लाकारों की लोकप्रियता का सहारा लेने की कोशिश की थी। जब इंदिरा गांधी ने देश पर इमरजेंसी थोपी उस वक्त कांग्रेस पार्टी में इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा का नारा हकीकत हो चुका था। कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता घुटने टेक चुके थे। संजय गांधी का बोलबाला था। इमरजेंसी में हुई ज्यादतियों का सारा ठीकरा इंदिरा गांधी के सर फोड़ा जाता है और संजय गांधी की कारगुजारियों पर कम चर्चा होती है। इमरजेंसी के दौरान फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कलाकारों पर जो पाबंदियां लगाई गईं उसके लिए संजय गांधी और उस दौर के उनके चमचे जिम्मेदार थे। इमरजेंसी के दौर में किशोर कुमार के गानों पर प्रतिबंध की खूब चर्चा होती है लेकिन देवानंद की फिल्मों और उनकी फिल्मों के गानों पर लगे प्रतिबंध के बारे में कम ही लोगों का पता है। देवानंद पर प्रतिबंध की वजह भी लगभग वही है जिसकी वजह से किशोर कुमार के गानों को प्रतिबंधित किया गया।
देश में जब इमरजेंसी लगी थी तो हिंदी फिल्मों के ज्यादातर नायक और नायिकाएं उसके पक्ष में थे। बाद में उनमें से कइयों को कांग्रेस सरकार ने राज्यसभा में नामित करके पुरस्कृत भी किया। इनमें से एक अभिनेत्री तो वो भी हैं जो इन दिनों अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर और फासीवाद की आहट पर लगातार टिप्पणी करती हैं। ये अभिनेत्री इमरजेंसी के दौर में कांग्रेस के एक कार्यक्रम में नृत्य करने आई थीं और स्टेज पर परफार्म भी किया था। संजय गांधी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए काम भी किया था। दिलीप कुमार और नरगिस तो घोषित तौर पर कांग्रेस और संजय गांधी के पक्ष में थे और हिंदी फिल्मों के अन्य कलाकारों को उनके पक्ष में मोबलाइज भी कर रहे थे। देवानंद ने अपनी आत्मकथा रोमांसिंग विद लाइफ में संजय गांधी के समर्थकों के बारे में लिखा है। उन्होंने लिखा है कि इमरजेंसी के दौर में युवा कांग्रेस की एक बेहद खूबसूरत और आकर्षक महिला बांबे (अब मुंबई) आई थी और उसने बालीवुड में संजय के पक्ष में समर्थन जुटाने का अभियान चलाया था। वो चाहती थी कि हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय अभिनेता और अभिनेत्री संजय गांधी की अगुवाई में दिल्ली में होनेवाली रैली में शामिल हों। देवानंद को भी उसने तैयार कर लिया। देवानंद जब दिल्ली की रैली में पहुंचे तो दिलीप कुमार वहां पहले से मंच पर मौजूद थे। देवानंद के मुताबिक उस रैली में संजय गांधी को नेता के तौर पर स्थापित करनेवाले भाषण हो रहे थे और नारे लग रहे थे। रैली खत्म होने के बाद देवानंद को कहा गया कि उनको दूरदर्शन के स्टूडियो जाकर युवा कांग्रेस और उसके नेता की प्रभावी नेतृत्व क्षमता के बारे में अपनी बात रिकार्ड करवानी है। देवानंद ने लिखा है कि ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उस वक्त की प्रोपगंडा मंशीनरी एकदम से फासीवादी तरीके से हर अवसर और हर व्यक्ति का उपयोग संजय गांधी की छवि चमकाने में लगी हुई थी। देवानंद को प्रोपगंडा मशीनरी का ये प्रस्ताव नहीं भाया और उन्होंने न सिर्फ दूरदर्शन जाने से मना कर दिया बल्कि इसका विरोध भी किया। उस दौर में कई अभिनेताओं और अभिनेत्रियों ने इमरजेंसी और संजय गांधी के पक्ष में बयान दिया था जो दूरदर्शन पर प्रसारित भी हुआ था। अगर दूरदर्शन के आर्काइव में वो सामग्री हो तो उसको निकालकर देश की जनता को बताना चाहिए कि कौन कौन से फिल्मी कलाकार इमरजेंसी के पक्ष में थे। खैर.. ये अवांतर प्रसंग है।
देवानंद के मना करने की उस वक्त की सरकार में बेहद तीखी प्रतिक्रिया हुई। दूरदर्शन पर उनकी फिल्मों को तो बैन किया ही गया किसी भी सरकारी माध्यम में देवानंद का नाम नहीं आए ऐसी व्यवस्था बना दी गई। ये जानकर देवानंद को बहुत बुरा लगा था और उन्होंने उस वक्त के सूचना और प्रसारण मंत्री से इसकी शिकायत भी की थी लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। जब वो बांबे लौटे तो एक पार्टी मं उनको इस बात का एहसास हुआ कि उनके मना करने का कांग्रेस नेतृत्व ने कितना बुरा माना है। एक पार्टी में उनको अभिनेत्री नरगिस मिलीं और उनका हाथ पकड़कर एक कोने में ले गईं। वहां उन्होंने देवानंद से कहा कि आपने संजय गांधी के पक्ष में बोलने से मना कर अच्छा नहीं किया। उन्होंने देवानंद को दूरदर्शन पर जाने की सलाह भी दी। जब देवानंद ने उनको भी मना किया तो वो झल्ला गईं और बोली कि आप बेवजह हठ कर रहे हैं। आपको ये हठ छोड़ देना चाहिए। देवानंद नहीं माने और उन्होंने लिखा है कि उसके बाद वो संजय गांधी के चमचों और दरबारियों के निशाने पर आ गए थे। देवानंद की फिल्म देस परदेश रिलीज होनेवाली थी और उनको डर सता रहा था कि संजय गांधी के दरबारी उनकी फिल्म को नुकसान न पहुंचा दें। डर जायज भी था क्योंकि इमरजेंसी के दौर में जो भी संजय गांधी के विरोध में गया था उसको काफी परेशानियां झेलनी पड़ी थीं। फिल्मकारों को भी और कलाकारों को भी।
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