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Sunday, October 24, 2021

लता को सावरकर ने संवारा


महापुरुष वो होते हैं जो अपने ज्ञान से मानव जाति का कल्याण मात्र नहीं करते बल्कि पीढ़ियों को संस्कारित करते हैं । अपने विचार और ज्ञान से वो प्रतिभा को न सिर्फ चिन्हित करते हैं बल्कि उनको उस पथ पर चलने की प्रेरणा देते हैं जो महानता की ओर जाता है। रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद और वीर सावरकर ऐसे ही महापुरुष थे जिन्होंने अपनी वाणी और व्यक्तित्व से कई लोगों को संस्कारित किया। वीर सावरकर ने तो  न केवल भारत माता को गुलामी की जंजीर से मुक्त करने का स्वप्न देखा बल्कि उसको साकार करने के लिए लंबे समय तक भयंकर यातनाएं झेलीं। इतना ही नहीं उन्होंने अपने प्रेरणादायी व्यक्तित्व से, अपने विचारों से पीढ़ियों को प्रभावित किया। कई कई ऐसे नायक तैयार कर दिए जो भारत के भाल पर चमकता सितारा है। ऐसा ही एक सितारा है लता मंगेशकर। भारत रत्न लता मंगेशकर । 

कुछ दिनों पहले लता मंगेशकर ने लिखा,आज से 90 साल पहले 18 सितंबर 1931 को मेरे पिताजी के ‘बलवंत संगीत मंडली’ के लिए वीर सावरकर जी ने एक नाटक लिखा जिसका नाम था, संन्यस्त खड्ग। उसका पहला प्रयोग मुंबई (तब बांबे) ग्रांट रोड के एलफिस्टन थिएटर में हुआ जिसमें बाबा ने ‘सुलोचना’ की भूमिका की थी। लता मंगेशकर जब ये लिख रही थीं तो वो उस दौर कि बात कर रही थीं जब उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर अपनी संगीत मंडली के जरिए संगीत और रंगमंच की दुनिया में सार्थक हस्तक्षेप कर रहे थे। दीनानाथ मंगेशकर ने मात्र 18 वर्ष की उम्र में अपने दोस्तों के साथ मिलकर बलवंत संगीत मंडली का गठन किया था। अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुरे के दादा कृष्णराव कोल्हापुरे भी उस वक्त इस संगीत मंडली में बेहद सक्रिय थे। जब संगीत मंडली के कार्यक्रम लोकप्रिय होने लगे तो दीनानाथ मंगेशकर ने अपनी मंडली के लिए नए नाटक लिखवाने आरंभ किए। उस दौर में विनायक दामोदर सावरकर ने बलवंत संगीत मंडली के लिए संन्यस्त खड्ग नाटक लिखा था। जिसकी चर्चा लता मंगेशकर ने की है। ये नाटक बेहद लोकप्रिय हुआ था। दीनानाथ मंगेशकर और सावरकर के संबंध प्रगाढ़ होते चले गए। अब ये संबंध औपचारिकताओं की सीमा तोड़कर घरेलू संबंध जैसे हो गए थे। लता मंगेशकर ने कई इंटरव्यू में वीर सावरकर के साथ अपने संबंधों को बहुत आत्मीयता के साथ याद किया है। वीर सावरकर ने कैसे लता मंगेशकर के जीवन की दिशा बदल दी इसपर आने के पहले आपको बता दें कि बलवंत संगीत मंडली के मंच पर ही पहली बार लता मंगेशकर ने गाया था। इसकी बेहद दिलचस्प कहानी है जिसको लता मंगेशकर ने अपने एक इंटरव्यू में बताया है। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर अपनी मंडली के साथ कोल्हापुर गए थे, साथ में अपनी बेटी को लेकर भी गए थे। नौ साल की छोटी सी बच्ची हमेशा पिता के साथ रहती थी। वहां के माहौल को देखकर अचानक बच्ची ने पिता से स्टेज पर गाने के बारे में पूछा । पिता थोड़े चकित हुए जब बिटिया ने कहा कि वो उनके साथ गाना चाहती हैं। मुस्कुराते हुए पिता ने पुत्री को गाने की अनुमति तो दी लेकिन ये पूछा कि वो कौन सा राग गाएगी। बेटी के मुंह से निकला राग खंबावती। ये सुनकर दीनानाथ मंगेशकर को आश्चर्य तो हुआ पर प्रसन्न भी हुए। कहा चलो आज तुम स्टेज पर गाकर दिखाओ। कोल्हापुर के नूतन थिएटर में लता मंगेशकर ने राग खंबावती तो गाया ही, दो और मराठी गाने गाए। इस संगीत मंडली से भी सावरकर का गहरा जुड़ाव था।  और लता मंगेशकर के पिता उनके साथ अपने अनुभवों को साझा करते थे। एक दूसरे से सलाह मशविरा किया करते थे।

मंगेशकर परिवार में जीवन अपनी गति से चल रहा था। लता मंगेशकर जब तेरह साल की हुईं तो अचानक से उनके परिवार पर वज्रपात हुआ। उनके पिता गुजर गए। अब परिवार के सामने कई तरह का संकट खड़ा होगा। इतने कम उम्र में लता मंगेशकर के कंधे पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ गई। पिता की मृत्यु के बाद लता मंगेशकर बेहुत परेशान रहने लगी थी। संघर्ष के उस दौर में भी मंगेशकर परिवार को वीर सावरकर का साथ मिला था। उन्होंने अपने सोच और विचारों से लता मंगेशकर को प्रभावित किया। यतीन्द्र मिश्र ने अपनी पुस्तक में लता मंगेशकर  की जिंदगी को अहम मोड़ देने के सावरकर के योगदान को रेखांकित किया है। अपनी किशोरावस्था में लता मंगेशकर ने समाज सेवा करने की ठान ली थी। अपने इस निर्णय के बारे में लता ने वीर सावरकर से चर्चा की थी। सावरकर ने ही उन्हें समझाया था कि तुम ऐसे पिता की संतान हो जिसका शास्त्रीय संगीत और कला में शिखर पर नाम चमक रहा है। अगर देश की सेवा ही करनी है तो संगीत के मार्फत समाजसेवा करते हुए भी उसको किया जा सकता है। यहीं से लता मंगेशकर का मन भी बदला जो उन्हें संगीत की कोमल दुनिया में बड़े संघर्ष की तैयारी के लिए ले आया। हम भारतीयों को सावरकर का ऋणी होना चाहिए कि उन्होंने एक बड़ी प्रतिभा को खिलकर सफल होने का जज्बा दिया। कल्पना कीजिए कि अगर सावरकर ने लता मंगेशकर को ये सलाह न दी होती तो क्या होता। स्वाधीनता का स्वप्न देखनेवाले एक क्रांतिवीर ने अपनी मिट्टी में जन्मी प्रतिभा को रास्ता दिखाकर उसको संवारा। बाद के वर्षों में भी लता मंगेशकर ने वीर सावरकर के लिखे कई गीतों को अपनि वाणी दी। सावरकर का शिवाजी पर लिखा एक मराठी गीत आज भी बेहद लोकप्रिय है। इस गीत के बोल हैं ‘हे हिंदू नृसिंहा प्रभो शिवाजी राजा’। लता मंगेशकर ने जब संगीत पर आधारित फिल्म बनाने की सोची तो उसका मुहुर्त वीर सावरकर से ही करवाया था। कहना ना होगा कि वीर सावरकर ने लता मंगेशकर की जिंदगी को जो दिशा दी उसने सुरों की दुनिया को लता जैसा कोहिनूर दिया। 

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