भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान को जब एक बार
कोई पुरस्कार मिला था तो उन्होंने कहा था कि सम्मान और पुरस्कार से कोई फायदा नहीं
होता है इसकी बजाए धन मिल जाता तो बेहतर होता । इसी तरह की बात रामधारी सिंह दिनकर
को भी जब भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था तब उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था कि
इससे उनकी घर की एक लड़की का ब्याह हो जाएगा । दोनों के बयान में शब्दों का हेरफेर
हो सकता है लेकिन भाव लगभग यही थे । एक भारत रत्न से सम्मानित कलाकार और दूसरा राष्ट्रकवि
। यह सोच कल्पना से परे है कि जब इतने बड़े कलाकार और लेखक की यह स्थिति है तो मंझोले
और छोटे कलाकारों, लेखकों की आर्थिक स्थिति कैसी होगी । भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय
अवश्य हर साल कलाकारों को कुछ फेलोशिप देता है लेकिन वह राशि पर्याप्त नहीं है और ना
ही पर्याप्त है फेलोशिप की संख्या । फिर उसमें जिस तरह से चयन होता है वह भी बहुधा
सवालों के घेरे में आता रहता है । इस बात की पड़ताल होनी चाहिए कि हमारे देश में कलाकारों
और साहित्यकारों की आर्थिक स्थिति इतनी बुरी क्यों है । सरकार को भी इस दिशा में व्यापक
विमर्श के बाद एक ठोस और नई सांस्कृतिक नीति बनानी चाहिए जिसमें कलाकारों और साहित्यकारों
के आर्थिक सुरक्षा का ध्यान रखा जाना चाहिए । इस वक्त तो हालात यह है कि कई कलाकार
गुमनामी में अपनी जिंदगी शुरू करते हैं और गुमनामी में ही उनकी जिंदगी खत्म हो जाती
है । भारत कला और संगीत को लेकर भी बहुत समृद्ध है लेकिन उस समृद्ध सांस्कृतिक विरासत
को सहेजने और फिर उसको बढ़ाने में हम लगभग नाकाम रहे हैं ।
संगीत हमारे समाज में बच्चे के जन्म से लेकर
शवयात्रा तक का अंग है, अलग अलग रूप में । जीवन में संगीत की इस अहमियत को हम नहीं
समझ पा रहे हैं, लिहाजा संगीतकारों को उचित सम्मान तो कभी कभार मिल भी जाता है लेकिन
उनको आर्थिक सुरक्षा नहीं मिल पाती है । इन्हीं स्थितियों की अभिव्यक्ति बिस्मिल्ला
खां और दिनकर के कथऩ में मिलती है । हाल के दिनों में संगीतकारों की मदद के लिए कुछ
निजी प्रयास शुरू हुए हैं । इन्हीं प्रयासों में से एक है संगीतम संस्था का एक प्रयास
रहमतें । इस कार्यक्रम में देशभर के पचास कलाकारों को एक लाख रुपए का जीवन बीमा करवा
कर दिया जाता है । पिछले साल मुंबई में आयोजित इस कार्यक्रम में जितना पैसा इकट्ठा
किया गया वो संगीत ख्य्याम और गजल गायक राजेन्द्र मेहता को दिया गया । इसके अलावा कई
जरूरतमंद और युवा कलाकारों को भी संगीतनम मदद करता है । अच्छी बात यह है कि कवयित्री
स्मिता पारिख के इस प्रयास में गायक हरिहरण, भजन सम्राट अनूप जलोटा और गजल गायक तलत
अजीज का सहयोग हासिल है । इस तरह के निजी प्रयासों को स्वागत किया जाना चाहिए । जरूरत
तो इस बात की भी है कि इस तरह के प्रयास देशभर में होने चाहिए । अब अगर हमें बिहार
की मधुबनी पेंटिंग को बचाना है तो उसके कलाकारों को आर्थिक मदद तो देनी होगी । अगर
उस कला को वैश्विक मंच देना है तो उसके लिए राज्य सरकारों के अलावा निजी कारोबारी संस्थाओं
को भी अपने सामाजिक दायित्व के निर्वाह के तहत आगे बढ़कर काम करना होगा । अगर भारत
में संगीत और कला को आगे भड़ाकर कलाकारों को आर्थिक रूप से मजबूत करना है तो इसके लिए
सरकार, निजी संस्थाएं और कारोबारी समूहों को साझा तौर पर काम करना होगा । अगर हमऐसा
कर पाते हैं तो यह एरक बेहतर स्थिति होगी वर्ना भारत रत्न से सम्मानित कलाकार भी मुफलिसी
में जिंदगी बिताने और गरीबी में मौत को गले लगाने के लिए अभिशप्त रहेगा ।
2 comments:
Saarthak Lekh !
सवाल यह भी है कि क्या हमारे आर्थिक रूप से किंचित भी समर्थ रचनाकार इस तरह की कोई पहल करेंगे?
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