हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के कोरोना से घिरे हॉटस्पॉट इलाके नवाबपुरा इलाके में गई पुलिस पर भीड़ ने हमला कर दिया। ‘दैनिक जागरण’ में एक तस्वीर छपी जिसमें पुलिसवालों को अपने सर के ऊपर टूटा हुआ दरवाजा रखकर जान बचाते दिखाया गया। ये पुलिसवाले कोरोना संक्रमित इलाके में उस परिवार के लोगों को क्वारंटाइन करने गई मेडिकल टीम के साथ थे जिसके घर कोरोना से मौत हुई थी। इस तस्वीर ने पूरी दुनिया को ये दिखाया कि कोरोना के संकटग्रस्त समय में पुलिसवाले कितनी विषम परिस्थितियों में काम करते हैं। अपनी जान जोखिम में डालकर अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं। हिंदी फिल्मों में भी इस तरह के कई पुलिसवालों के चरित्र का चित्रण हुआ है जिन्होंने अपने कर्तव्य के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। अगर हम हिंदी फिल्मों को याद करें तो जो सबसे मजबूत किरदार फौरन याद आता है वो है 1973 में बनी फिल्म ‘जंजीर’ और उसका मुख्य पात्र इंसपेक्टर विजय खन्ना। ‘जंजीर’ में इंसपेक्टर विजय खन्ना की भूमिका का निर्वाह अमिताभ बच्चन ने किया था। एक मासूम बच्चा जिसकी आंखों के सामने उसके माता-पिता की हत्या कर दी जाती है वो बड़ा होकर पुसिलवाला बनता है और अपराध को खत्म करना चाहता है। तमाम तरह के झंझावातों में घिरता है, आरोप लगते हैं, वर्दी उतरवा दी जाती है। अंत में सत्य की जीत होती है और वो अपराधी तेजा से बदला लेने में कामयाब होता है। आज से करीब सैंतालीस साल पहले बनी इस फिल्म में मिर्माता निर्देशक प्रकाश मेहरा ने जिस तरह के पुलिसवाले का चित्रण किया है वो अब भी याद किया जाता है। अमिताभ बच्चन की ही एक और फिल्म है ‘दीवार’ इसमें शशि कपूर ने पुलिस इंसपेक्टर रवि की भूमिका निभाई थी. उसका कहा एक संवाद अब भी किसी पुलिसवाले के कहे किसी भी संवाद के अधिक याद किया जाता है – ‘मेरे पास मां है’।
‘जंजीर’ के नौ साल बाद एक और फिल्म आई थी ‘शक्ति’। इस फिल्म में दिलीप कुमार ने डीसीपी अश्विनी कुमार की भूमिका निभाई थी। फिल्म में अमिताभ बच्चन उनके बेटे की भूमिका में हैं जो अपराध की दुनिया में होता है। एक तरफ कर्तव्य दूसरी तरफ पिता का दिल और मां की ममता का दवाब। दिलीप कुमार ने इस फिल्म में बेहतरीन अभिनय करके पुलिसवाले के चरित्र को जीवंत कर दिया था। इस फिल्म के रिलीज होने के ठीक एक साल बाद एक और फिल्म आई थी ‘अर्ध सत्य’। इस फिल्म में ओम पुरी ने एक ईमानदार पुलिस अधिकारी अनंत वेलांकर की भूमिका निभाई थी। इसमें ये दिखाया गया है कि कैसे एक ईमानदार पुलिस अफसर सिस्टम से लड़ता है और अपने मजबूत इरादों के साथ अपराधियों के सामने डटा रहता है। उस समय कई फिल्मी पत्रिकाओं में इस तरह की बातें छपी थीं कि ‘अर्ध सत्य’ जो भूमिका ओम पुरी ने निभाई, वो पहले अमिताभ बच्चन को ऑफर की गई थी लेकिन वो व्यस्तता की वजह से ये फिल्म नहीं कर पाए थे।
बिहार में लालू-राबड़ी राज के दौरान पुलिसवालों के तबादले से लेकर अपराध की कई कहानियां सामने आते रहती थीं। उसी दौर की पृष्ठभमि पर एक फिल्म बनी थी ‘शूल’। इस फिल्म में मनोज वाजपेयी ने इंसपेक्टर समर प्रताप सिंह की भूमिका का निभाई थी। बिहार के मोतिहारी में बच्चू यादव का राज चलता था, इंसपेक्टर समर प्रताप सिंह ने बच्चू यादव के आतंक को खत्म करने का बीड़ा उठाया था। एक पुलिस इंसपेक्टर को अपराधियों और अपराध को खत्म करने में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है ये फिल्म ‘शूल’ में बखूबी दिखाया गया है। फिल्मों में पुलिसवालों के बेहतर किरदारों को पेश करने का ये क्रम अब भी चल रहा है। सलमान खान की फिल्म ‘दबंग’ सीरीज में चुलबुल पांडे, ‘सिंघम’ में अजय देवगन, इसके पहले ‘सरफरोश’ में आमिर खान ने पुलिस अफसर अजय सिंह राठौड़ की भूमिका निभाई। हिंदी फिल्मों ने बेहद शिद्दत के साथ पुलिसवालों के संघर्ष और ईमानदारी को रेखांकित किया है।
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