पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम के निधन के बाद उनपर कई तरह के लेख लिखे
गए । ज्ञान-विज्ञान से लेकर उनके संगीत प्रेम तक । उनके व्यक्तित्व के आयामों पर भी
बहुतेरे लेख छपे । लेकिन कलाम साहब की एक खासयित अभी थोड़ी अलक्षित रह गई है । सन दो
हजार दो की बात है, कलाम साहब राष्ट्रपति बने ही बने थे । संसद भवन के बालयोगी सभागृह
में विश्वनाथ प्रताप सिंह कि कविताओं का पाठ आयोजित हुआ था । उस समारोह में चार भूतपूर्व
प्रधानमंत्री- खुद विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, देवगौड़ा और आई के गुजराल एक साथ
एक मंच पर मौजूद थे । भव्य कार्यक्रम था । राष्ट्रपति कलाम साहब उस कार्यक्रम में विशिष्ठ
अतिथि के तौर पर पहुंचे थे । कार्यक्रम हिंदी में था । विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपनी
कविताएं सुनाई और सारे वक्ताओं ने हिंदी में अपना भाषण दिया और कलाम साहब बेहद संजीदगी
से सबके भाषण को सुनते और समझते रहे । ए पी जे अब्दुल कलाम ने विश्वनाथ प्रताप सिंह
की कविताओं पर बहुत अच्छा भाषण दिया था । उनके भाषण को सुनकर ऐसा लग रहा था कि एक अहिंदी
भाषी ने कितनी मेहनत की होगी सारी कविताओं और उसके अर्थ और मर्म को समझने के लिए ।
कलाम साहब जब समारोह से जाने लगे तो पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी ने संतोष भारतीय
जी से कहा कि तुम कलाम साहब को छोड़कर आओ । जब कलाम साहब वहां से निकले तो बाहर निकलते
ही उन्होंने संतोष भारतीय का हाथ पकड़ा और कहा कि यू ऑर्गेनाइज्ड अ वेरी वंडरफुल प्रोग्राम
। मैं हैरान था कि एक अहिंदी भाषी कैसे इतनी रुचि के साथ कवि गोष्ठी में ना केवल सक्रियता
के साथ भाग लेता है बल्कि हिंदी में आयोजित इस कार्यक्रम को श्रेष्ठ करार देकर ऐसे
और कार्यक्रमों के आयोजन की वकालत करता है । दरअसल कलाम साहब को हिंदी और तमिल से बहुत
प्यार था । वो बेहद टूटी फूटी हिंदी बोलते थे, बल्कि ना के बराबर ही बोलते थे लेकिन
हिंदी को लेकर उनका काफी लगाव था । कलाम साहब की हिंदी में बीस से ज्यादा किताबें प्रकाशित
होकर लोकप्रिय हो चुकी हैं । उनकी किताबों के प्रकाशक प्रभात प्रकाशन के निदेशक पियूष
कुमार ने बताया था कि जब भी वो कलाम साहब से मिलने जाते थे तो वो अपनी किताब के हिंदी
अनुवाद में खासी रुचि लेते थे । कलाम साहब
कहा करते थे कि उनकी मजबूरी है कि वो अंग्रेजी में ही लिखते हैं लेकिन जबतक उनकी किताब
हिंदी और तमिल में ना प्रकाशित हो जाए उनको संतोष नहीं होता था । कलाम साहब हिंदी में
प्रकाशित अपनी किताबों के टाइटिल को लेकर भी खासे सतर्क रहते थे और ये जानना चाहते
थे कि पाठक इस शीर्षक से कनेक्ट होगा कि नहीं । कलाम साहब हिंदी में प्रकाशित किताबों
के मूल्य को लेकर भी सजग रहते थे और बार बार कहा करते थे कि दाम कम से कम होने चाहिए
ताकि वो अधिक से अधिका पाठकों तक पहुंच सके । पियूष जी ने एक और दिलचस्प बात बताई कि
