आज से 38 वर्ष पहले जब पूरे देश में लिटरेचर फेस्टिवल के बारे में कम ही लोग सोचते और जानते थे। उस समय साहित्य अकादमी ने 1985 में फेस्टिवल आफ लेटर्स का आरंभ किया था। नई दिल्ली के रवीन्द्र भवन परिसर स्थित साहित्य अकादमी भवन की पहली मंजिल के सभागार में प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता था। इस प्रदर्शनी में साहित्य अकादमी की गतिविधियों का प्रदर्शन होता था। मैक्सम्यूलर मार्ग के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में अकादमी राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन करती थी। इस फेस्टिवल का आरंभिक स्वरूप कुछ इस तरह का ही था। सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, अन्नदा शंकर रे, अमृता प्रतम, कुर्तुलऐन हैदर,निर्मल वर्मा, विद्यानिवास मिश्र, विष्णु प्रभाकर, सुनील गंगोपाध्याय जैसे दिग्गज लेखकों की भागीदारी इस उत्सव में होती थी। करीब 25 वर्षों तक इस स्वरूप में साहित्य अकादमी का साहित्योत्सव चलता रहा। साहित्योत्सव के दौरान विभिन्न भाषा के साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेखकों को सम्मानित किया जाता था। संवत्सर व्याख्यान का आयोजन होता था। साहित्योत्सव की एक विशेषता और रही है कि इसमें बड़े से बड़ा लेखक सहजता से पाठकों और श्रोताओं के साथ संवाद करते नजर आते हैं। मुझे याद पड़ता है कि अमृता प्रीतम को पहली बार मैंने साहित्य अकादमी के इस उत्सव में ही देखा था। तब दिल्ली विश्वविद्याल के छात्र एक साथ इस उत्सव में पहुंचते थे। अपने पसंदीदा लेखकों के विचारों को सुनते थे। न केवल विचारों को सुनते थे बल्कि छात्रावास लौटकर उनकी स्थापनाओं पर बहस करते थे।
2013
में जब डा के श्रीनिवासराव साहित्य अकादमी के सचिव बने तो उन्होंने इसको व्यापक
स्वरूप प्रदान किया। साहित्य अकादमी की प्रदर्शनी को भवन की पहली मंजिल से उतारकर
परिसर के लान में लाकर विस्तार दिया गया। संगीत नाटक अकादमी के मेघदूत थिएटर में
भी इस साहित्योत्सव की गतिविधियां आरंभ हुईं। साहित्य अकादमी पुरस्कार अर्पण
समारोह को और भव्य बनाया गया। धीरे धीरे ये साहित्योत्सव अखिल भारतीय स्वरूप लेने
लगा। इसमें देश के विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों को आमंत्रित करके अलग अलग
सत्रों में विचार मंथन होने लगा। प्रतिवर्ष इसमें अलग अलग विषय जैसे बहुभाषी कवि
सम्मेलन, बहुभाषी कहानी पाठ, एलजीबीटीक्यू लेखक सम्मिलन, जैसे कार्यक्रम जोड़े गए।
अभी देश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आलोक में मातृभाषा की चर्चा हो रही है। इस
वर्ष साहित्योत्सव में मातृभाषा पर अलग से चर्चा रखी गई है। जी 20 सम्मेलन के
आयोजन को ध्यान में रखते हुए कूटनीति और साहित्य विषय पर सत्र की संरचना की गई है।
इसमें राजनयिक-लेखकों के विचार सुनने को मिलेंगे। 38 वर्ष के सफर में साहित्य
अकादमी के साहित्योत्सव ने साहित्य जगत में अपनी एक विशिष्ठ पहचान बनाई है। यह एक
ऐसा साहित्योत्सव है जो शोर-शराबे से दूर भारतीय भाषाओं के लेखकों के अखिल भारतीय
मंच के तौर पर स्थापित हो गया है।
No comments:
Post a Comment