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Sunday, February 16, 2014

हवाई गठबंधन, आसमान पर मंसूबे

न्यूज चैनलों पर हो रहे लोकसभा चुनाव पूर्व सर्वे में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है । सबसे ज्यादा सीटें अन्य दलों के खाते में जा रही हैं । दूसरे नंबर पर भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गबंधन है तो सबसे आखिर में कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार चला रही संयुक्त प्रगतिशील गंठबंधन । इसके अलावा इन सर्वे में जो एक बात प्रमुखता से उभरकर आ रही है वो यह है कि प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे ज्यादा पसंदीदा शख्स नरेन्द्र मोदी हैं । सभी चैनलों और पत्रिकाओं के सर्वे में मोदी के बारे में मतैक्यता है । अब इन चुनाव पूर्व सर्वे से ही तीसरे मोर्चे के गठन के सूत्र निकलते दिखने लगे हैं । देश के अलग अलग राज्यों के क्षत्रपों को केंद्र की सत्ता में अपनी और पार्टी की संभावना तलाशने का अवसर दिखने लगा है । पिछले साल तेइस अक्तूबर को दिल्ली में सांप्रदायिकता से मुकाबले की रणनीति के नाम पर चौदह दलों के नेताओं की एक बैठक हुई थी । उस वक्त भी यह बात निकलकर आई थी कि सांप्रदायिकता से मुकाबला तो एक बहाना था, मकसद अलग अलग दलों के नेताओं के मन को एक साथ एक मंच पर आने के लिए टटोलना था । अब संसद के मौजूदा सत्र में ग्यारह गैर कांग्रेस-गैर भाजपा दलों ने एक समूह का गठन किया है जो संसद में बेहतर समन्वय से काम करेगा । इस समूह में वाम दलों के अलावा, नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू, देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस, नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी, जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके, असम गण परिषद आदि शामिल हैं । इस लोकसभा के अंतिम सत्र में इस तरह से इन दलों का एक साथ आना इस बात का संकेत है कि उनकी महात्वाकांक्षाएं हिलोरे ले रही हैं । अगले लोकसभा चुनाव में सत्ता की सौदेबाजी के लिए जमीन तैयार की जा रही है । इस सौदेबाजी के अलावा जो एक मकसद है वो है अपनी खिसकती जमीन को पुख्ता करने की । इस बार तीसरे मोर्चे के गठन के लिए सबसे ज्यादा सक्रिय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उत्तर प्रदेश में सरकार चला रही समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव दिखाई दे रहे हैं । अब इनकी सक्रियता की भी अपनी वजह है । धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन खत्म करने के बाद नीतीश कुमार बिहार में पहले से कमजोर हुए हैं । नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनकी पार्टी का कमजोर संगठन है । बिहार में उनकी अगुवाई में जब विधानसभा चुनाव हुआ था तो बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता मजबूती के साथ गठबंधन के लिए काम करते थे । सुशासन पर ध्यान देने के चक्कर में नीतीश जेडीयू के संगठन को मजबूत नहीं कर पाए । उन्हें उम्मीद थी कि बिहार में सुशासन के नाम पर उनको लोकसभा में भी काफी सीटें मिलेंगी । लेकिन बिहार में भाजपा ने अपनी स्थिति बेहतर की है । उधर अगर कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और रामविलास पासवान में समझौता हो जाता है तो वो भी मजबूती से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे । संभावना है कि वो भी अपनी स्थिति बेहतर कर सकें । इस सारी परिस्थितियों के मद्देनजर नीतीश कुमार की पार्टी को लेकसभा चुनाव में कम सीटें मिलने का अनुमान है । मोदी के नाम पर बीजेपी छोड़नेवाले नीतीश कुमार ने इसको प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है । अब वो तीसरे मोर्चे के कंधे पर सवार होकर मोदी को रोकने की कवायद में जुटे हैं । उधर मुलायम सिंह यादव की भी स्थिति यही है । मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से अल्पसंख्यकों का वोट उनसे छिटकता नजर आ रहा है । इसके अलावा सूबे में नियमित अंतराल पर होनेवाले दंगों की वजह से मुसलमानों में खासी नाराजगी है तो कानून व्यवस्था कायम रखने में नाकाम रहने से आम जनता खफा है । विधानसभा चुनाव के वक्त अखिलेश यादव ने बाहुबली और आपराधिक छवि के नेता डीपी यादव को पार्टी में शामिल करने पर जिस तरह का सख्त रुख अपनाया था उससे जनता आशान्वित हुई थी । अब अखिलेश ने अपराधी राजनेताओं के सामने घुटने देक दिए हैं । अतीक अहमद से लेकर तमाम बाहुबलियों को टिकट बांटने से तो यही संदेश जा रहा है । दूसरी बात जो भाजपा के पक्ष में है वो है केंद्र की कांग्रेस सरकार से भारी नाराजगी । इस नाराजगी का असर उत्तर प्रदेश पर भी पड़ेगा । इन सबको भांपते हुए मुलायम ने भी तीसरे मोर्चे का राग छेड़ा हुआ है । बहुजन समाजवादी पार्टी की मुखिया मायावती ने तो चुटकी लेते हुए कह दिया कि जिन पार्टियों का जनाधार खिसक रहा है वही इस तरह के मोर्चे के गठन की कवायद में जुटी हैं । उधर दिल्ली में अपना पहला चुनाव लड़कर सरकार बना लेनेवाली आम आदमी पार्टी भी तीसरे मोर्चे की संभावनाओं के संकेत दे रही है । पार्टी के नेता योगेन्द्र यादव ने कहा कि हाल के दिनों में देश में तीसरे मोर्चे के लिए संभावना पैदा हुई है । इस बयान से तो यही लगता है कि आम आदमी पार्टी को तीसरे मोर्चे से परहेज नहीं है भले ही वो लोकसभा चुनाव अलग से लड़े लेकिन चुनाव बाद की स्थितियों में उन्हें तीसरे मोर्चे की छतरी के नीचे आने से परहेज नहीं होगा ।