दो हजार में जब वो कलाम से मिले और उनकी किताब के बारे में बातचीत हुई तो बातों बातों
में उन्होंने पूछा कि तुम्हारी ईमेल आईडी क्या है । जब पियूष ने ना में जवाब दिया तो
उन्होंने अपने कंप्यूटर पर उनकी मेल आई डी कलामपियूष के नाम से बना दी । कलाम साहब
भाषा के साथ साथ तकनीक के मेल पर भी जोर देते थे । कलाम साहब के साथ कई किताबों के
लेखक प्रोफेसर अरुण तिवारी बताते हैं कि कलाम साहब हमेशा कहते थे कि तिवारी जो पुस्तक
तुम्हारी मां ना पढ़ सके उसको लिखने का क्या फायदा । मातृभाषा में लिखा साहित्य ही
आत्मा को तृप्त करता और छूता है । कलाम साब तो विज्ञान और चिकित्सा की पढ़ाई भी मातृभाषा
के माध्यम से कराए जाने के पक्षधर थे । कलाम साब के साथ अग्नि की उड़ान जैसी किताब
लिखनेवाले प्रोफेसर तिवारी ने बताया कि एक बार दक्षिण कोरिया से लौटकर कलाम साब वहां
की तकनीक और चिकित्सा सुविधा से काफी प्रभावित थे और बोले कि कोरिया ने ये केवल अपनी
मातृभाषा के दम पर किया है । कलाम साब ने तब कहा था कि भारत को भी हिंदी के माध्यम
से ऐसा करना चाहिए । तो ऐसे थे हमारे कलाम साहब जो गैर हिंदी भाषी होते हुए भी भारत
के विकास के लिए हिंदी को आवश्यक मानते थे ।
कलाम साहब से मेरी दूसरी मुलाकात दो हजार तेरह में हुई थी । मैंने उनकी किताब टर्निंग
प्वाइंट की समीक्षा लिखी थी जो वाणी प्रकाशन से प्रकाशित मेरी किताब विधाओं का विन्यास
में संकलित है । मैंने उनसे मिलने का वक्त मांगा । पहले किताब भेजने को कहा गया । मैंने
ये सोचकर किताब भेज दी कि शायद उनका दफ्तर ये देखना चाहता हो कि किताब में कुछ विवादित
तो नहीं है । अमूमन बड़ी हस्तियां किताब भेंट में स्वीकारने के पहले प्रति मंगवा लेती
हैं । मैं वहां पहुंचा और बातचीत के दौरान उनको बताया कि इस किताब में टर्निंग प्वाइंट
की रिव्यू है । उन्होंने कहा यस आई नो । फिर उन्होंने लेख के शीर्षक राजनीति के टर्निंग
प्वाइंट की भी तारीफ की और कहा कि मेरी जिंदगी के टर्निंग प्वाइंट को तुमने राजनीति
के टर्निंग पवाइंट बना दिए । फिर उन्होंने मेरे लेख पर थोड़ी देर बात की, किताब में
लिखे अन्य लेखों पर भी । मैं हैरान की हिंदी में लिखे लेखों को उन्होंने कैसे समझा
होगा । फिर उस किताब के बहाने से वो हिंदी साहित्य पर बात करने लगे । जब मैंने उन्हें
बताया कि मेरी इस किताब में अंग्रेजी में लिखी जा रही किताबों पर लेख है तो उन्होंने
कहा कि मासूम है । कलाम साहब ने अपनी उजली हंसी के साथ कहा कि दिस इज वंडरफुल । हिंदी
पीपल शुड ऑल्सो नो व्हाट इज बीइंग रिट्न इन अदर लैंग्वेजेज । मैं करीब बीस मिनट की
उस मुलाकात के बाद जब बाहर निकला तो ये सोचकर हैरान था कि ये शख्स कितना गंभीर है ।
दरअसल उनकी किताब टर्निंग प्वाइंट पर हिंदी में लिखी गई पहली समीक्षा मेरी ही थी, उसके
बाद इस किताब का अनुवाद हुआ । अभी जब उनके करीबी सहयोगी सृजन पाल सिंह से बात हुई तो
