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Saturday, March 10, 2018

'स्वस्थ आलोचना को गंभीरता से लेती'


दैनिक जागरण हिंदी बेस्टसेलर की सूची में अनुवाद श्रेणी में अभिनेत्री और लेखिका ट्विंकल खन्ना की किताब मिसेज फनीबोन्स को स्थान मिला है। पिछले कुछ सालों में ट्विकंल खन्ना ने अपने लेखन से साहित्य जगत में रचनात्मक हस्तक्षेप किया है। उनकी दूसरी किताब द लीजेंड ऑफ लक्ष्मी प्रसाद को भी पाठकों ने पसंद किया। दैनिक जागरण बेस्टसेलर सूची में अपनी किताब के आने के बाद ट्विकंल खन्ना ने लेखन से लेकर अपनी भविष्य की योजनाएं पर मैंने बातचीत की। 

प्र- ट्विंकल जी, सबसे पहले हिंदी में आपकी किताब की सफलता पर बधाई। आपकी किताब मिसेज फनीबोन्स को दैनिक जागरण हिंदी बेस्टसेलर की तीसरी सूची में स्थान मिला है। आपकी पहली प्रतिक्रिया।

ट्विकंल- धन्यवाद। लेखन की मेरी यह यात्रा बेहद शानदार रही है। मिसेज फनीबोन्स एक हास्य-व्यंग्यात्मक पुस्तक है। इसमें ये दिखाया गया है कि एक आधुनिक महिला अपने देश भारत को किस तरह से देखती है और उसका देश उसको किस नजरिए से देखता है। मुझे इस बात की बेहद प्रसन्नता है कि इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद पूरे देश ने मेरे लेखन को हाथों हाथों लिया और एक लेखन के तौर पर मेरी ओर खुशी के साथ देखना शुरू कर दिया।

प्र- आपकी किताब मिसेज फनीबोन्सट को देश की ग्लैमर इंडस्ट्री ने भी खासा पसंद किया और आपको जमकर प्रशंसा मिली। जब आप किताब लिख रही थीं तो इतनी प्रशंसा की उम्मीद थी।

ट्विकंल- मैं जब लेखन की दुनिया में आई तो ये बात मेरे जेहन में बिल्कुल नहीं थी कि फिल्मी दुनिया के लोग मेरे लेखन को किस तरह से लेंगे या लेते हैं। मैं अपने पाठकों की प्रतिक्रिया का इंतजार अवश्य करती हूं। इस बात को लेकर भी उत्सुक रहा करती थी कि मेरे पाठक मेरी किताब मिसेज फनीबोन्स की मार्फत खुद को कितना देख पाते हैं या फिर उनके आसपास की दुनिया मेरी रचनाओं के जरिए उनके लिए कितना खुलती है।

प्र- आपकी ये किताब दरअसल ऐसी छोटी छोटी कहानियों का संग्रह है जिसमें रोजमर्रा के खुशनुमा पहलुओं को आपने पाठकों के सामने साझा किया है। आपने इस तरह के लेखऩ को कैसे साधा

ट्विंकल- जो भी पाठक मेरे स्तंभ को पढ़ते हैं या पढ़ने जा रहे होते हैं उनको मैं अपने लेखन के माध्यम से उनको सचेत भी करती चलती हूं। घटनाओं के माध्यम से भी और अपने लेखन के जरिए भी । अबतक तो ये नुस्खा सफल रहा है।

प्र- आपकी रचनाओं या पुस्तकों का पहला पाठक कौन होता है, अक्षय कुमार या कोई और ?

ट्विंकल – जैसे ही मैं स्तंभ लिखकर खत्म करती हूं तो सबसे पहले अक्षय उसको पढ़ते हैं। मुझे लगता है कि अक्षय की प्रतिक्रिया से मुझे इस बात का एहसास हो जाता है या कम से कम संकेत तो मिल ही जाता है कि पाठक इसको किस तरह से लेंगे।

प्र- आप सोशल मीडिया पर भी बहुत सक्रिय हैं। क्या सोशल मीडिया रचनात्मकता को मजबूत करती है या फिर आप कुछ अलग सोचती हैं।
  
ट्विंकल – मुझे लगता है कि सोशल मीडिया एक ऐसा मंच है जहां आप अपनी सोच बगैर किसी तरह की रोक टोक के सामने रखते हैं। इस मंच पर कोई भी आपकी सोच पर अपनी धारणा लाद नहीं सकता है। जो कि किसी इंटरव्यू आदि में संभव है। जैसे अगर किसी बातचीत में मैं कहूं कि मैं भूखी हूं, तो आप कह सकते हैं कि मैं भूख से मर रही हूं या फिर अलग तरीके से ये भी कह सकते हैं कि मैं डायटिंग पर हूं । आप जैसा सोचते हैं उस हिसाब से लिख देते हैं। जब आप सोशल मीडिया पर आप अपनी बात या सोच को रखते हैं तो उसको कोई इस तरह से व्याख्यायित नहीं कर सकता है। इसलिए मैं मानती हूं कि मेरे जैसे लोग जो शो बिजनेस में हैं उनके लिए ये मीडियम एक ताजा हवा के झोंके की तरह है । यहां कोई मेरी सोच को तोड़ मरोड़ कर पेश नहीं कर सकता है।

