आपके दिमाग में गंदगी भरी हुई है और इस गंदगी को आप सार्वजनिक कर रहे हैं। आपने और आपके गैंग ने जिस विकृत मानसिकता का परिचय दिया उससे अभिभावक शर्मसार होंगे, माता बहनों का सर शर्म से झुक जाएगा। इस तरह की बातें सुप्रीम कोर्ट ने अल्लाबदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कही। यूट्यूब पर एक कार्यक्रम इंडियाज गाट लैटेन्ट में पांच लोग बैठे थे। बातचीत हो रही थी। बातचीत इतनी अश्लील और अभद्र थी जिसका सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है। कार्यक्रम में सामने दर्शक भी बैठेते हैं। मंच पर बैठे लोग आपस में हंसी मजाक करते हैं। टिप्पणियां भद्दी और गंदी होती हैं। कई बार जुगुप्साजनक भी। पारिवारिक रिश्तों से लेकर महिलाओं के शरीर और उनकी बनावट पर फूहड़ बातें होती हैं और इसको नाम दिया जाता है स्टैंड अप कामेडी रोस्ट किया जाता है। सामने बैठी भीड़, जिनमें महिलाएं भी होती हैं, द्विअर्थी संवादों के मजे लेती है। उसको संपादित करके यूट्यूब पर चलाया जाता है। इस बार के कार्यक्रम में बोले गए शब्द इतने घटिया थे कि पूरे देश में उसके विरोध में स्वर उठे। रणवीर अल्लाबदिया और समय रैना भी वहां बैठे थे। ये लोग यूट्यूब पर खासे लोकप्रिय हैं। इनकी आभासी लोकप्रियता के पीछे वहां बोले गए द्विअर्थी संवाद होते हैं। इन लोगों के खिलाफ केस मुकदमा हुआ। रणवीर अल्लाबदिया फरार बताए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल उनकी गिरफ्तारी पर तो रोक लगा दी है लेकिन कार्यक्रम करने पर पाबंदी लगा दी है।
प्रश्न ये है कि इनको इस तरह की बातें करने की हिम्मत कहां से मिलती है। इसका एक पूरा अर्थतंत्र है। यूट्यूब पर इस तरह के कंटेंट की भरमार है और लोग इस तरह के कंटेंट को देख भी रहे हैं। लोगों के देखने से शो को हिट्स मिलते हैं और जितने अधिक हिट्स उतना अधिक पैसा। पैसे के लिए यूट्यूब पर कुछ भी परोसा जा रहा है। अश्लील सामग्र के अलावा जो पारिवारिक रिश्ते हैं उनको भी यौनिकता में लपेट कर पेश किया जा रहरा है। इसपर एक बहुत ही श्रेष्ठ टिप्पणी सुनने को मिली थी कि शेर मांस खाएगा, हिरण घास खाएगा और सूअर बिष्टा खाता है। तो यूट्यूब पर मांस खाने वाले भी हैं, घास खानेवाले भी हैं और स्टैंडअप कामेडी के नाम पर परोसा जानेवाला बिष्टा खानेवाले लोग भी हैं। यूट्यूब तो अराजक मंच है ही वहां किसी प्रकार का कोई चेक प्वाइंट नहीं है। पत्रकारिता के नाम पर भी यूट्यूब पर जो होता है उसमें भी अराजकता साफ तौर पर देखी जा सकती है। अधिकतर यूट्यूबर्स को अपनी साख की चिंता नहीं होती है। उलजलूल जो मन में आता है वो कहते रहते हैं। अगर आप ध्यान से देखें तो कई पूर्व पत्रकार जो अब यूट्यूबर बनकर लाखो कमा रहे हैं उनकी कोई साख नहीं है। प्रत्येक चुनाव के पहले वो मोदी को हरा देते हैं, जब उनकी कल्पना शक्ति कुलांचे भरती है तो वो संघ और भाजपा में तनातनी की बातें कहकर वीडियो यूट्यूब पर अपलोड कर देते हैं। उनको मालूम है कि अगर वो भाजपा और संघ की आलोचना करेंगे तो समाज का एक वर्ग उनको देखेगा। वो चाहे गल्प ही कह रहे हों लेकिन हिट्स मिल जाते हैं और उनकी जेब भर जाती है।
