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Wednesday, June 8, 2016

स्टार्टअप को संभालने की जरूरत

केंद्र में मोदी सरकार के दो साल पूरे होने के मौक पर जारी जश्न के बीच कुछ अहम बातें कहीं गुम सी हो गई हैं । सरकार ने पिछले दो सालों में स्टार्ट अप इंडिया को लेकर परिश्रमपूर्वक माहौल बनाया । स्टार्टअप कंपनियों के कर्ताधर्ताओं को लेकर दिल्ली के विज्ञान भवन में कार्यक्रम कर नए लोगों को प्रोत्साहित किया गया । सरकार ने स्टार्टअप को टैक्स आदि में कई सहूलियतें भी दी थी लेकिन चंद महीनों में ऐसा लगता है कि स्टार्टअप में निवेशकों की रुचि कम होने लगी है । यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि स्टार्टअप का हश्र दो हजार एक के डॉट कॉम के बुलबुले जैसा होने वाला है लेकिन जो संकेत मिलने लगे हैं वो खतरे की घंटी तो बजा ही रहे हैं । किसी भी प्रोजेक्ट के लिए इंवस्टेमेंट उसकी लाइफलाइन होती है लेकिन जब निवेश कम होने लगे तो ये समझा जाना चाहिए कि निवेशकों का भरोसा कम होने लगा है ।जिस तरह से स्टार्टअप प्रोजेक्ट्स में वेंचर कैपिटलिस्ट यानि निवेशकों की रुचि कम हो रही है या जिस तरह से वो कंपनियों के सामने अपनी अपेक्षाओं का पहाड़ खड़ा कर रहे हैं वह नई कंपनियों के लिए बेहद जटिल है । ना सिर्फ वेंचर कैपटलिस्ट बल्कि अन्य निवेशकों ने भी भारतीय स्टार्टअप से हाथ खींचना शुरू कर दिया है । जिस अमेरिकी म्युचुअल फंड कंपनी टी रो प्राइस ने पिछले साल दिसंबर में फ्लिपकार्ट में करीब सौ मिलियन डॉलर निवेश किया था उसने कंपनी में अपनी हिस्सेदारी पंद्रह फीसदी कम कर ली । भारतीय स्टार्टअप कंपनियों के लिए आदर्श रही फ्लिपकार्ट के लिए ये एक झटके से कम नहीं था । इसके पहले मोर्गन स्टेनली ने भी फ्लिपकार्ट में अपना शेयर पंद्रह फीसदी कम कर लिया था । फिल्पकार्ट पर इसका असर भी दिख रहा है । बड़े संस्थानों से कैंपस प्लेसमेंट के नाम पर मोटी सैलरी पर जिनको नौकरी का वादा किया गया था उसको स्थगित कर दिया गया है । इससे कुछ संकेत तो मिलते ही हैं । फिल्पकार्ट का उदाहरण सिर्फ इसलिए दिया गया है कि वो भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम का एक बेहद अहम हिस्सा है ।
दरअसल अगर हम स्टार्टअप में निवेश को देखें तो पिछले तिमाही की तुलना में इस साल की पहली तिमाही में वेंचर कैपटलिस्ट और पीई फंड्स ने डेढ़ बिलियन डॉलर का निवेश किया । ये पिछले तिमाही की तुलना में करीब चौबीस फीसदी कम है । निवेश के बारे में जानकारी रखनेवालों का कहना है कि चौबीस फीसदी कम निवेश बेहद चिंता की बात है और उसको ठीक करने के लिए फौरन कदम उठाने की जरूरत है । दरअसल ये चिंता सिर्फ भारतीय कंपनियों के लिए ही नहीं है । एशिया में ही अगर हम देखें तो पिछले दो तिमाही से लगातार निवेश में भारी कमी दर्ज की गई है और ऐसा दो हजार बारह के बाद पहली बार हो रहा है । अगर अंतराष्ट्रीय मीडिया की खबरों को माने तो स्टार्टअप कंपनियों में वेंचर कैपटलिस्ट, प्राइवेट इक्यूटि प्लेयर्स, म्युचुअल फंड आदि का निवेश पूरी दुनिया में कम हो रहा है । ऐसा नहीं है कि टी रो प्राइस ने सिर्फ फ्लिपकार्ट को झटका दिया है बल्कि उसने तो उबर समेत कई अमेरिकी स्टार्टअप कंपनियों में भी अपना शेयर कम किया है । इसका मतलब है कि बाजार के ये खिलाड़ी स्टार्ट अप्स को लोकर बहुत उत्साहित नहीं है ।
दरअसल अगर हम हमारे देश की स्टार्ट अप कंपनियों को देखें तो ये साफ तौर नजर आता है कि इन कंपनियों ने अपना विस्तार नहीं ढूंढा । सामानों की खरीद फरोख्त के प्लेटफॉर्म का मॉडल हमारे सामने था औपर हर कोई इस मॉडल को अपनाते हुए उसको भुनाना चाहता था । हमारे यहां स्टार्टअप में बहुत प्रयोग नहीं किए जा रहे है कोई नई तकनीक का विकास नहीं किया जा रहा । यहां ज्यादातर स्टार्ट अप वैश्विक स्तर पर सफल हो चुकी कंपनियों के मॉडल की नकल में शुरू हो रहे हैं जो थोड़ा बहुत भारतीय ग्राहकों की जरूरतों और रुचियों का ध्यान रखते हैं । वेंचर कैपटलिस्टों को हमेशा से नई तकनीक और प्रयोग लुभाते रहे हैं और वो उसमें निवेश करते रहे हैं । भारतीय जरूरतों और परिस्थितियों के मुताबिक स्टार्टअप को ढालने और उसको जनता के बीच ले जाने की जरूरत है । देश में इन दिनों सूखा पड़ा है लेकिन पानी के प्रबंधन को लेकर कोई स्टार्टअप है नहीं । इस दिशा में अगर अब भी काम शुरू हो तो निवेशकों को आकर्षित किया जा सकता है । पानी का मैनेजमेंटआने वाले दिनों में भारत में एक बड़े सेक्टर के तौर पर उभर कर सामने आने वाला है । इस बात को ध्यान रखा जाना चाहिए कि वेंचर कैपटलिस्ट भविष्य का आंकलन कर निवेश करते हैं । साइबर सुरक्षा पर भी कम काम हो रहा है जबकि ये कई देशों में सफल बिजनेस मॉडल है ।

