सोमवार को लोकसभा के पांचवें चरण के लिए मतदान होना है। उत्तर प्रदेश की कई अन्य सीटों के साथ रायबरेली और अमेठी में भी इस दिन वोट डाले जाएंगे। 2019 में अमेठी से पराजित होने के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी बगल की सीट रायबरेली से चुनाव लड़ रहे हैं। अबतक उनकी मां सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद थीं। अमेठी से केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी के रूप में तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं। उनके सामने लंबे समय से गांधी परिवार का कामकाज देखनेवाले किशोरी लाल शर्मा कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। अमेठी में कांग्रेस पार्टी की तरफ से प्रचार का जिम्मा प्रियंका गांधी वाड्रा ने ले रखा है। वो गली मोहल्लों में चुनावी सभा कर रही हैं। चुनाव को भावनात्मक रूप देने का भी प्रयत्न किया जा रहा है। वो निरंतर अपने पिता राजीव गांधी और उनके कार्यों के बारे में बोल रही हैं। तुलनात्मक रूप से अगर देखा जाए तो प्रियंका गांधी वाड्रा राहुल गांधी के अमेठी के सांसद के तौर पर 15 वर्षों के काम पर बहुत ही कम बोल रही हैं। लगभग हर सभा में गांधी परिवार और अमेठी के रिश्तों को रेखांकित करती हुई नजर आईं। इस रिश्ते पर अमेठी की जनता का कितना भरोसा था ये तो 2019 के चुनाव परिणाम में सामने आ गया था, जब स्मृति इरानी ने राहुल गांधी को 55 हजार से अधिक मतों से पराजित कर दिया था। गांधी परिवार के सदस्य की अमेठी से ये तीसरी हार थी। इसके पहले संजय गांधी भी 1977 का लोकसभा चुनाव वहां से हार चुके थे। बाद में मेनका गांधी भी राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़कर हारीं। राहुल गांधी की हार इस मायने में कांग्रेस की राजनीति का एक अहम मोड़ था क्योंकि वो तब पार्टी के अध्यक्ष थे। राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के पहले अध्यक्ष थे जो पद पर रहते हुए लोकसभा का चुनाव हारे थे।
रही बात प्रियंका गांधी वाड्रा की तो उत्तर प्रदेश का 2022 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने प्रियंका गांधी की अगुवाई में लड़ा था और पूरे प्रदेश में कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें मिली थीं। पूरे प्रदेश में कांग्रेस का मत प्रतिशत भी दो ढाई प्रतिशत के करीब तक गिर गया था। राजनीतिक पंडित भी इस बात को मानते हैं कि अगर किसी पार्टी को चुनाव में छह प्रतिशत से कम वोट मिलते हैं तो उसको फिर से खड़ा होने में काफी समय लगता है। कांग्रेस इस समस्या से जूझ रही है। पिछले दिनों अमेठी और रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में जाने और वहां के मतदाताओं से मिलने और बात करने का अवसर मिला था। वहां ये पता चला कि 2003 में जब प्रियंका गांधी अमेठी आई थीं तो उनके साथ उनके पति राबर्ट वाड्रा भी आए थे। उस समय राबर्ट और प्रियंका का अमेठी के लोगों ने स्वागत किया था। कई गांव में उनको ले जाया गया था। अमेठी में पोस्टर भी लगे थे कि दीदी जीजा जी आए हैं नई रोशनी लाए हैं। उसके बाद हर चुनाव के समय पहले दीदी, फिर जीजा जी आते रहे, चुनावी वादे होते रहे। उन वादों को जमीन पर उतरने का अमेठी के लोगों को इंतजार ही रहा। जब वादे पूरे नहीं हुए तो प्रियंका वाड्रा को अमेठी की जनता की उदासीनता का सामना भी करना पड़ा था। कुछ लोग किशोरी लाल शर्मा के क्षेत्र से जुड़े होने का दावा करते नजर आए लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में किशोरी लाल शर्मा को कांग्रेस ने ही कम तवज्जो दी थी। तब राहुल गांधी के प्रतिनिधि चंद्रकांत दुबे थे। प्रियंका के सहयोगी धीरज श्रीवास्तव और राहुल के करीबी साथी कनिष्क सिंह चुनाव में अहम भूमिका निभा रहे थे। जब राहुल गांधी ने अमेठी ने न लड़ने का निर्णय लिया तो पार्टी को किशोरी लाल शर्मा की याद आई। किशोरी लाल शर्मा अच्छे चुनावी मैनेजर हो सकते हैं लेकिन एक नेता के तौर पर उनके काम का सामने आना अभी शेष है। अमेठी के जिन वोटरों से मैं मिला उनमें किशोरी लाल शर्मा को लेकर एक संशय दिखा।