प्र- आपने अभिनय को अपना करियर चुना था, लेकिन लेखन में आपको अपेक्षाकृत ज्यादा सफलता मिली। क्या आपको भाग्य पर भरोसा है?

ट्विंकल- मैं नहीं जानती कि भविष्य के गर्भ में मेरे लिए कोई अपेक्षाकृत बड़ी योजना मेरा इंतजार कर रही है । जो मेरे सामने नहीं है, उसके बारे में बात करना या फिर जो सामने नहीं है उसको लेकर भाग्य की भूमिका पर बात करना व्यर्थ है। मैं अपनी सहज प्रवृत्ति को जानती हूं और उसके हिसाब से ही काम करती हूं। लंबे समय से मेरी दोस्त, जो एक अखबार की संपादक भी है, ने मुझे स्तंभ लिखने को राजी किया । उसका मानना था कि मैं बहुत पढ़ती हूं और हमेशा जोक्स के लहजे में अपनी बात रखती हूं। उसका ये भी मानना था कि मैं नियमित लेखन करूं। उसके ऐसा कहने पर मैंने सोचा कि चलो ट्राई किया जाए, हलांकि मैंने इसके पहले अपने टीन एज में ही कुछ लिखा था। लेखन की शुरुआत हुई और एक के बाद एक कड़ियां जुड़ती चली गईं। आज मैं करीब सौ अखबारी स्तंभ लिख चुकी हूं और दो पुस्तकों की लेखक भी हूं। इस पड़ाव पर पहुंच कर मैं सोचती हूं कि टीनएज में जो शुरुआत की थी उसको कायम क्यों नहीं रखा।

प्र- क्या आप फिल्मों के लिए लिखने की योजना बना रही हैं।

ट्विंकल – मेरी दूसरी पुस्तक द लीजेंड ऑफ लक्ष्मी प्रसाद की दो कहानियां परदे पर आई हैं। एक तो अरुणाचलम मरुगनाथम के पैडमैन बनने की कहानी के साथ और दूसरी सलीम नोनी अप्पा का मंचन किया गया ।

प्र- कुछ लोग कहते हैं कि आपकी किताब मिसेज फनीबोन्स आत्कथात्मक है। इससे ये छवि बनती है कि आप बहुत मुखर हैं, क्या आपकी मुखरता आपको लेखऩ में मदद करती है ।
ट्विंकल- मेरी किताब मेरे कॉलम की तरह ही सत्तर फीसदी तथ्य, थोडा फिक्शन, बैटविंग्स, हड्डियों और कुछ खराब होती मस्तिष्क कोशिकाओं का मिश्रण होता है। मुझे लगता है कि मुखरता से अधिक आपका पढाकू होना आपको लेखन में मदद करता है। मैं पूरी जिंदगी पढ़ाकू बने रहना चाहती हूं।

प्रः आप अपनी आलोचनाओं से किस तरह से निबटती हैं या उसको कैसे लेती हैं।

ट्विंकल- मैं स्वस्थ आलोचना को बहुत गंभीरता से लेती हूं क्योंकि यही आपके व्यक्तित्व के या आपके लेखन के उन पहलुओं को उजागर करती है जिसके बारे में आपको पता नहीं होता है। आलोचना के जरिए ही आपके सामने ये पक्ष उद्घाटित होता है।

प्र- कौन सा काम ज्यादा मुश्किल है अभिनय या रचनात्मक लेखन

ट्विंकल- ये तो ऐसा ही है कि किसी बिल्ली से पूछा जाए कि भौंकना ज्यादा आसान है या म्याऊं करना। हम सबकी अलग अलग स्ट्रेंग्थ होती है, मेरे लिए लिखना ज्यादा आसान है।

प्र- क्या आप किसी नई किताब पर काम कर रही हैं। क्या आप दैनिक जागरण के सात करोड़ पाठकों के साथ उस किताब के बारे में जानकारी साझा करना चाहती हैं।

ट्विंकल- मैं अपनी तीसरी किताब को लगभग आधा लिख चुकी हूं और उम्मीद करती हूं कि इस वर्ष के अंत तक किताब पाठकों के हाथों में होगी ।

प्र- दैनिक जागरण से बात करने का शुक्रिया
ट्विंकल – धन्यवाद


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