पूर्व में भी हमारे देश में तीसरे मोर्चे का प्रयोग हो चुका है लेकिन उनका अनुभव देश के लिए अच्छा नहीं रहा है । तीसरे मोर्चे का अनुभव इस बात का गवाह है कि वो सत्ता पाने के लिए बनाया गया गठबंधन था जिसका कोई वैचारिक आधार नहीं था । किसी भी गठबंधन के लंबे समय तक चलने के लिए यह जरूरी है कि उसके सहयोगी दलों में न्यूनतम साझा वैचारिक समझ विकसित हो सके । नब्बे के दशक के बाद जब भी लोकसभा चुनाव की आहट होती है तो तीसरे मोर्चे की कवायद शुरू हो जाती है । हर बार गैर बीजेपी और गैर कांग्रसेवाद का नारा बुलंद करती हुई क्षेत्रीय पार्टियां एक मंच पर आने के लिए लालायित दिखती हैं । चुनाव खत्म होने के बाद सत्ता के साथ जाने में परहेज नहीं होता है । लिहाजा इस बार भी तीसरे मोर्च के गठन के लिए क्षेत्रीय दलों की सक्रियता दिखने लगी है । इस बार तीसरे मोर्चे के गठन को लेकर सबसे बड़ी चुनौती है क्षेत्रीय क्षत्रपों की प्रधानमंत्री पद को लेकर ललक। मौजूदा संसद सत्र के पहले दिन जिन दलों के नेताओं ने संदन में एक गुट बनाकर काम करने पर सहमति जताई है उसमें ही कई प्रधानमंत्री पद की ख्वाहिश वाले दल हैं । मुलायम सिंह यादव कई बार देश के सर्वोच्च प्रशासनिक पद पर जाने की अपनी आकांक्षा का सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन कर चुके हैं । उनके पुत्र और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी अपने कार्यकर्ताओं से नेताजी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए जोर लगाने का आह्वान कर चुके हैं । बिहार को गर्त से निकाल कर विकास की पटरी पर ला देने वाले सुशासन बाबू नीतीश कुमार की साफ सुथरी छवि उन्हें स्वाभाविक रूप से इस पद का उम्मीदवार बना देती है । देवगौड़ा तो एक बार प्रधानमंत्री रह ही चुके हैं ।इस कथित तीसरे मोर्चे के सामने सबसे बड़ी चुनौती एक ऐसे सर्वमान्यनेता के चयन की है जिसके साथ सभी दल के नेता कम से कम सामान्य कामचलाऊ सहजता महसूस कर सकें । ऐसा होता दिख नहीं रहा है । दूसरे इस मोर्चे में अगर जयललिता हैं तो डीएमके नहीं होगी, मुलायम सिंह हैं तो मायावती नहीं होंगी । ऐसी स्थिति में चुनाव पूर्व सर्वे में अन्य के खाते की सीटें भी कम होंगी । बात वहीं आकर अटकती है कि जिस भी दल को दो सौ के आसपास सीटें मिलेंगी वो सरकार बना लेगी । तीसरे मोर्चे का कुनबा बिखरकर उसका दामन थाम लेगी । इतिहास कम से कम यही बताता है । 

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