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Sunday, October 20, 2013

कहानी की प्रतिनिधि को नोबेल पुरस्कार

विश्व साहित्य खासकर अंग्रेजी साहित्य के इतिहास में दो हजार तेरह को महिला लेखन की सशक्त मौजूदगी को लेकर याद किया जाएगा । अमेरिका से लेकर इंगलैंड, कनाडा से लेकर न्यूजीलैंड तक में लेखिकाओं ने अपने लेखन को एक नया आयाम दिया, एक नई ऊंचाई दी और साथ ही एक नया अंदाज भी दिया । अमेरिका की रचेल कुशनर की द फ्लेमथ्रोअर्स ने तो अपने कथ्य और विषय को लेकर पूरे साहित्य जगत को झकझोर दिया था । सत्तर के दशक में आतंक और कला को केंद्र में रखकर लिखे गए उपन्यास को इक्कीसवीं सदी का सर्वोत्तम उपन्यास करार दिया गया था । यह उपन्यास विषयकी नवीनता और उसके ट्रटमेंट को लेकर रोचक अवश्य है लेकिन किसी फैसले पर पहुंचने के पहले उसपर पर्याप्त मंथन होना चाहिए । हलांकि अमेरिका में भी हिंदी साहितय की तरह ही सर्वोत्तम और सदी का महानतम, सदी का सर्वेश्रेष्ठ करार देने की एक लंबी परंपरा है । पिछले साल जब जोनाथन फ्रेंजन का उपन्यास फ्रीडम छपकर आया था तो उसे भी अमेरिकी आलोचकों ने सदी की महानतम कृतियों की श्रेणी में रखते हुए उसको लियो टॉलस्टाय के वॉर एंड पीस के टक्कर का उपन्यास बताया था । खैर यह एक अवांतर प्रसंग है । अगर अमेरिका और ब्रिटेन से इतर अंग्रेजी में लिख रही एशियाई लेखिकाओं पर भी गौर करें तो इस निषकर्ष पर पहुंचते हैं कि उन्होंने भी अपने लेखन से अंग्रेजी साहित्य के आलोचकों का ध्यान खींचा । महिलाओं के इस गंभीर और लोकप्रिय लेखन को ना केवल सराहा गया बल्कि उसने हर तरह के पुरस्कार भी हासिल किए । यहां तक कि पुरस्कारों के लिए जो नामांकन हुए उसमें भी लेखिकाओं का ही कब्जा रहा । अगर हम मैन बुकर प्राइज के लिए नामांकित लेखकों पर नजर डालें तो यह तस्वीर और साफ होती है । छह में से चार लेखिकाएं- झुंपा लाहिरी की द लव लैंड, एलेनॉर काटन की द ल्यूमिनरीज, वॉयलेट बुलावॉयो की वी नीड न्यू नेम्स रूथ ओजकी की अ टेल फॉर द टाइम बीइंग इस सूची में थी । इस सूची के नामों को गिनाने का मकसद सिर्फ इतना है कि लेखिकाओं ने अपनी कृतियों के बूते पर दुनिया के प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक मैन बुकर में प्रमुखता से अपनी जगह बनाई । इस सूची में से ही न्यूजीलैंड की मात्र अट्ठाइस साल की युवा लेखिका एलेनॉर काटन की द ल्यूमिनरीज को मैन बुकर प्राइज से नवाजा गया । आठ सौ से ज्यादा पन्नों में लिखे गए इस उपन्यास ने अपने क्राफ्ट और रोमांच की वजह से सूची के बाकी लेखकों को पछाड़ा । मैन बुकर के अलावा के ग्रांटा के बेस्ट अंडर फोर्टी के बीस लेखकों की सूची में भी बारह लेखिकाओं ने जगह बनाई । उसी तरह से अमेरिका के नेशनल बुक फाउंडेशन के फाइव अंडर थर्टी फाइव की सूची में पहली बार पांचों लेखिकाएं ही रही । भारत समेत एशियाई देशों में भी अंग्रेजी लेखन में महिलाओं ने अपनी पहचान बनाने के साथ साथ अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया । चाहे वो जेनिस पेरियॉट हो, नीलांजना राय हो ।
अंग्रेजी लेखन में महिलाओं के इस दबदबे के बीच साहित्य के लिए इस वर्ष को नोबेल पुरस्कार कनाडा की बयासी साल की वयोवृद्ध लेखिका एलिस मुनरो को दिया गया । मुनरो को पुरस्कार मिलने के बाद अंग्रेजी में हो रहे महिला लेखन पर एक बार फिर से सबकी नजर चली गई । एलिस मुनरो लंबे लंबे उपन्यास नहीं लिखती हैं । वो मूलत कथाकार हैं जिन्हें अंग्रेजी में शॉर्ट स्टोरी राइटर कहते हैं । एलिस मुनरो कनाडा की पहली कथाकार हैं जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला है इसके पहले इसके पहले कनाडा मूल के साउल बेलो को उन्नीस सौ छिहत्तर में नोबेल पुरस्कार मिला था लेकिन वो बचपन में ही अमेरिका में जा बसे थे । नोबेल पुरस्कार के इतिहास में बहुत कम बार ही कथाकार को साहित्य के लिए पुरस्कृत किया गया है । यह मुनरो की कहानियों की ताकत ही है जिसने नोबेल पुरस्कार समिति के सदस्यों को उनको चुनने के लिए बाध्य कर दिया। अपनी बीमारी की वजह से खुद पुरस्कार लेने नहीं जा पाई एलिस मुनरो ने एक बयान जारी कर कहा कि उनको नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद कहानी एक विधा के तौर पर और मजबूत होगी । किसान परिवार में उन्नीस इकतीस में जन्मी एलिस मुनरो ने साठ के दशक के एकदम शुरुआत से लिखना शुरू किया था। मुनरो ने माना है