करीब दो साल पहले की बात है। सर्दी के दिन थे। किसी मित्र ने दोपहर के भोजन के लिए इंडिया इंरनेशनल सेंटर(आईआईसी) आमंत्रित किया था। डायनिंग हॉल में जगह नहीं थी, तो हमलोग लॉन में अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। अचानक सफेद पैंट शर्ट पहने एक बुजुर्ग पास से निकले, मैंने अपने दोस्त से कहा कि ये तो जम्मू कश्मीर के पूर्व गवर्नर जगमोहन लग रहे हैं। उसने पुष्टि की। जगमोहन जी लॉन में टहल रहे थे। थोड़ी देर टहलने के बाद वो धूप में बैठ गए। मैंने थोड़ा साहस जुटाया और उनको परिचय देकर पास रखे खाली कुर्सी पर बैठ गया। उनसे कश्मीर पर बात शुरू की। उनकी एक बात मुझे अब भी याद है। उन्होंने कहा था कि अनुच्छेद तीन सौ सत्तर समाप्त कर दो, समस्या बहुत हद तक खत्म हो जाएगी। थोड़ी देर की बातचीत के बाद वो ये कहते हुए उठ खड़े हुए कि लाइब्रेरी जाने का समय हो गया है। आईआईसी की लाइब्रेरी जाने के लिए बढ़े, फिर थोड़ा रुके और बोले कि अगर समय मिले तो मेरी किताब ‘माई फ्रोजन टरबुलेंस इन कश्मीर’ पढ़ना। तीन मई को तिरानवे साल की उम्र में जगमोहन जी के निधन की खबर सुनते ही ये मुलाकात याद आ गई।
जगमोहन का जन्म अविभाजित भारत के हफीजाबाद में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार पंजाब आ गया। पंजाब से होते हुए जगमोहन दिल्ली पहुंचे थे। पूरे देश ने उनका नाम इमरजेंसी में तब जाना जब वो दिल्ली विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष थे। उनके उपाध्यक्ष रहते हुए तुर्कमान गेट इलाके की अवैध इमारतों पर बुलडोजर चला था। काफी विरोध हुआ, प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलीं लेकिन जगमोहन ने काम नहीं रुकने दिया था। उस वक्त इस बात की चर्चा थी कि संजय गांधी चाहते थे कि तुर्कमान गेट से जामा मस्जिद साफ-साफ दिखे और उसके बीच कोई बाधा न हो। जगमोहन ने संजय गांधी की इस ख्वाहिश को पूरा किया था। तुर्कमान गेट पर जब इमारतों को ढहाने का काम रोका नहीं गया तो कुछ लोग जगमोहन के पास पहुंचे थे। इलाके के लोगों ने अपने पुनर्वास की बात की और जगमोहन से अनुरोध किया कि उन सबको एक ही जगह रहने की व्यवस्था की जाए। तब जगमोहन ने उनसे दो टूक कहा था कि वो यहां एक दूसरा पाकिस्तान नहीं बसाना चाहते हैं। उमा वासुदेव की उन्नीस सौ सतहत्तर में प्रकाशित पुस्तक ‘टू फेसेस ऑफ इंदिरा गांधी’ में इस प्रसंग का उल्लेख है।
आज हम दिल्ली के ज्यादातर इलाकों को झुग्गियों से मुक्त देखते हैं तो इसके लिए जगमोहन की दूरदर्शी नीति और उनके कठोर निर्णय के अलावा अपने फैसलों के क्रियान्वयन की इच्छाशक्ति जिम्मेदार है। उन्नीस सौ बयासी में दिल्ली में एशियाई खेल का आयोजन हो या फिर उसके अगले साल निर्गुट देशों के राष्ट्राध्यक्षों का सम्मेलन, जगमोहन ने अपनी प्रशासनिक क्षमता की छाप छोड़ी। जगमोहन जब राजनीति में उतरे तो नई दिल्ली लोकसभा सीट से सुपरस्टार राजेश खन्ना को मात दी। इस सीट से तीन बार सांसद रहे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शहरी विकास मंत्री रहे। उनके निधन ने दिल्ली के बौद्धिक और प्रशासनिक जगत को थोड़ा विपन्न कर दिया है।
1 comment:
बहुत बढ़िया लगा पढ़कर।
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