सिर्फ यूट्यूब की ही बात क्यों करें कई कामेडी शो में भी द्विअर्थी संवाद बोले जाते हैं। चाहे वो कपिल शर्मा का शो ही क्यों न हो। पहले ये टीवी पर चला करते थे लेकिन अब इनको और अधिक अराजकता चाहिए तो अब इस तरह के शो या तो ओटीटी प्लेटफार्म्स पर आ गए हैं या यूट्यूब पर अपना चैनल बना लिया है। फेसबुक और एक्स पर तो पोर्नोग्राफी भी उपलब्ध है। एक्स पर महिला के नाम से हैंडल बनाकर अर्धनग्न तस्वीरें लगाई जाती हैं और फि प्रश्न पूछा जाता है कि मेरे शरीर का कौन सा अंग आपको पसंद है? उस पोस्ट का इंगेजमेंट काफी बढ़ जाता है। ओटीटी के कंटेंट के बारे में कुछ कहना ही व्यर्थ है। वहां हिंसा, यौनिकता और जुगुप्साजनक दृश्यों की भरमार है। कई बार इसपर देशव्यापी बहस हो चुकी है कि ओटीटी के कंटेंट को सरकार को रेगुलेट करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट कहा है कि वो सरकार से इस बारे में जानना चाहती है कि नियमन के लिए क्या किया जा रहा है। कोर्ट इस मसले को यूं नहीं छोड़ सकती है। इस माध्यम को विनियमन के अंतर्गत लाने के लिए एक बड़ा तंत्र चाहिए । संभव है कि सरकार में इतने बड़े तंत्र पर आनेवाले खर्च को लेकर अभी एकराय नहीं बन पा रही हो। अगर विनियमन होता है तो ऐसा करनेवाला भरत पहला देश नहीं होगा। अभिव्यक्ति की स्वाधीनता का शोर मचानेवालों को ये जानना चाहिए कि सिंगापुर में एक नियमन आथिरिटी है जिसका नाम इंफोकाम मीडिया डेवलपमेंट अथारिटी है जिसकी स्थापना ब्राडकास्टिंग एक्ट के अंतर्गत की गई है। सर्विस प्रोवाइडर को इस कानून के अंतर्गत अथारिटी से लाइसेंस लेना होता है। वहां ओटीटी, वीडियो आन डिमांड और विशेष सेवाओं के लिए एक कंटेंट कोड है। सिंगापुर में कंटेंट का वर्गीकरण भी किया जाता है। इंफोकाम मीडिया डेवलपमेंट अथारिटी को ये अधिकार है कि वो किसी भी कंटेंट को रोक सके या कंटेट कोड के विरुद्ध होने पर निर्माताओं पर जुर्माना लगा सके। आस्ट्रेलिया में भी डिजीटल मीडिया पर नजर रखने के लिए ईसेफ्टी कमिश्नर होता है। जो ये देखता है कि वर्जित कटेंट के नियमों का पालन हो रहा है कि नहीं। अगर कंटेंट का वर्गीकरण नहीं किया जाता है तो ईसेफ्टी कमिश्नर को कंटेंट को प्रतिबंधित करने का अधिकार है। वहां भी कंटेंट को लेकर खास तरह के मानक और कोड तय किए गए हैं। अमेरिका में भी कम्युनिकेशन डिसेंसी एक्ट है जिसके अंतर्गत आनलाइन कंटेंट पर परोसी जानेवाली सामग्री को लेकर एक लीगल फ्रेमवर्क है। कम्युनिकेशन डिसेंसी एक्ट में समय समय पर संशोधन किया जाता है और अभिव्यक्ति की स्वाधीनता और कंटेंट को लेकर एक संतुलन कायम किया जाता है। इसी तरह से यूरोपियन यूनियन ने भी कुछ वर्षों पहले अपने सदस्य देशों के लिए एक गाइडलाइ जारी किया था।
भारत में आनलाइन कंटेंट को लेकर बीच बीच में सरकार इसको रेगुलेट करने की आवश्यकता पर बल देती रहती है लेकिन किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाती है। अल्लाबदिया और उसके साथियों के कार्यक्रम के बाद एक बार फिर पूरे देश में आनलाइन कंटेंट को लेकर एक कोड बनाने या इसको विनयमित करने की चर्चा आरंभ हो गई है। आज आवश्यकता इस बात की है कि आनलाइन पर जिस प्रकार के भ्रामक, अश्लील, अंधविश्वास फैलानेवाले, महिलाओं और उनके शरीर पर जिस प्रकार की टिप्पणियां की जाती हैं उसको लेकर एक गाइडलाइन या कंटेंट कोड बने। भारत में जो लोग इन माध्यमों से धन अर्जित करते हैं उनको भारतीय कानून और कंटेंट कोड के हिसाब से ही सामग्री तैयार करने की बाध्यता होनी चाहिए। यूट्यूब की अराजकता को कम करने या खत्म करने के लिए ये आवश्यक है कि जो लोग इस प्लेटफार्म से पैसे कमा रहे हैं वो अपना रजिस्ट्रेशन करवाएं। कंटेंट को लेकर एक शपथ पत्र दें कि वो यौनिकता, महिलाओं को लेकर द्विअर्थी संवाद और भद्दे कंटेंट नहीं बनाएंगे। जाहिर सी बात है कि उस शपथ पत्र में भारत विरोधी कंटेंट को भी जगह नहीं मिलनी चाहिए।
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