देश की फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे झंडाबरदार हैं जो किसी न किसी मसले पर सरकार को कठघरे में खड़ा करने की फिराक में रहते हैं। चाहे वो फिल्मी से जुड़ी संस्थाओं का विलय हो, ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म के लिए नियमन का मुद्दा हो या कुछ वर्ष पीछे जाएं तो असहिष्णुता का मामला हो या नागरिकता संशोधन कानून की बात हो । बॉलीवुड के कुछ चेहरे हस्ताक्षर अभियान से लेकर बयानबाजी तक में शामिल हो जाते हैं। इनमें से तो एक अभिनेत्री ऐसी भी हैं जिन्होंने इमरजेंसी के समर्थन में उस समय बयान भी दिया था। अब ये सब एक बार फिर से केंद्र सरकार को घेरने के लिए एकजुट नजर आ रहे हैं। मामला है सिनेमेटोग्राफी एक्ट में प्रस्तावित संशोधन का। सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सिनेमेटोग्राफी एक्ट में प्रस्तावित संशोधन पर आम जनता की राय आमंत्रित की थी। मंत्रालय के इस कदम को इन सब ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़कर बयान और हस्ताक्षर अभियान आरंभ कर दिया। लेख लिखने लगे। अपने बयानों में और लेख से इस तरह का माहौल बनाया जा रहा है जैसे सरकार केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को पंगु करना चाह रही है। कहा ये जा रहा है कि सरकार केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से प्रमाणित फिल्मों को जनता की शिकायत के बाद फिर से प्रमाणित करने का अधिकार अपने पास लेना चाहती है। कुछ लोग तो सुपर सेंसर जैसी बातें भी करने लगे हैं। ये सारी बातें आशंकाओं पर आधारित हैं, तथ्यों पर नहीं। अपने बयानों से लेकर लेख में वो अर्धसत्य का प्रदर्शन करके जनता को लगातार भ्रमित कर रहे हैं।
सरकार के खिलाफ जो माहौल बनाया जा रहा है उसका आधार सिनेमैटोग्राफी एक्ट के अनुभाग छह के उपखंड एक में संशोधन है। इस प्रस्तावित संशोधन से फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए मिले प्रमाण-पत्र के पुनरीक्षण की शक्ति केंद्र सरकार को मिलती है। इसमें ये प्रस्तावित किया गया है कि केंद्र सरकार को ये अधिकार होगा कि वो केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से सर्टिफाइड फिल्म को फिर से बोर्ड के चेयरमैन के पास पुनर्विचार के लिए भेज सकती है। जो लोग इस आधार पर सरकार की आलोचना कर रहे हैं और सुपर सेंसर की बात उठा रहे हैं वो लोग इसके आगे की पंक्ति को नजरअंदाज कर रहे हैं। प्रस्तावित संशोधन में कहा गया है कि सरकार के पास अगर सिनेमेटौग्राफी एक्ट के खंड पांच बी (1) के उल्लंघन की शिकायत आती है उसके अंतर्गत ही सरकार ये कदम उठा सकती है। अब यहां ये जानना जरूरी है कि सिनेमैटोग्राफी एक्ट का खंड पांच बी(1) क्या है? इसके अनुसार अगर किसी भी फिल्म से या उसके किसी हिस्से से राष्ट्र की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा और अन्य राष्ट्रों के संबंधों पर असर पड़ता है तो उसको सर्टिफाई नहीं किया जा सकता है। इसमें ही आगे उल्लेख है कि अगर किसी फिल्म से सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टता या नैतिकता या अदालत की अवमानना होती हो तो उसका प्रमाणन नहीं हो सकता है। प्रस्तावित संशोधन में इसको ही स्थापित करने की बात की जा रही है जो सिनेमैटोग्राफी एक्ट 1952 में पहले से मौजूद था। बाद में कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से प्रमाणित फिल्म को केंद्र सरकार पुनर्विचार के लिए बोर्ड को नहीं भेज सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2000 के अपने एक फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट के इस फैसले को बरकरार रखा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट अपने उसी फैसले में ये भी कहता है कि विधायिका किसी खास केस में न्यायिक या कार्यकारी आदेश को उचित कानून बनाकर इसको रद्द कर सकती है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय का तर्क है कि कई बार सरकार को ये शिकायत मिलती है कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से प्रमाणित फिल्म से भी सिनेमैटोग्राफी एक्ट के खंड पांच बी का उल्लंघन होता है, लिहाजा वो अपने पास किसी फिल्म के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए दिए जानेवाले प्रमाणपत्र को पुनर्विचार के लिए बोर्ड के चेयरमैन को भेजने का अधिकार रखना चाहती है। इस वजह से सिनेमैटोग्राफी एक्ट में बदलाव की आवश्यकता है। अगर समग्रता में इस पर विचार करें तो ये बात सामने आती है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय सिनेमैटोग्राफी एक्ट में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले की व्यवस्था को बहाल करना चाहती है। अगर ये संशोधन हो भी जाता है तो सुप्रीम कोर्ट का वो आदेश तो तब भी प्रभावी है कि सरकार किसी खास केस में ही अपनी इस शक्ति का प्रयोग कर सकती है। तो फिर इसमें तानाशाही जैसी बात या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात की बात कहां से आती है।
