आपके पांव देखे, बहुत हसीन हैं, इन्हें जमीन पर मत उतारिएगा, मैले हो जाएंगे। फिल्म ‘पाकीजा’ ये संवाद बहुधा सुनाई देता है। ये भी सुनने को मिलता है कि ये संवाद अमर हो गया है। दरअसल ये संवाद फिल्म ‘पाकीजा’ की मूल स्क्रिप्ट में नहीं था। जब ये सीन फिल्माया जा रहा था और कैमरा मीना कुमारी के पांव पर पहुंचा तो अचानक कमाल अमरोही के दिमाग में एक मुजरे की याद कौंधी। वो मुजरा था चंदेरी नाम की एक खूबसूरत बाई का, जिसे उन्होंने काफी पहले सुना था। मुजरे में वो अपने पांव को अदा से लहराती थी। कमाल अमरोही ने शूटिंग रोकी और स्क्रीनप्ले में बदलाव करके ये पंक्ति जोड़ दी। हिंदी फिल्मों के इतिहास में कई ऐसी फिल्में हैं जिनके बनने के दौरान के कई रोचक किस्से आज भी सिनेमा प्रेमियों के बीच याद किए जाते हैं। कमाल अमरोही की फिल्म ‘पाकीजा’ इस तरह की फिल्मों में शीर्ष पर है। इसको लेकर सैकड़ों कहानियां कही-सुनी जाती हैं। ये स्वाभाविक भी है क्योंकि 1957 में जिस फिल्म का मूहुर्त हुआ हो और वो पंद्रह साल बाद 1972 में रिलीज हो तो कहानियां तो बनेंगी हीं। इन पंद्रह सालों में इस फिल्म के निर्माता कमाल अमरोही ने कई बार फिल्म का नाम बदला। ‘पाकीजा’ का नाम ‘लहू पुकारेगा’ तो लगभग तय हो गया था, लेकिन जब फिल्म के रिलीज होने का वक्त आया तो वो फिर से ‘पाकीजा’ पर ही जा पहुंचे। कई पुस्तकों में और उस वक्त की पत्रिकाओं में इसका उल्लेख मिलता है कि जब कमाल अमरोही ने फिल्म बनाने की सोची थी उनके दिमाग में अपने जमाने की दो बाइयों का जीवन था। एक तो जद्दनबाई, जिनकी महफिल में जुल्फिकार अली भुट्टो और के एल सहगल जैसे दिग्गज जाते थे और दूसरी थीं गौहर जान, जिसकी आन-बान के किस्से मशहूर हैं। इसके अलावा भी कमाल अमरोही ने कई बाइयों की जिंदगी को नजदीक से देखा था और कइयों के बारे में सुना था। जब मीना कुमारी से उनकी शादी हुई तो कमाल अमरोही ने उनको लीड रोल में लेकर बाइयों की जिंदगी पर एक फिल्म बनाने की सोची जिसका नाम रखा ‘पाकीजा’।
फिल्म शुरू हुई और सबकुछ ठीक चल रहा था इस बीच कमाल अमरोही और उनकी पत्नी और फिल्म की नायिका मीना कुमारी के बीच संबंध खराब हो गए और फिल्म का काम रुक गया। इसको लेकर बहुत कुछ लिखा जा चुका है। लेकिन सात साल के व्यवधान के बाद अगर ‘पाकीजा’ फिर से शुरू हो सकी तो उसके लिए संगीतकार खय्याम और उनकी पत्नी जगजीत कौर की भूमिका को रेखांकित करना जरूरी है। ये वो समय था जब कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को साथ काम करने के लिए अनुरोध पत्र भी लिखा था जिसे मीना कुमारी ने ठुकरा दिया था। कमाल अमरोही परेशान थे। इसी दौर में वो एक दिन अपने दोस्त ख्य्याम के घर गए। वहां जगजीत कौर ने ‘पाकीजा’ की चर्चा छेड़ दी और कमाल अमरोही से अनुरोध किया कि वो अब तक शूट की गई फिल्म उनको दिखाएं। कमाल तैयार हो गए। खय्याम, उनकी पत्नी और कमाल अमरोही ने आधी फिल्म देखी। जगजीत फिल्म के अधूरे हिस्से को देखकर इतनी उत्साहित हो गईं कि उसने मीना कुमारी को मनाने का बीड़ा उठाया। खय्याम और उनकी पत्नी मीना कुमारी के भी अच्छे दोस्त थे। जगजीत कौर ने मीना कुमारी से बात की। मीना कुमारी ने उनको बताया कि कमाल से उनकी बोलचाल बंद है, संबंध बहुत खराब हैं इसलिए ये संभव नहीं है। जगजीत ने हार नहीं मानी और मीना कुमारी को मनाने में लगी रहीं। धीरे-धीरे उनको तैयार कर लिया । मीना कुमारी ने फिर खुद ही कमाल अमरोही को संदेश भेजा कि वो पाकीजा को पूरा करने के लिए तैयार हैं। सात साल के व्यवधान के बाद ‘पाकीजा’ की शूटिंग शुरू हो सकी।
फिर वो दिन आया जब फिल्म रिलीज हुई। फिल्म के प्रीमियर पर मीना कुमारी और कमाल अमरोही साथ बैठे थे। मीना कुमारी के साथ ही खय्याम और जगजीत कौर भी थीं। फिल्म खत्म होने के बाद मीना कुमारी ने जगजीत कौर को गले से लगा लिया। सिनेमा हॉल में ही दोनों काफी देर तक आलिंगनबद्ध रहे और फिर मीना कुमारी ने जगजीत से कहा कि ‘तुम्हारी वजह से ही कमाल का ये सपना साकार हो सका है। तुम्हारी वजह से मैं इतनी अच्छी फिल्म को पूरा कर सकी।‘ भावुकता के इन क्षणों की गवाह बहुत सी फिल्मी हस्तियां बनीं। रिलीज के बाद इस फिल्म ने इतिहास रच दिया। आज पचास साल बाद भी इस फिल्म के गीत, संगीत, फिल्मांकन और निर्देशन की बारीकियां इसको क्लासिक की श्रेणी में रखती हैं।