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Saturday, January 2, 2021

कलाकारों के लिए भी उम्मीदों का नववर्ष


नया वर्ष नई उम्मीद लेकर आया है। वर्ष के पहले ही दिन देश में कोरोना वैक्सीन के आपात उपयोग को मंजूरी मिल गई है। कोरोना महामारी के भीषण संकट से जूझ रहे देशवासियों के मनोबल को बढ़ाने वाला ये सुखद समाचार है। कोरोना की वैक्सीन ने जो उम्मीद जगाई है उससे देशभर के कलाकार भी खुश होंगे और उनकी उम्मीद भी जगेगी। उनके संकट के दिन भी समाप्त होने के आसार बढ़ेंगे। पिछले नौ दस महीने से कोरोना की वजह से कलाओं के प्रदर्शन पर बहुत असर पड़ा था। मंच पर अपनी कलाओं के प्रदर्शऩ से होनेवाली आय पर ग्रहण लगा हुआ है। कुछ दिनों पहले राजस्थान से खबर आई थी कि पद्मश्री से सम्मानित कालबेलिया नृत्य के लिए मशहूर गुलाबो सपेरा अपने घर की बिजली का बिल नहीं भर पा रही थीं। उन्होंने राजस्थान फोरम के अध्यक्ष पंडित विश्वमोहन भट्ट को इस बाबत एक पत्र लिखकर अपनी पीड़ा जताई थी। गुलाबो ने अपने पत्र में लिखा कि बिल का भुगतान नहीं होने की वजह से उनके घर की बिजली काट दी गई है। इस संबंध में उन्होंने राजस्थान के संस्कृति मंत्री बी डी कल्ला से भेंट कर अपनी व्यथा उनके सामने रखी थी। गुलाबो ने अपने पत्र में लिखा है कि ‘मैंने माननीय मंत्री महोदय श्रीमान बी डी कल्ला से जी से भी निवेदन किया था लेकिन उन्होंने भी असमर्थता व्यक्त करते हुए कोई मदद नहीं की।‘ राजस्थान सरकार की संवेदनहीनता के बाद गुलाबो ने राजस्थान फोरम का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने कहा कि उन्हें मदद मांगते हुए बहुत शर्म आ रही है, लोग क्या कहेंगे कि पद्मश्री से सम्मानित कलाकार बिजली का बिल नहीं भर पा रही है। लेकिन बच्चों की खातिर उन्होंने मदद मांगी। राजस्थान फोरम ने उनके बिजली बिल का भुगतान कर दिया जो करीब चौवन हजार रुपए का था। ये हालत तो उस कलाकार की है जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है और जिसने नृत्य की एक विधा को स्थापित कर लोकप्रिय बनाया। 

कोरोना के संकट के समय कलाकारों के सामने जीवन-यापन का बड़ा संकट उत्पन्न हो गया है। कोरोना की वजह से कलाकारों की प्रस्तुतियां बंद हो गईं।     हम इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि जब कलाकार आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं तो उनके साजिंदों का क्या हाल होगा। मंच पर गायन प्रस्तुत करनेवाले कलाकार अपनी आय से अपने साजिंदों को भुगतान करते हैं। ज्यादातर साजिंदों को कलाकार प्रस्तुति के हिसाब से भुगतान करते हैं। कोरोना की वजह से पिछले वर्ष मार्च में लॉकडाउऩ हुआ था तब ये चिंता जाहिर की गई थी। केंद्र सरकार से भी कलाकारों के लिए मदद की अपील की गई थी। सरकार की तरफ से मदद का आश्वासन मिला था। बताया गया था कि देशभर में फैले क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों के जरिए कलाकारों की मदद की जाएगी। क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों को मदद की अपेक्षा कर रहे कलाकारों की सूची बनाने के लिए कहा गया था। पूरे देश में सात सांस्कृतिक केंद्र काम करते हैं जो अपने अपने क्षेत्रों के कलाकारों के संपर्क में रहते हैं। लेकिन सूची बनाने का काम अभी तक कहां पहुंचा ये जानकारी नहीं मिल पाई। कितने कलाकारों को मदद दी गई इसके बारे में भी ज्ञात नहीं हो सका। कई कलाकारों से बात करने के बाद ये पता चला कि कलाकारों को अभी सरकार की तरफ से कोरोना संकट के दौरान कोई आपातकालीन मदद नहीं दी जा सकी है।