जब से मामला सामने आया है तब से ये भी कहा जा रहा है कि 2016 में श्याम बेनेगल की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी ने भी इस बारे में कुछ नहीं कहा है। बेनेगल कमेटी ने अपनी जो रिपोर्ट सौंपी थी उसकी सिफारिशों में बिंदु संख्या 5.2 में कमेटी सिनेमैटोग्राफी एक्ट के खंड 5 बी के उल्लंघन की बात करती है और स्पष्ट रूप से कहती है कि अगर इस खंड का उल्लंघन होता है तो किसी फिल्म को प्रमाण पत्र नहीं दिया जा सकता है। बेनेगल कमेटी का गठन तब किया गया था जब अरुण जेटली सूचना और प्रसारण मंत्री थे। उस कमेटी में श्याम बेनेगल के अलावा कमल हासन, राकेश ओम प्रकाश मेहरा, गौतम घोष जैसे लोग शामिल थे। इनमें से कई तो भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा के विरोधी माने जाते हैं, लेकिन उन्होंने भी पांच बी को हटाने की बात नहीं की। अब श्याम बेनेगल को भी ये प्रस्तावित संशोधन अर्थहीन लगता है। वो भी इसको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़कर देख रहे हैं। जनता को अर्धसत्य बताकर बरगलाने की कोशिश हो रही है।
दरअसल अगर इस पूरे मामले पर समग्रता में तथ्यों के आधार पर विचार करें तो ये मुद्दा न तो सुपर सेंसर का है, न ही अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़ा है और न ही केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को पंगु करने का है। अगर विचार ही करना है तो केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के क्रियाकलापों में सुधार पर करना चाहिए। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को और शक्तिशाली और समयानुकूल बनाने की बात होनी चाहिए। अभी केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के चेयरमैन और बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति सूचना और प्रसारण मंत्रालय करती है। अगस्त 2017 में मशहूर गीतकार प्रसून जोशी को बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया था उसके साथ ही बोर्ड का भी पुनर्गठन हुआ था। प्रसून जोशी की अगुवाई में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने कई जटिल मसलों का हल निकाला। उनके पहले पहलाज निहलानी बोर्ड के चेयरमैन थे, हर दिन कोई न कोई विवाद होता था। प्रसून जोशी के आने के बाद सभी विवाद थम गए। अगर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के चेयरमैन और सदस्य संजीदा होंगे तो इस बात की संभावना बहुत कम है कि सरकार किसी भी फिल्म के प्रमाण पत्र को पुनर्विचार के लिए बोर्ड को भेजे। इस बात की भी आवश्यकता है कि बोर्ड के क्षेत्रीय सदस्यों का चयन करते समय सावधानी बरती जाए। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को विस्तार की भी आवश्यकता है। फिल्मों की संख्या इतनी बढ़ गई है लेकिन बोर्ड में उसके अनुपात में सुविधाएं या कर्मचारियों की संख्या नहीं बढ़ाई गई हैं। यह सब कुछ तभी संभव हो पाएगा जब 1952 के एक्ट में समय के अनुकूल बदलाव होगा। मनोरंजन की दुनिया का स्वरूप बहुत बदल गया है और बदलते समय के हिसाब से पूरे एक्ट में बदलाव पर विमर्श होना चाहिए। इस काम में सूचना और प्रसारण मंत्री को पहल करनी होगी। ये पहल तभी सफल हो पाएगी जब मंत्रालय में बैठे यथास्थिवाद के पैरोकारों को उचित स्थान पर भेजा जाएगा।
1 comment:
Indian Film Industry’s deshdrohis and Bollywood mafia want absolute freedom to attack sovereignty of India and disturb public order https://khullamkhulla.wordpress.com/2021/07/03/indian-film-industrys-deshdrohis-and-bollywood-jinnahs-want-absolute-freedom-to-attack-sovereignty-of-india-and-disturb-public-order/
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