अब हम हमारे बड़ी स्टार्टअप कंपनियों को देखते हैं तो पाते हैं कि उनमें से ज्यादातर इंटरनेट सॉफ्टवेयर सर्विसेज पर आधारित हैं ।  इससे उलट अगर हम इजरायल की स्टार्टअप कंपनियों को देखें तो वहां ज्यादातर कंपनियां साइबर सुरक्षा, स्वास्थ्य, और सर्विसेज सेक्टर में है । इजरायल की स्टार्टअप कंपनियों की सफलता के पीछे की वजह स्टार्टअप की क्षितिज का विस्तार है । केंद्र सरकार ने कई स्कीमों को बेहतर सोच के साथ शुरु किया लेकिन उस सोच को जमीनी स्तर पर उतारने के लिए उस तरह के लोगों को सामना आना होगा । स्टार्टअप इंडिया को सफल बनाने के लिए टैक्स आदि में छूट देना तो ठीक है लेकिन इस स्कीम को स्किल इंडिया से जोड़कर कुछ नई योजना को बढ़ावा देना होगा । सरकार को निवेशकों का भरोसा कायम करने की दिशा में भी काम करना होगा । स्टार्ट अप्स के पास जो पैसा आ रहा है वो उसको डिस्काउंट के तौर पर ग्राहकों को देकर वॉल्यूम बढ़ाते हैं । निवेशकों को ये मॉडल सही नहीं लग रहा है क्योंकि ज्यादा डिस्काउंट से प्रोफिट का मार्जिन कम हो जाता है । सरकार को स्टार्टअप के निवेश को रेगुलेट करने के लिए कदम उठाने चाहिए । 

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