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Wednesday, February 12, 2025

पचास वर्ष पहले आई थी एक आंधी


इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर जब फिल्म या पुस्तक आती है जिसमें सच या सच के करीब जाने की कोशिश की जाती है तो उसको लेकर खूब हो-हल्ला मचता रहा है। इंदिरा गांधी पर मथाई की पुस्तक से लेकर गुलजार के निर्देशन में बनी फिल्म आंधी से लेकर हाल ही में कंगना की फिल्म इमरजेंसी को को लेकर विवाद हुआ। पंजाब में कंगना की फिल्म रिलीज नहीं हो पाई। आज से 50 वर्ष पूर्व जब आंधी रिलीज हुई थी तो प्रचारित किया गया था कि ये फिल्म इंदिरा गांधी और उनके पति फिरोज के रिश्तों पर आधारित है। फिल्म के रिलीज के पहले दक्षिण भारत के अखबारों में इसका एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ था। विज्ञापन में फिल्म की नायिका सुचित्रा सेन की फिल्म की भूमिका से ली गई एक तस्वीर प्रकाशित हुई थी। तस्वीर के नीचे लिखा था कि अपने प्रधानमंत्री को स्क्रीन पर देखें। लेकिन उत्तर भारत और दिल्ली के समाचार पत्रों में इस फिल्म का जो विज्ञापन प्रकाशित हुआ, उसमें लिखा था स्वाधीन भारत की एक दमदार महिला राजनेता की कहानी। फोटो सुचित्रा सेन की फिल्मी गेटअप वाली ही लगी थी। फिल्म की प्रचार सामग्री और उसके फिल्मांकन को लेकर ये बात स्पष्ट थी कि फिल्म इंदिरा गांधी पर ही केंद्रित है। हलांकि फिल्म के निर्देशक गुलजार इस बात से इंकार कर रहे थे कि ये फिल्म इंदिरा गांधी पर बनी थी। उन्होंने स्वाधीन भारत की एक दमदार नेत्री तारकेश्वरी सिन्हा का नाम लेकर कहा था कि फिल्म उनके जीवन से प्रेरित है।

फिल्म से जुड़े लोग लाख इस बात की सफाई देते रहे कि ये फिल्म इंदिरा गांधी पर केंद्रित नहीं है लेकिन इंदिरा गांधी के जीवन और इस फिल्म की नायिका आरती के जीवन में कई समानताएं लक्षित की जा सकती हैं। फिरोज गांधी से इंदिरा गांधी का अलगाव हुआ और वो अपनी पिता की मर्जी से राजनीति में आईं। इंदिरा गांधी के पिता नेहरू भी अपनी बेटी को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर लंबे समय से तैयार कर रहे थे। सुचित्रा सेन के गेटअप से इंदिरा गांधी की झलक मिलती थी। एक छोटा सा अंतर ये रखा गया था कि इंदिरा जी के दो पुत्र थे जबकि फिल्म की नायिका को एक लड़की थी। इंदिरा गांधी के पुत्र अपनी मां के साथ रहते थे जबकि फिल्म में नायिका की पुत्री अपने पिता के साथ रहती थी। गुलजार ने अपने निर्देशन में नायक और नायिका के बीच के प्रेम प्रेम दृष्यों को मर्यादित ढंग से फिल्मी पर्दे पर उकेरा है। रोमांटिक दृष्यों में संजीव कुमार और सुचित्रा सेन ने अपने अभिनय से रिश्ते को जीवंत कर दिया है। फिल्म का एक गीत है, तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं में दोनों के मन की तड़प, मिलने की आकांक्षा लेकिन परिस्थितियां विपरीत। कश्मीर के अनंतनाग इलाके के मार्तंड मंदिर के खंडहरों के बीच फिल्माए इस गीत का लोकेशन, गाने के दौरान नायक नायिका की पोजिशनिंग कहानी को मजबूती प्रदान करती है। संजीव कुमार के अभिनय इतना बेहतरीन है कि उसको देखकर ही रूपहले पर्दे के किरदार की पीड़ा का अनुमान लगाया जा सकता है। बंगाली फिल्मों की जानी मानी अभिनेत्री सुचित्रा सेन ने इस फिल्म में एक बेहद महात्वाकांक्षी महिला के चरित्र को बखूबी निभाया था। इस फिल्म के गाने, इसके संवाद, संवादों का फिल्मांकन और फिर कई मूक दृष्यों में भावनाओं की अभिव्यक्ति इस फिल्म को क्लासिक बनाती है। लेकिन राजनीति ने इस फिल्म को मारने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। 

फिल्म आंधी के रिलीज होने पर ये बातें इंदिरा गांधी तक पहुंचने लगी कि उसमें उनको गलत तरीके से दिखाय गया है। कई लोगों ने जब इंदिरा गांधी के कान भरे तो उन्होंने दो लोगों को फिल्म देखकर बताने के लिए कहा कि क्या वो फिल्म सिनेमा हाल में प्रदर्शन के लिए ठीक है। दोनों ने फिल्म देखी और उसमें ऐसा कुछ भी नहीं पाया कि फिल्म को प्रतिबंधित किया जाए। उस समय के सूचना और प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल को भी फिल्म में कुछ गलत नहीं लगा था। बताया जाता है कि एक दृश्य में सुचित्रा सेन को सिगरेट पीते दिखाने की बात जब इंदिरा गांधी तक पहुंची तो उन्होंने तय कर लिया कि फिल्म को रोक दिया जाए। कुछ ही सप्ताह पहले रिलीज की गई फिल्म प्रतिबंधित। फिल्म के रील को जब्त करने का आदेश। कहा तो यहां तक जाता है कि दिल्ली पुलिस का एक दस्ता मुंबई (तब बांबे) पहुंचा था और तारदेव के एक स्टूडियो पर पुलिस ने छापेमारी कर रील के कई बक्से जब्त किए गए। उन बक्सों को लेकर दिल्ली पुलिस ट्रेन से रवाना हुई। रास्ते में उन बक्सों में आग लगने की बातें हिंदी फिल्मों से जुड़े लोग बताते हैं। सचाई चाहे जो हो लेकिन इतना तय है कि एक खूबसूरत फिल्म विवाद और एक महिला की जिंद की भेंट चढ़ गई। फिल्म को फिर से सिनेमा हाल तक पहुंचने में ढाई वर्ष की प्रतीक्षा करनी पड़ी। जब इंदिरा गांधी लोकसभा चुनाव में पराजित हुईं तो मोरारजी देसाई की सरकार ने इसको दूरदर्शन पर प्रसारित करवाया।

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