एक पार्टी है आम आदमी पार्टी
। उसके नेता है अरविंद केजरीवाल । केजरीवाल दिल्ली में विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं
। उनका दावा है कि वो चुनाव जीतेंगे । वो अपने अलावा सभी को नेताओं को भ्रष्ट मानते
हैं । पहले अन्ना हजारे के साथ थे । अब नहीं हैं । पहले अरुणा राय के साथ थे । अब नहीं
हैं । पहले रामदेव और किरण बेदी के साथ थे । अब नहीं हैं । यह सूची उनके सार्वजनिक
जीवन के महीनों की संख्या से लंबी है । केजरीवाल वैकल्पिक राजनीति का स्वप्न दिखाते
हैं । वो सार्वजनिक जीवन में शुचिता और पारदर्शिता की बात करते हैं । भ्रष्टाचार के
घुन से देश को बचाना चाहते हैं । वो गर्व के साथ ये ऐलान करते हैं कि उनकी आम आदमी
पार्टी जाति, धर्म, संप्रदाय आदि आदि से अलग हटकर काम करती है । उन्होंने दिल्ली चुनाव
के पहले ये भी ऐलान किया था कि विधानसभा क्षेत्र की जनता ही उम्मीदवारों का चुनाव करेगी
। कुछ ऐसा दिखाने का यत्न भी किया गया । लेकिन कई विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवारों
के नाम जनता की अदालत में जाने से पहले ही सामने आ गए । यह सब बताने का मकसद यह है
कि अरविंद केजरीवाल जो भारतीय राजनीति में जरा अलग हटकर दिखने की युक्ति करते हैं दरअसल
वो भी भारतीय राजनीति व्यवस्था का ही एक हिस्सा हैं सिर्फ अपनी पैकेजिंग अलग तरीके
से की है । पैकेजिंग अलग होने के साथ साथ आकर्षक भी है जो बहुधा लोगों को पहली नजर
में लुभाती भी है ।
जैसे जैसे दिल्ली चुनाव की
तारीख नजदीक आ रही है वैसे वैसे आम आदमी पार्टी की वैकल्पिक राजनीति की पैकेजिंग की
असलियत सामने आने लगी है । अभी हाल ही में केजरीवाल ने बरेली जाकर विवादित मुस्लिम
नेता तौकीर रजा से मुलाकात की । तौकीर रजा दो हजार दस के बरेली दंगों के दौरान भड़काऊ
भाषण देने के आरोप में जेल की हवा खा चुके हैं । उसके पहले निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका
तसलीमा नसरीन के खिलाफ फतवा जारी कर उनको किताबें जलाने की नसीहत दे चुके हैं । पहले
तो केजरीवाल ने बेहद मासूमियत से तौकीर रजा के अतीत के बारे में जानकारी होने से इंकार
करते रहे । अब अपनी उस मुलाकात को संयोग से घटित होना बता रहे हैं । उनकी राय है कि
तौकीर रजा बरेली इलाके के प्रतिष्ठित और सम्मानित शख्सियत हैं, लिहाजा वो उनसे मिलने
चले गए । उधर मौलाना तौकीर ने कहा कि केजरीवाल उनसे मिलने उनके घर पर आए थे। मौलाना
के मुताबिक चूंकि केजरीवाल बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ हैं लिहाजा उनके विचार मिलते
जुलते हैं । वो केजरीवाल की सादगी पर भी फिदा हो गए । जब विचार भी मिले और शख्सियत
भी पसंद आ जाए तो फिर समर्थन लाजमी है, सो मौलाना ने केजरीवाल को समर्थन का भरोसा दे
दिया । यही भरोसा केजरीवाल की छवि की चमक को फीकी कर गया । सभी राजनीतिक दलों से अलग
तरीके की राजनीति का दावा करनेवाले केजरीवाल भी वोट के लिए तुष्टीकरण के दलदल में जा
घुसे । ये पहला मौका नहीं है जब केजरीवाल ने ऐसा किया है । अगस्त 2011 में अन्ना हजारे
के रामलीला मैदान के अनशन के दौरान भी जब जामा मस्जिद के इमाम बुखारी ने उस आंदोलन
को गैर इस्लामिक करार दिया था तो उसके बाद मंच पर टोपीधारी मुसलमानों की संख्या बढ़ी
थी और रामलीला मैदान शाम की नमाज के बाद रोजा इफ्तार शुरू हुआ था । अन्ना आंदोलन पर
किताब लिखनेवाले आशुतोष ने अपनी किताब में इस पूरे प्रसंग को सस्ता राजनीतिक हथकंडा
