भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी। बैठक के दूसरे दिन पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का कार्यकाल अगले वर्ष जून तक के लिए बढ़ाया जा चुका था। हर तरफ राजनीतिक बातें हो रही थीं। इस वर्ष नौ राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनाव की संभावनाओं पर कार्यकारिणी के सदस्य आपस में चर्चा कर रहे थे। बैठक समापन की ओर था। सबको प्रधानमंत्री के भाषण की प्रतीक्षा थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बोलने के लिए खड़े हुए। उन्होंने चिरपरिचित अंदाज में उन्होंने अपना भाषण आरंभ किया। राष्ट्र और राजनीति की बातें करते हुए उन्होंने सबको साथ लेकर चलने की बातें की। अचानक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सिनेमा से जुड़ा एक बड़ा संदेश दे दिया। प्रधानमंत्री ने अपने दल के नेताओं को कहा कि प्रतिदिन सिनेमा पर बोलने की आवश्यकता नहीं है। प्रधानमंत्री ने उन नेताओं को भी नसाहत दी जो हर दिन फिल्मों या फिल्मों से जुड़े मसलों पर विवाद खड़े करनेवाले बयान देते रहते हैं। फिल्म पर अपनी बात कहने के बाद प्रधानमंत्री अन्य मुद्दों पर चले गए। प्रधानमंत्री का संदेश ये था कि नेताओं को हर चीज के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और आवश्कता पड़ने पर गंभीरता के साथ अपनी बात कहनी चाहिए। प्रधानमंत्री का भाषण समाप्त हुआ। कार्यकारिणी की बैठक भी समाप्त हुई। खबरों में प्रधानमंत्री के भाषण के अन्य बिंदुओं पर जमकर चर्चा हुई। सामाजिक समरसता से लेकर बुद्धिजीवियों तक से पार्टी के नेताओं को संपर्क बढ़ाने की बात पर काफी चर्चा हुई। सिनेमा पर विवादित बयान देनेवाले अपनी पार्टी के नेताओं को दी गई उनकी नसीहत पर अपेक्षाकृत कम चर्चा हुई। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कम लोगों का ही ध्यान प्रधानमंत्री के सिनेमा पर दिए गए बयान पर गया। हलांकि हिंदी फिल्म से जुड़े बड़े सितारों को राजनीतिक बातों पर प्रतिक्रिया देने में काफी वक्त लगता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस बयान के बाद मध्यप्रदेश के मंत्री नरोत्तम मिश्रा का एक बयान जागरण समूह के समाचारपत्र नईदुनिया/नवदुनिया में प्रकाशित हुआ है। प्रकाशित बयान के मुताबिक नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री ने किसी का नाम नहीं लिया है। प्रधानमंत्री की हर बात हमारे लिए शिरोधार्य है। सारे कार्यकर्ता वहां से प्रेरणा लेकर आए हैं। हमारा आचरण और व्यवहार हमेशा उनके मार्गदर्शन में उर्जा से भरते हैं।‘ नरोत्तम मिश्रा भारतीय जनता पार्टी के उन नेताओं में से हैं जो फिल्मों या वेब सीरीज पर लगातार बयान देते रहते हैं। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री होने के कारण कई बार उन्होंने आपत्तिजनक माने जानेवाले दृष्यों को लेकर सिर्फ बयान ही नहीं दिए बल्कि सख्त कदम उठाने की बात भी की थी। अब उनका ये कहना कि नेतृत्व का आदेश शिरोधार्य होगा, इस बात का संकेत दे रहा है कि प्रधानमंत्री का फिल्मों को लेकर दी गई नसीहत का उनकी पार्टी के बयानवीर नेताओं पर असर हुआ है। दरअसल इंटरनेट मीडिया पर शाह रुख खान की फिल्म पठान के बेशर्म रंग गाने के रिलीज होने के बाद उसके बायकाट को लेकर चर्चा हो रही है। पक्ष विपक्ष में ट्वीट हो रहे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री का सिनेमा पर हर दिन बयानबाजी से बचने की सलाह महत्वपूर्ण हो जाती है।
