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Saturday, January 7, 2023

अनियमितताओं के भंवर में अकादमी


भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध एक स्वायत्त संस्था है, ललित कला अकादमी। इस संस्था का मुख्यालय नई दिल्ली में है। देशभर में इस संस्था के कई क्षेत्रीय केंद्र हैं। इसकी स्थापना 1954 में हुई थी। इसकी परिकल्पना राष्ट्रीय कला अकादमी के रूप में की गई थी। अकादमी के गठन का उद्देश्य सृजनात्मक दृश्य कलाओं के क्षेत्र में क्रियाकलापों को प्रोत्साहित और समन्वित करते हुए देश की सांस्कृतिक एकता का प्रोन्नयन करना है। अपने स्थापना के बाद के दशकों में ललित कला अकादमी ने काफी महत्वपूर्ण कार्य किया। अकादमी के संग्रह में कई अनमोल कलाकृतियां हैं। पिछले करीब तीन दशक से ललित कला अकादमी विवादों में घिरी रही है। कभी उसके संग्रह की कलाकृतियों के गायब होने की खबर आती रही तो कभी उचित रखरखाव के आभाव में कलाकृतियों के खराब होने की। नई दिल्ली के गढ़ी केंद्र में अवैध कब्जे के समाचार भी आए थे। इसके पूर्व अध्यक्ष और हिंदी के कवि अशोक वाजपेयी पर सीबीआई की जांच भी हुई थी या हो रही है। इस जांच का निष्कर्ष क्या रहा ये सार्वजनिक नहीं हो पाया है। अकादमी के सचिव रहे सुधाकर शर्मा भी विवाद में घिरे थे। अशोक वाजपेयी के कार्यकाल में पहले हटाए गए फिर बहाल किए गए। अशोक वाजपेयी के बाद के के चक्रवर्ती को ललित कला अकादमी का अध्यक्ष बनाया गया था। इनका कार्यकाल भी बेहद विवादित रहा। विवाद इतना बढ़ा था कि मंत्रालय ने इनको बर्खास्त करके ललित कला अकादमी को अपने अधीन कर लिया था। उसके बाद मंत्रालय ने कृष्णा शेट्टी को ललित कला अकादमी का प्रशासक नियुक्त किया था। फिर मंत्रालय के संयुक्त सचिव प्रोटेम चेयरमैन बनाए गए। प्रोटेम चेयरमैन बनाए जाने को लेकर भी विवाद हुआ था। 

इन विवादों के बीच महाराष्ट्र के उत्तम पचारणे को ललित कला अकादमी का चेयरमैन नियुक्त किया गया। उनकी नियुक्ति और उनके कार्यकाल में वित्तीय गड़बड़ियों को लेकर विवाद उठा और पूरा मामला अदालत तक गया। जो अभी विचाराधीन है। इस बीच उत्तम पचारणे का कार्यकाल समाप्त हो गया। उनको छह महीने का सेवा विस्तार मिला था ताकि नए अद्यक्ष का चययन हो सके। लेकिन ऐसा नहीं हो सका तो संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव उमा नंदूरी को मंत्रालय ने ललित कला अकादमी की चेयरमैन का कार्यभार सौंप दिया। अकादमी की इस पृष्ठभूमि का बताने का आशय सिर्फ इतना है कि भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध इस संस्था में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। उपरोक्त सारी बातें तो मीडिया में आईं थीं लेकिन अभी कुछ दिनों पहले भारत सरकार के लेखा परीक्षा के महानिदेशक कार्यालय ने ललित कला अकादमी की आडिट की थी। 14 अक्तूबर 2022 को ओबीएस 446867 के अंतर्गत लेखा परीक्षकों ने जो रिपोर्ट दी उसमें भारी वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितता की बात सामने आई है। 

लेखा परीक्षक ने अपने आडिट रिपोर्ट में वाहन किराए पर लेने की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि बगैर किसी टेंडर के गाड़ियों को किराए पर लिया जाता रहा। जबकि नियमानुसार बगैर टेंडर के अकादमी वाहन किराए पर नहीं ले सकती है। कोविड के समय भी स्टाफ को लाने और छोड़ने के लिए जिन गाड़ियों को किराए पर लिया गया उसमें भी आडिट रिपोर्ट में खामियां पाई गई हैं। संस्कृति राज्य मंत्री के नाम पर ललित कला अकादमी ने एक गाड़ी किराए पर ली जिसका प्रतिमाह किराया 52 से 55 हजार रुपए भुगतान किया गया। लेखा परीक्षक के मुताबिक ये नियम विरुद्ध है। इस मद में अकादमी ने साढे छह लाख रुपए खर्च किए हैं। रिपोर्ट में इसको अविलंब रोकने की सलाह दी गई है। गाड़ियों के अलावा बिजली बिल के भुगतान में भी अनियमितता पाई गई है। लेखा परीक्षक की रिपोर्ट में जो सबसे बड़ी खामी पाई गई है वो ये है कि अकादमी ने सांस्कृतिक संस्थाओं को बगैर उपयोग प्रमाण पत्र के आर्थिक सहयोग दिया। नियम के मुताबिक जब किसी सांस्कृतिक संस्था को किसी प्रकार की आर्थिक मदद दी जाती है तो उसको अकादमी में उस धनराशि के उपयोग का प्रमाण पत्र जमा करना होता है । उसके बाद ही उसको फिर से आर्थिक सहायता दी जाती है लेकिन इस नियम की धज्जियां उड़ा दी गई। करीब 25 करोड़ की धनराशि का उपयोग प्रमाण पत्र अकादमी के रिकार्ड में नहीं है। 