करार दिया है । रामलीला मैदान में अन्ना हजारे का अनशन तुड़वाने के लिए भी एक दलित
और एक मुस्लिम बच्ची का लाया गया था । संदेश साफ है । अरविंद केजरीवाल का हर कदम सोच
समझकर एक संदेश देने के लिए उठता है । कुछ दिनों पहले बटला हाऊस एनकाउंटर पर भी सवाल
खड़े हुए थे ।
दरअसल अगर हम अरविंद केजरीवाल
की यात्रा को देखें तो एक बात साफ तौर पर रेखांकित की जा सकती है कि ये शख्स बेहद जल्दी
में है । हो सकता है सत्ता पाने की भी जल्दी भी हो । अरविंद में लोगों को इस्तेमाल
कर लेने की अद्भुत क्षमता भी है । जब लोकपाल के मुद्दे पर अरुणा राय ने उनको थोड़ा
इंतजार की सलाह दी तो वो अन्ना हजारे को ढूंढ लाए । अन्ना की गांधी टोपी और निर्दोष
व्यक्तित्व के सहारे आगे बढ़े । ना सिर्फ आगे बढ़े बल्कि अन्ना के आंदोलन के दौरान
इस बात को भी योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ाया कि असल रणनीतिकार वही हैं । जब खुद को
स्थापित कर लिया तो अन्ना नेपथ्य में चले गए । अन्ना के नेपथ्य में जाने के बाद अन्ना
के आसपास के उन सभी लोगों को किनारे लगाना शुरू किया जो अन्ना के भी करीब थे और अरविंद
केजरीवाल से बराबरी पर बात कर सकते थे । अन्ना आंदोलन में अरविंद के साथ हर मौके पर
कंधे से कंधा मिलाकर चलनेवाली किरण बेदी हों या फिर अन्ना आंदोलन के दौरान पर्दे के
पीछे से सोशल मीडिया संभालने वाले शिवेन्द्र सिंह हों सभी एक एक कर हाशिए पर धकेल दिए
गए । ठीक उसी तरह से जिस तरह से इंदिरा गांधी ने अपने राजनैतिक प्रतिद्वदियों को किनारे
लगा दिया । उनकी टोपी भी मैं अन्ना हूं से मैं आम आदमी हूं । बहुत संभव है कि चंद दिनों
बाद उसपर लिखा हो- मैं केजरीवाल हूं ।
अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीति की शुरुआत से ही बड़े लोगों
के खिलाफ शक पैदा कर आगे बढ़ने की रणनीति अपनाई । खुलासा दर खुलासा किया । बड़े उद्योगपति
से लेकर राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष के दामाद तक पर सनसनीखेज
आरोप लगाए । एक से एक संगीन इल्जाम । उन आरोपों को
अंजाम तक पहुंचाने की मंशा नहीं थी । तर्क ये कि जाचं का काम तो एजेंसियों का है ।
लेकिन क्या अपने आरोपों पर अरविंद ने कभी भी पलटकर सरकार से ये पूछने कि कोशिश की कि
क्या हुआ । वो सिर्फ सनसनी के लिए थे लिहाजा वो सनसनी पैदा कर खत्म होते चले गए । तात्कालिक
फायदा यह हुआ कि अरविंद केजरीवाल देशभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ योद्धा के तौर पर स्थापित
होते चले गए । लोगों के मन में एक उम्मीद जगी
कि ये शख्स अलग है । कुछ कर दिखाना चाहता है । लेकिन तौकीर रजा से समर्थन मांग कर अरविंद
केजरीवाल देश के बाकी अन्य दलों के साथ उसी कतार में खड़े हो गए जो वोट की खातिर कुछ
भी कर सकता है । कहीं भी जा सकता है । उसे चाहिए बस वोट जो सत्ता तक पहुंचने की सीढ़ी
की बुनियाद मजबूत कर सके । दिल्ली विधानसभा चुनाव के पहले इस तरह की रणनीतिक चूक केजरीवाल
पर कितना भारी पड़ेगा इसके लिए हमें आठ दिसंबर तक इंतजार करना पड़ेगा जिस दिल्ली चुनावों
के नतीजे आएंगे । तब तक के लिए एक सपने के टूटने और छले जाने की टीस दिल में रह रहकर
हूक बनकर उठती रहेगी ।
2 comments:
दुरुस्त कहा आपने- केजरीवाल साहब का ताज़ा ट्वीट - Congress to spend Rs 1400 crores in Delhi elections. A major portion will go in media. Keep a watch on media
Maulana ne Kejriwal ka asali rang samne la diya hai... jhuth ke badal chhat chuke hain....
Post a Comment