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ फिल्म से जुड़े लोगों की बैठक में अभिनेता सुनील शेट्टी ने योगी जी से फिल्मों के बायकाट की मुहिम को लेकर अपनी बात रखी थी। उन्होंने तब ये भी आग्रह किया था कि वो इंडस्ट्री की भावना को प्रधानमंत्री तक पहुंचा दें। योगी जी ने ये बात प्रधानमंत्री तक पहुंचाई या नहीं ये तो नहीं मालूम लेकिन प्रधानमंत्री ने जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में सिनेमा को लेकर अपनी बात कही उससे लगता है कि प्रधानमंत्री का सूचना तंत्र बेहद सक्रिय है। उनतक हर छोटी बड़ी बात पहुंचती है। फिल्मों की बायकाट की अपील का मसला पिछले कुछ दिनों से काफी बढ़ा है। कई बार ये स्वत:स्फूर्त होता है तो कई बार अभियान चलाया जाता है। कई बार फिल्म के कलाकारों के व्यवहार के कारण दर्शक खिन्न हो जाते हैं और इंटरनेट मीडिया पर उसके खिलाफ अपनी बात कहते लिखते हैं। कई बार अभिनेता, अभिनेत्री या निर्देशक के राजनीतिक बयानों का असर भी फिल्म पर पड़ता है। उनके बयानों से नाराज होकर राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता अपना विरोध जताने के लिए उनकी फिल्म का विरोध करते हैं। इसमें कोई गलत बात नहीं है। जब तक विरोध शांतिपूर्ण ढंग से होता है तबतक किसी को इसपर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। आप नरेन्द्र मोदी का विरोध भी करेंगे, आप विरोधी दलों के लिए प्रचार भी करेंगे और ये अपेक्षा करेंगे कि मोदी के समर्थक या भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता आपकी फिल्म भी देखें। अब ऐसा संभव नहीं दिखता। अब अगर कोई अभिनेत्री जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के आंदोलनकारी छात्रों के साथ जाकर खड़ी होती है तो उसका असर उसकी फिल्म के कारोबार पर पड़ता है। हिंदी फिल्म के कर्ताधर्ताओं को ये बात समझनी होगी। कलाकारों को अगर राजनीति करनी है तो राजनीति के मैदान में आना चाहिए। अब अगर कोई फिल्मकार अपनी फिल्म में राजनीतिक संदेश देता है और अपेक्षा करता है कि उस राजनीतिक संदेश का असर जिस समूह पर पड़ेगा वो उसकी फिल्म देखे तो यह अपेक्षा व्यर्थ है। अब जनता जागरूक हो गई है। वो अपनी पसंद और नापसंद को खुलकर व्यक्त भी करती है। खैर ये अलग मुद्दा है।
बात हो रही थी प्रधानमंत्री के पार्टी नेताओं को दिए गए संदेश और उसके असर की । ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री ने पहली बार इस तरह से सार्वजनिक रूप से अपनी पार्टी के नेताओं को नसीहत दी है। इसके पहले भी पार्टी की संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री ने मध्यप्रदेश के नेता कैलाश विजयवर्गीय का नाम लिए बगैर बेहद कठोर टिप्पणी की थी। दरअसल हुआ ये था कि इंदौर नगर निगम के किसी कर्मचारी को बैट से पीटते हुए कैलाश विजयवनर्गीय के पुत्र आकाश का वीडियो इंटरनेट मीडिया पर प्रचलित हो गया था। उसके बाद संसदीय दल की एक बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा था कि बेटा किसी का भी ऐसा व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। तब प्रधानमंत्री ने पार्टी की मर्यादा की भी याद दिलाई थी और कहा था कि ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जो पार्टी की प्रतिष्ठा को कम करे। अगर कोई गलत काम करता है तो उसपर कार्रवाई होनी चाहिए। प्रधानमंत्री की उस नसीहत का असर कैलाश विजयवर्गीय और उनके बेटे आकाश विजयवर्गीय पर दिखा। प्रधानमंत्री मोदी का संदेश देने का ये तरीका एक और बैठक में दिखा था। जब उन्होंने अपनी पार्टी के उन बयानवीर नेताओं को चेतावनी दी थी जो हर दिन सुबह टीवी चैनलों के कैमरे पर अपने घर के सामने खड़े होकर किसी भी समस्या पर बयान दे देते थे। छापस रोग से ग्रस्त पार्टी के नेताओं का इलाज उनके एक बयान हो गया था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का काम करने का अपना तरीका है। वो संचार की उस शैली को अपनाते हैं जिसमें संप्रेषण के साथ असर भी हो। इस बात को लगातार कहा जाता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं की। प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं की लेकिन जिस तरह से उन्होंने जनता और दुनिया से संवाद बनाए रखने के लिए इंटरनेट मीडिया का प्रयोग किया है वो उल्लेखनीय है। संचार का मुख्य उद्देश्य यही होता है कि बात सही व्यक्ति तक पहुंच जाए। प्रधानमंत्री मोदी ने भी पारंपरिक संचार शैली से अलग हटकर अपनी शैली विकसित की है। इस शैली को इंटरनेट मीडिया पर तो देखा ही जा सकता है, उनके वकतव्यों में भी रेखांकित किया जा सकता है। तीन उदाहरण तो ऊपर ही दिए गए हैं।
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