दक्षिण दिल्ली के एक प्रतिष्ठित और मशहूर स्कूल से एक बार फिर से दिल दहला देनेवाली खबर आई । खबर ये जिसका सरोकार देश
के हर प्रांत
से है। हर घर से है । हर माता पिता से है । स्कूल में एक शिक्षक ने स्टॉफ रूम में पांचवी कक्षा की बच्चियों का यौन शोषण किया । इससे भी ज्यादा चिता की बात यह है कि स्कूल में ही
बच्चों का यौन शोषण लंबे समय से चल रहा था । शिक्षक के नाम पर कलंक उस शख्स ने स्कूल के कई बच्चों का यौन शोषण किया। एक मामला सामने आने के बाद कई अभिभावकों ने स्कूल प्रशासन और पुलिस से शिकायत की है । शिक्षक के खिलाफ केस दर्ज होने के बाद कई अभिभावकों की शिकायत सामने आने से फिर वही सवाल खड़ा हो गया
है । क्या अभिभावकों को पहले से इस बात की जानकारी थी और वो बदनामी के डर से मामले को छोटा मानकर भुला चुके थे । क्या बच्चों को उस तरह से शिक्षित नहीं किया जा रहा है जिसमें उन्हें यौन शोषण के बारे में जागरूक
किया जाए । स्कूलों में बच्चों के साथ यौन शोषण के मामलों में बहुधा यह देखने में आता
है कि जब माता पिता स्कूल में शिकायत लेकर जाते भी हैं तो स्कूल प्रशासन जांच की बात
कहकर मामले को दबा देता है । परोक्ष रूप से अभिभावकों को भी स्कूल का नाम खराब होने
की दुहाई या धमकी देकर मुंह बंद रखने की हिदायत दी जाती है । बच्चों के खिलाफ यौन शोषण
को रोकने के लिए पिछले साल लागू हुए प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड अगेंस्ट सेक्सुअल ओफेंस एक्ट
(पॉक्सो ) में आरोपियों को बचाने वालों या केस को दबाने की कोशिश करने या फिर केस बिगाड़नेवालों
के लिए छह महीने की सजा का प्रावधान है लेकिन स्कूल या संस्थान के खिलाफ किसी कार्रवाई
का प्रावधान नहीं है । इस वजह से स्कूल प्रशासन ज्यादातर ऐसे मामलों को आपसी समझौतों
से दबा देने में ही बेखौफ होकर जुटा रहता है । समान्यतया अभिभावक भी बच्चों को स्कूल
में आगे दिक्कत ना हो, यह सोचकर हालात से समझौता कर लेते हैं । इसी समझौते से अपराधियों
को ताकत मिलती है । उसे लगता है कि स्कूल परिसर में अपराध करने से प्रशासन उसको दबाने
में जुट जाएगा । लिहाजा वो इस तरह के अपराध के लिए स्कूल के कोने अंतरे को ही चुनता
है । दक्षिण दिल्ली के स्कूल में हुई वारदात में भी इस बात की जांच होनी चाहिए कि क्या
आरोपी शिक्षक के खिलाफ पहले कोई शिकायत की गई थी । अगर इस तरह की कोई शिकायत पहले आई
थी और स्कूल प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की थी तो स्कूल के कर्ताधर्ताओं के खिलाफ भी
पॉक्सो की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए । इस बात की भी जांच होनी चाहिए
कि आरोपी शिक्षक स्कूल के स्टॉफ रूम को अंदर से बंद कर बच्चों का यौन शोषण करता रहा
और इतने लंबे समय तक कैसे स्कूल प्रशासन को इस बात की भनक नहीं लगी । क्या स्टॉफ रूम
हर वक्त खाली रहता था या फिर आरोपी ने कुछ ऐसा वक्त चुना था जब वहां कोई मौजूद नहीं
रहता था । पड़ताल तो इस बात की भी होनी चाहिए कि जब वो किसी बच्चे को उसके क्लास से
बुलाता था तो वर्ग शिक्षक पूछताछ क्यों नहीं करते थे ।
स्कूलों में बच्चों के यौन शोषण की वारदात को अंजाम
देनेवाले अपराधी दरअसल सेक्स कुंठा के शिकार होते हैं और मनानसिक रूप से विकृत भी ।
मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक वो सेक्सुअल प्लेजर के लिए बच्चों को अपना शिकार बनाता है
। यह एक ऐसी मानसिकता जो अपराधी को वारदात अंजाम देने के बाद एक खास किस्म का रोमांच
देता है । इस तरह के अपराधी ,आम अपराधियों से ज्यादा शातिर होते हैं । उन्हें इस बात
का अंदाज होता है कि स्कूल उसके अपराध को तूल नहीं देगा । लिहाजा वो इसमें नहीं हिचकता
है । सवाल यह है कि स्कूल की क्या जिम्मेदारी है । क्या कोई भी स्कूल यह कहकर पल्ला
झाड़ सकता है कि अमुक शख्स ने वारदात को अंजाम दिया और कानून के हिसाब से उसको सजा
मिलेगी । स्कूल की यह जिम्मेदारी भी है कि उसके परिसर में या फिर स्कूल आने और जाने
के वक्त बस में बच्चे सुरक्षित रहें । बच्चों की समय समय पर काउंसलिंग भी होनी चाहिए
ताकि उनके खिलाफ हो रहे इस तरह के अपराध उजागर हो सकें । बच्चों को इस तरह के अपराध
के बारे में जागरूक करने के लिए स्कूल के साथ साथ अभिभावकों की भी जिम्मेदारी लेनी
होगी । अभिभावकों को तो अपराध के बाद साहस के साथ सामने आना होगा । इस तरह के अपराध
को रोकने के लिए कानून से ज्यादा जरूरी है जागरूकता । स्कूलों में एक नियमित अंतराल
पर शिक्षकों के लिए भी काउंसलिंग की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि वो भी जागरूक हो सकें
। कानून का भय और समाज में जागरूकता को बढ़ाकर ही हम बच्चों के खिलाफ इस तरह के घिनौने
कृत्यों को रोक सकते हैं । इस काम में देश के हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वो अपनी
भूमिका निभाए । अगर हम ऐसा कर पाएं तो देश के भविष्य के बेहतर बना सकते हैं । बच्चों
को देश में सुरक्षित माहौल देना हमारा दायित्व ही नहीं कर्तव्य भी है ।
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