पता चला कि हिंदी को लेकरकलाम साहब के मन में गहरा अनुराग था । सृजन पाल जी ने बताया
कि कलाम साहब उत्तर भारत के सौकड़ों दौरे पर रहे होंगे और हर दौरे में वो अपनी स्पीच
हिंदी में मुझसे बुलवाते थे, ताकि श्रोताओं को उनकी बात समझने में आसानी हो । अपने
भाषण की शुरुआती चार पांच पंक्तियां हिंदी में बोलने के लिए वो प्रैक्टिस करते थे ।
सृजनपाल सिंह जी ने भी इस बात को स्वीकारा है कि हिंदी को लेकर कलाम साहब के मन में
गहरा सम्मान था ।
दरअसल डॉ राजेन्द्र प्रसाद के बाद दूसरे ऐसे राष्ट्रपति थे जिनके कार्यकाल में राष्ट्रपति
भवन
के
बड़े
बड़े
लोहे
के
गेट
आम
जनता
और
महामहिम
के
बीच
बाधा
नहीं
बने
। राष्ट्रपति
भवन
बच्चों, युवाओं और वैज्ञानिकों के लिए हमेशा खुला रहता था । अपने कार्यकाल के दौरान कलाम ने राष्ट्रपति
भवन
को
देश
के
विकास
का
ब्लू
प्रिंट
तैयार
करने
का
केंद्र
बना
दिया
था
। एक राष्ट्रपति
के
रूप
में
कलाम
का
उद्देश्य जनता के दिमाग को उस स्तर पर ले जाना था ताकि एक महान भारत का निर्माण हो सके । राष्ट्रपति
रहते
हुए
उन्होंने अपना एक विजन- पी यू आर ए (प्रोविज्न ऑफ अरबन एमिनिटीज इन रूरल एरियाज) देश के सामने पेश किया जिसके मुताबिक
2020 तक भारत को एक पूर्ण विकसित राष्ट्र हो जाना है। इन वजहों से उस दौर में लोग राष्ट्रपति भवन को समाज में बदलाव की प्रयोगशाला तक कहने लगे थे ।
अब्दुल कलाम की किताबें भारतीय प्रकाशन जगत में एक सुखद घटना की तरह होती हैं । हिंदी में भी ।
एक
अनुमान
के
मुताबिक
विंग्स
ऑफ
फायर
की
अबतक
दस
लाख
से
ज्यादा
प्रतियां बिक चुकी हैं । कलाम साहब ने राष्ट्रपति रहते हुए सांसदों और विधायकों के अलावा देश के नीति नियंताओं के साथ मुलाकात कर विकास की दिशा में आगे बढ़ने की योजनाएं बनाई थी । वो स्वतंत्रता दिवस पर दिए जाने वाले अपने भाषण को लेकर भी खासे चौकस रहते थे ।
दो हजार पांच के स्वतंत्रता
दिवस
के
मौके
पर
दिए
गए
उनके
भाषण
को
15 बार लिखा गया । इलके अलावा 25 अप्रैल
2007 को कलाम को यूरोपियन पार्लियामेंट में भाषण देना था । उस भाषण के 31 ड्राफ्ट हुए जिसके बाद वो फाइनल हो पाया । इससे पता लगता है कि कलाम हर मामले में परफेक्शनिस्ट
थे
। कलाम साहब वैज्ञानिक
सहायक
के
पद
से
देश
के
राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे थे । कलाम साहब सार्वजनिक
जीवन
में
उच्च
सिद्धांतों और सादगी के प्रतीक हैं और उनका जीवन बहुतों के लिए प्रेरणादायी है । उनके जीवन की ये बातें और हिंदी को
लेकर उनका प्रेम कई हिंदी विरोधियों के लिए मिसाल है ।
2 comments:
बहुत प्रेरक और जानकारी बढ़ाने वाला लेख है भाई! प्रणाम!!
बहुत ही ज्ञानवर्धक विश्लेषण।
बस एक सुधार की जरुरत है सर कलाम साहब 2002 में राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे जबकि ऊपर 2000 का जिक्र है।
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