वित्तीय अनियमितताओं की कहानी यही नहीं रुकती है। अकादमी अपने कर्मचारियों को किसी कार्य के लिए अग्रिम धनराशि देती है। नियम है कि बगैर इस राशि का हिसाब दिए दूसरी बार किसी को अग्रिम धनराशि नहीं दी जा सकती है। लेकिन अकादमी में 31.3.2022 तक 133 केस पेंडिंग है जिसका हिसाब नहीं दिया गया था। लेखा परीक्षकों ने इसपर प्रश्न उठाए हैं। पूर्व अध्यक्ष उत्तम पचारणे से लेकर क्षेत्रीय सचिवों और कई कर्मचारियों के नाम भी अग्रिम धनराशि पेंडिंग है जिसका हिसाब नहीं दिया गया है। लेखा परीक्षकों की इस रिपोर्ट में गड़बड़ियों की लंबी फेहरिश्त है जिसमें लैपटाप खरीद में गड़बड़ी, वकीलों की फीस में अनियमितता, बिना किसी अनुमति के मुख्यालय और गढ़ी केंद्र पर 173 सुरक्षा गार्डों को काम पर रखना, 12 लाख से अधिक के ओवरटाइम में गड़बड़ी, नियम विरुद्ध नियुक्तियां और वेतन निर्धारण, विज्ञापन पर एक करोड़ से अधिक खर्च आदि आदि। एक बड़ा ही गंभीर मसला इस रिपोर्ट में है। इस वक्त ललित कला अकादमी के प्रभारी सचिव रामकृष्ण वेडाला हैं। रिपोर्ट में है कि 2019 में ये बगैर मंत्रालय की अनुमति के मैक्सिको की यात्रा पर गए। जबकि मंत्रालय ने अकादमी को पत्र लिखकर निर्देश दिया था कि सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के बगैर वो विदेश नहीं जाएं। लेकिन ललित कला अकादमी के प्रभारी सचिव ने भारत सरकार के दिशा निर्देश की अनदेखी की। इसका संज्ञान भी मंत्रालय को लेना चाहिए। अकादमी के स्टाक पर भी लेखा परीक्षकों ने गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं।

केंद्रीय व्यय के महानिदेशक लेखा परीक्षक कार्यालय ने ललित कला अकादमी के क्रियाकलापों में जो अनियमितताएं पाईं है वो बेहद गंभीर हैं। संस्कृति मंत्रालय को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। साहित्य, कला और संगीत के क्षेत्र में कार्य कर रही संस्थाओं को स्वायत्ता दी जानी चाहिए लेकिन जब करदाताओं के पैसे का अपव्यय सामने आए या उसका दुरुपयोग दिखे तो सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए। इस वक्त अकादमी के अध्यक्ष का कार्यभार संभाल रहीं संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव उमा नंदूरी से ये अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि लेखा परीक्षकों की रिपोर्ट में जिन अनियमितता और गड़बड़ियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है उनपर कार्रवाई करेंगी। बगैर उपयोग प्रमाण पत्र के आर्थिक मदद का हिसाब किताब लिया जाएगा। इन गड़बड़ियों के लिए जिम्मेदार कर्मचारियों के खिलाफ भी नियमानुसार दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। 

संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध संस्थाओं में नियुक्ति की प्रक्रिया भी तेज करनी होगी। कई महीनों से ललित कला अकादमी में अध्यक्ष और सचिव का पद खाली है। इसको अविलंब भरने की आवश्यकता है। दरअसल इन संस्थाओं के नियमित चेयरमैन, सचिव या निदेशक के नहीं होने के कारण वहां अराजकता का माहौल बन जाता है। ललित कला अकादमी के अलावा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में नियमित निदेशक नहीं होने की वजह से अराजकता जैसा माहौल है। कुछ दिनों पहले प्रभारी निदेशक ने कुलसचिव को सेवामुक्त करने का आदेश दे दिया था जिसकों कुछ ही घंटों में वापस लेना पड़ा था। राष्ट्रीय महत्व के इस संस्थान में नियमित निदेशक नहीं होने के कारण नियमित शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पा रही है। नुकसान छात्रों और संस्था का हो रहा है। संस्कृति मंत्रालय के अधीन कई संस्थाएं ऐसी हैं जहां कई महत्वपूर्ण पद खाली हैं। संस्कृति मंत्री को स्वयं रुचि लेकर इन पदों को भरने का उपक्रम आरंभ करना चाहिए। 


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