2019 में जब अमेठी लोकसभा चुनाव हो रहे थे तब भी मैं उस क्षेत्र में गया था। चुनाव के बाद भी कई बार गया। इस बार अमेठी में जो बदलाव देखने का मिला वो कई मायनों में गेमचेंजर हो सकता है। चार पांच वर्ष पहले अमेठी के कई गांवों में छप्पर वाले घर दिखाई देते थे। अब कम गांवों में ही छप्पर वाले घर दिखाई देते हैं। गौरीगंज से जामों जानेवाली सड़क पर दुबे जलपान गृह में हमलोग कुछ देर के लिए रुके थे। वहां माधोपुर गांव के कुछ लोग बैठे थे। उनसे जब इस बारे मे बात की तो उनकी भी राय थी कि अमेठी लोकसभा क्षेत्र में छप्पर वाले घर बहुत कम हो गए हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना में लोगों के घर पक्के हो गए हैं। शौचालय बन गए हैं। वहां बैठे रामाधर सिंह ने बताया कि छप्पर कम होने से अमेठी में आग लगने की घटनाएं बहुत कम हो गई हैं। पहले अमेठी में आग लगने की काफी घटनाएं होती थीं। यह अनायस नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी स्मृति इरानी यह दावा करती हैं कि उनके क्षेत्र में प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत एक लाख चौदह हजार घर बने और चार लाख से अधिक शौचालय बने। वो ये भी बताती हैं कि इतना काम तीन वर्षों में ही हो पाया क्योंकि दो वर्ष कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गए। इस जलपान गृह में काफी देर तक हमलोग अमेठी की राजनीति को समझने का प्रयत्न करते रहे। यहां कुछ कांग्रेस समर्थक भी आए। पहले तो उन्होंने आते ही प्रत्याशी किशोरी लाल की प्रशंसा आरंभ की। थोड़ी देर बाद वो खुले तो उनका दर्द झलक गया और कहने लगे कि राहुल गांधी अपने आसपास के लोगों से इतना घिरे रहते हैं कि जनता उनसे मिल ही नही पाती है। उनमे में से एक बुजुर्ग व्यक्ति ने बहुत मार्के की बात कही, राजीव गांधी और संजय गांधी अमेठी से भावनात्मक संबंध इस कारण बना पाए थे कि उनके पास सतीश शर्मा, जे एन मिश्रा और किशोर उपाध्याय जैसे समर्पित व्यक्ति थे, जो निरंतर क्षेत्र की जनता के साथ संवाद और संपर्क में रहते थे। अपने नेता और जनता के बीच दीवार नहीं बनते थे।
यहां से गौरीगंज के कांग्रेस कार्यालय होते हुए हमलोग आलोक ढाबा पहुंचे। 2014 में इसी आलोक ढाबा से स्मृति इरानी ने अपना चुनाव लड़ा था। वहां चुनावी सरगर्मी बनी रहती है। इस ढावा के मालिक आलोक जी सह्दय व्यक्ति हैं। बोलते कम, सुनते और मुस्कुराते ज्यादा हैं। वहीं पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता मतदाता जागरूक रैली की तैयारी कर रहे थे। वो बहुत उत्साहित थे। वहां पर विद्यार्थी परिषद के सुल्तानपुर और अमेठी के संगठन मंत्री प्रिंस कुमार मिले। उनसे राजनीति की बहुत बातें होती रहीं। उनकी बातों में राजनीतिक परिपक्वता झलक रही थी। अमेठी चुनाव और कार्यकर्ताओं को लेकर उनकी टिप्पणी उचित प्रतीत हुई। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी परिषद से जुड़े कई कार्यकर्ताओं के घर के बड़े कांग्रेसी हैं, जिस कारण वो मुखर नहीं हो पा रहे हैं। जब हम वापस लौटने को हुए तो प्रिंस ने एक बेहद सधी हुई टिप्पणी कर दी। उन्होंने कहा कि अमेठी में कांग्रेस पार्टी नहीं, प्रथा है। किसी भी प्रथा को समाप्त करने में समय लगता है। बाल विवाह प्रथा को समाप्त करने के लिए समाज सुधारकों को काफी लंबा संघर्ष करना पड़ा था। लेकिन अब भी पूरी तरह से ये प्रथाएं समाप्त नहीं हुईं कहीं न कहीं इसके अवशेष देखने को मिल ही जाते हैं। इस राजनीतिक आब्जर्वेशन से चौंका पर ट्रेनिंग तो विद्यार्थी परिषद की है।
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