीय संस्था की पाठ्य पुस्तक में है जिसको केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। इस पाठ्य पुस्तक का अनुसरण राज्यों के पाठ्यक्रम में भी होता है। इसमें लिखा गया है कि ‘भारत दावा करता है’। ऐसा प्रतीत होता है कि ये पुस्तक भारत के बाहर किसी देश में पढ़ाई जानेवाली हो या पाकिस्तान के पाठ्य पुस्तक में हो। ये लिखने का उद्देश्य और मंशा दोनों समझ से परे है। ये क्यों लिखा और पढ़ाया जा रहा है कि पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर पर भारत ‘दावा’ करता है? क्या लेखकों को या एनसीईआरटी को ये मालूम नहीं है कि भारत का ‘दावा’ नहीं बल्कि वो भौगोलिक क्षेत्र भारत का अभिन्न अंग है और इस बारे में हमारी संसद ने भी प्रस्ताव पास किया हुआ है। स्पष्ट है कि इस पुस्तक के लेखक वस्तुनिष्ठ होने की आड़ में पाकिस्तान का पक्ष भारतीय छात्रों को पढ़वा रहे हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो ये क्यों लिखा जाता कि पाकिस्तान ने जिस इस क्षेत्र पर कब्जा किया हुआ है उसको ‘आजाद कश्मीर’ कहता है। इसमें इस बात का कहीं भी जिक्र नहीं है कि भारत, पाकिस्तान के कब्जावाले कश्मीर को क्या कहता है। इस बात को छुपा ले जाना भी इस पुस्तक के लेखकों और एनसीआरटी में कार्यरत जिम्मेदार लोगों की पाकिस्तान परस्त मानसिकता को सार्वजनिक करता है।
एक और बेहद आपत्तिजनक पंक्ति पृष्ठ संख्या 155 पर है जहां उल्लेख किया गया है कि ‘आंतरिक रूप से भारतीय संघ में कश्मीर के दर्जे के बारे में विवाद है।‘ अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के बाद भारतीय संघ में कश्मीर के दर्जे को लेकर क्या विवाद है इस बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस अध्याय में जम्मू और कश्मीर के बारे में जो अनुच्छेद 370 के खत्म होने के पहले लिखा गया था उसको जस का तस रहने दिया गया और अध्याय के अंत में अनुच्छेद खत्म करने की बात जोड़ दी गई। यह घोर लापरवाही का एक नमूना भर है। इस पंक्ति के तीन चार पंक्तियों के बाद एक और ऐसी बात लिखी गई ‘जम्मू और कश्मीर के बाहर लोगों का एक वर्ग है कि जो विश्वास करता था कि अनुच्छेद 370 द्वारा प्रदत्त राज्य का विशेष दर्जा राज्य को भारत से पूर्ण रूप से एकीकृत नहीं होने देता है।‘ जम्मू और कश्मीर से बाहर के लोगों का एक वर्ग ऐसा सोचता है ये कहने का क्या आधार है। ऐसा प्रतीत होता है कि पूरे राष्ट्र की भावना को या उनकी सोच को एक वर्ग की भावना बताकर छात्रों के मन में शक का बीज बोने का काम बहुत सोच समझकर किया जा रहा है। जबकि अस्थायी अनुच्छेद 370 को खत्म हुए साल भर होने को आए।
इसके अलावा की कई बातें हैं जो इस पुस्तक में इस तरह से कही गई हैं जिससे एक अलग तरह की तस्वीर बनती है। शेख अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉंफ्रेस को धर्मनिरपेक्ष बताया गया पर इस बात का उल्लेख नहीं किया गया कि पहले उसका नाम मुस्लिम कॉंफ्रेस क्यों था? शेख अब्दुल्ला को भारत सरकार ने चौदह साल तक कारावास में क्यों रखा? नेशनल कॉंफ्रेस और कांग्रेस के गठबंधन को भी इसमें गलत बताया गया है। सवाल ये उठता है कि एनसीईआरटी को ऐसी अराजक स्वायत्ता मानव संसाधन मंत्रालय क्यो दे रहा है? क्यों देश विरोधी बातें छात्रों को पढ़ाई जा रही हैं और मंत्रालय और एनसीईआरटी के जिम्मेदार अधिकारी आंखें मूंदे बैठे हैं? क्यों गलत बातों का उल्लेख करके वस्तुस्थिति को छिपाया जा रहा है। क्यों इस तरह की व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है जो छात्रों के मानस पर अपने ही राष्ट्र की गलत छवि बनाती है? समय आ गया है कि इस पाकिस्तान परस्त और राष्ट्र विरोधी व्याख्या को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं।
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