इस बीच कलाकारों की मदद के लिए कुछ निजी प्रयास हुए। लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने अपने साथियों के साथ मिलकर कलाकारों की मदद की पहल शुरू की थी। ‘सेव द रूट्स’ के नाम से। इसके तहत लोगों से कलाकारों के आर्थिक मदद की अपील की गई थी। बाद में संस्कृति गंगा न्यास भी इससे जुड़ा और अबतक इसके माध्यम से करीब आठ सौ कलाकारों को आर्थिक मदद दी जा चुकी है। राजस्थान फोरम ने भी कलाकारों की मदद का फैसला लिया है।  छोटे कलाकारों के अलावा बड़े कलाकारों को मंच से होनेवाली आय तो नहीं ही हो रही है, उनको भारत सरकार से मिलनेवाली ग्रांट भी देर सबेर मिल रही है। भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय कलाकारों को प्रोडक्शन ग्रांट और सैलरी ग्रांट देता है। पिछले तीन साल से इसको देने में भी देरी हो रही थी। गुरुओं को उनके शागिर्दों के लिए जो सैलरी ग्रांट मिलती थी उसको सरकार अब सीधे उनके खाते में ट्रांसफर करने लगी है। इसकी वजह से भी परेशानी हो रही है। सैलरी ग्रांट का भुगतान समय से हो अन्यथा कलाकारों को परेशानी होती है। किसी कार्यक्रम में कोई शागिर्द तीन महीने काम करता है और प्रोडक्शन के बाद छोड़ कर चला जाता है। जाने के पहले वो गुरू से तीन महीने का अपना तय वेतन लेकर चला जाता है। सरकार उस सैलरी ग्रांट को अगर दो साल बाद उस शागिर्द के खाते में सीधे ट्रांसफर करेगी तो गुरुओं को नुकसान होगा। क्योंकि गुरू तो पहले ही शागिर्द को भुगतान कर चुके हैं। इसके व्यावहारिक पक्ष को देखा जाना चाहिए। इसपर भी विचार करना चाहिए कि शागिर्द गुरुओं के स्थायी कर्मचारी नहीं होते हैं।

इसके अलावा पिछले दिनों कलाकारों को दिल्ली में मिले सरकारी घरों को खाली कराने के नोटिस की भी खूब चर्चा रही। ये सही है कि कलाकार तय समय सीमा से अधिक समय से इन घरों में रह रहे हैं। उनसे सरकारी घरों को खाली करवाना कानूनसम्मत है, लेकिन कोरोना संकट के समय मानवीय आधार पर भी विचार होना चाहिए था। बिरजू महाराज समेत कई कलाकार सरकारी घरों में रह रहे हैं। ये स्थितियां इस वजह से सामने आ रही हैं कि हमारे देश में कोई सांस्कृतिक नीति नहीं है। कांग्रेस के शासनकाल के दौरान ज्यादातार समय संस्कृति से संबंधित मामलों को चलाने का ठेका वामपंथियों के पास था। तय नीति नहीं होने की वजह से वो अपनी विचारधारा के लोगों को तरह-तरह से उपकृत करते रहते थे। भारत ने संस्कृति को लेकर यूनेस्को कंवेंशन 2005 को 15 दिसंबर 2006 को स्वीकार किया था। यूनेस्को कंवेंशन के मुताबिक कला और संस्कृति को लेकर सरकार की नीति के अंतर्गत इनको संरक्षित करने, उसके लिए कानून बनाने, आर्थिक और अन्य मदद के नियम बनाने से लेकर कार्यक्रमों की नीति बनाना तक शामिल किया गया था। इसके मूल में ये अवधारणा है कि संस्कृति सतत विकास की संवाहक होती है। इस कंवेंशन के मुताबिक सरकार को हर वर्ष अपनी एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी लेकिन पहली रिपोर्ट नरेन्द्र मोदी सरकार ने 29 अप्रैल 2015 में पेश की। इससे ये भी दिखता है कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार संस्कृति को लेकर कितनी गंभीर थी। दरअसल संस्कृति को लेकर जो सबसे बड़ी बाधा है वो ये कि ये सरकारों की प्राथमिकता में नहीं होती है, जिसकी वजह से इसको लेकर कोई ठोस नीति नहीं बन पाती। ठोस नीति के नहीं होने की वजह से अलग अलग विभागों की अपनी अपनी प्राथमिकताएं होती हैं, कई बार कई संस्थाएं एक ही काम कर रही होती हैं। कोरोना काल में जिस तरह से कलाकारों की समस्याएं उभर कर सामने आईं उसने सांस्कृतिक नीति पर गंभीरता से विचार करने की वजह दे दी है। संस्कृति को बेहद संवेदनशीलता के साथ समझने और उसके मुताबिक काम करने की जरूरत है। संस्कृति मंत्रालय बेहद अहम और संवेदनशील मंत्रालय है जिसके जिम्मे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से राष्ट्र निर्माण और उसको मजबूत करने की जिम्मेदारी है। संस्कृति नीति के लिए संस्कृति मंत्रालय को पहल करनी चाहिए, इसके लिए ये सबसे उचित समय है। अगर ऐसा हो पाता है तो फिर गुलाबो जैसी प्रतिष्ठित कलाकार को अपने घर की बिजली का बिल भरने के लिए कहीं हाथ नहीं फैलना पड़ेगा।     


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