कि जब उन्होंने लिखना शुरू किया तो कनाडा में बहुत कम लेखक थे और विश्व साहित्य में उनकी उपस्थिति लगभग नगण्य थी । उनके घर का माहौल साहित्यक था और उनके पिता की साहित्य में गहरी अभिरुचि थी । एलिस एनी लेडलॉ ने पहली कहानी द डायमेन्शंस ऑफ शैडो उन्नीस पचास में लिखी । तब वो पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही थी । पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान ही अपने एक सहकर्मी जेम्स मुनरो से इश्क होता है और वो दोनों शादी रचा लेते हैं । शादी के बाद एलिस मुनरो के तीन बच्चे होते हैं और वो पूरी तरह से एक गृहिणी का दायित्व निभाने लगती है । एलिस मुनरो ने माना है कि उस दौर में वो अपने परिवार में मशगूल हो गई थी और नहीं लिख पाने की वजह से वो डिप्रेशन का भी शिकार हुई । पारिवारिक चक्रव्यूह में वो इतना उलझ गई कि उसने माना कि उससे एक शब्द नहीं लिखा जाने लगा । पारिवारिक उलझनों और जिम्मेदारियों में डूबी एलिस मुनरो के लिए उसकी किताब की दुकान वरदान साबित हुई । उन्नीस सौ अड़सठ में एलिस मुनरो ने अपने पति जेम्स के साथ मिलकर एक किताब की दुकान-मुनरो बुक्स खोली, जो अब भी विक्टोरिया इलाके में मौजूद है  । उस दुकान के ग्राहकों से बात करते हुए एलिस मुनरो में फिर से लेखन की इच्छा जाग्रत होने लगी । नतीजा यह हुआ कि उन्नीस सौ अड़सठ में उनका पहला संग्रह- डांस ऑफ द हैप्पी शेड्स -प्रकाशित हुआ । इस दौर में एलिस मुनरो की कहानियां नियमित रूप से न्यूयॉर्कर समेत तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी थी । पहले संग्रह के प्रकाशन से ही एलिस मुनरो को कनाडा में पहचान मिली और उस किताब पर ही उसको वहां का प्रतिष्ठित साहित्यक पुरस्कार- गवर्नर जनरल पुरस्कार से नवाजा गया । मुनरो के उसके बाद कई कहानियां आईं और उसके बाद वो दो विश्वविद्यालयों में राइटर इन रेजिंडेंस भी रहीं । एलिस मुनरो की एक और लंबी कहानी है द बीयर कम ओवर द माउंटेन । यह कहानी एक ऐसे महिला की है जो अपनी याददाश्त खोने लगती हैं और अपने पति की इस बात से सहमत होती है कि उसको अस्पताल में भर्ती हो जाना चाहिए । कहानी जैसे जैसे आगे बढ़ती है तो पता चलता है कि औरत का पति विवाहेत्तर संबध बनाता रहा है और उसे इसका अफसोस भी नहीं है । इन्हीं हालत के बीच अस्पताल में भर्ती उस औरत को एक शख्स से प्यार हो जाता है और वो उसमें सुकून तलाशने लगती है । मानवीय संबंधों के मनोविज्ञान का बेजोड़ चित्रण है । इस कहानी पर हिट फिल्म अवे फ्रॉम हर- भी बनी ।
इनकी कहानियों में साठ के दशक में कनाडा और अमेरिका का उथल पुथल और उस दौर में वहां रहनेवाली लड़कियों के मनोविज्ञान का चित्रण है । एलिस मुनरो की किस्सागोई में यथार्थ और अनुभव को बेहतरीन सम्मिश्रण होता है जो उनकी कहानियों को पठनीय तो बनाता ही, पाठकों को एक नई तरह की अनुभूति से भी भर देता है । एलिस मुनरो की कहानियों में ग्रामीण जीवन और क्षेत्रीय परिवेश मुख्य रूप से उभर कर सामने आता है । मुनरो की कहानियों में कथानक से ज्यादा घटनाएं और स्थितियां उभर कर आती हैं और पाठकों को चौंकाती हैं । बहुधा एलिस मुनरो की तुलना महान कथाकार एंटन चेखव से भी की जाती है । अपनी कहानियों की वजह से एलिस मुनरो को समकालीन कथा साहित्य में इस विधा के प्रतिनिधि कथाकार का दर्जा हासिल है । मुनरो की अबतक दर्जनभर से जद्यादा कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं । अमेरिका और कनाडा में उनकी किताबें लाखों में बिकती हैं । नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद कई भाषाओं में उनकी रचनाओं का अनुवाद होगा और अन्य भाषा के फाठकों को उनकी रचनाओं से परितित होने का मौका मिलेगा । एलिस मुनरो को समझने के लिए दो हजार दो में छपी उनकी बेटी की किताब अहम है । उनकी बेटी साइला मुनरो ने लाइव्सस ऑफ मदर्स एंड डॉटर्स. ग्रोइंग अप विद एलिस मुनरो लिखी है । इस किताब में उनकी बेटी ने मुनरो के संघर्ष और एक कहानीकार के बनने पर विस्तार से लिखा है । इस किताब को पढ़कर मुनरो की कहानियों के विषयों को समझने में मदद मिलती है । हमें यह उम्मीद की जानी चाहिए कि हिंदी का भी कोई प्रकाशक एलिस मुनरो की कहानियां छापने का उद्यम करेगा ताकि हिंदी के विशाल पाठक वर्ग को भी उनकी कहानियों से परिचित होने का मौका मिल सके ।


1 comment:

Anupam said...

सरल छवि वाली इस महिला को सलाम !

अनुपमा तिवाड़ी