आखिरकार इस वर्ष का साहित्य अकादमी पुरस्कार कैलाश वाजपेयी को मिल ही गया । हमने ये जानकारी ऐलान होने के पहले ही दे दी थी । इस बार के निर्णायक मंडल में हिंदी के वरिष्ठ कथाकार और नया ज्ञानोदय के संपादक रवीन्द्र कालिया, वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह और गुजरात के रघुबीर चौधरी थे । बैठक की शुरुआत में रघुबीर चौधरी ने रामदरश मिश्र, अनामिका और उदय प्रकाश का नाम प्रस्तावित किया । लेकिन इन नामों पर सहमति नहीं बन पाई । इसके बाद कैलाश वाजपेयी के नाम का प्रस्ताव आया जिसपर केदार नाथ सिंह और रवीन्द्र कालिया ने अपनी सहमति जता दी । रघुबीर चौधरी तो जैसे तैयार ही बैठे थे और सर्वसम्मति से कैलाश वाजपेयी के नाम पर सहमति बन गई ।
दरअसल जैसे कि मैं पहले ही लिख चुका था- अकादमी पुरस्कार के लिए जो खेल होता है उसके लिए निर्णायक मंडल के चयन में अपने लोगों को रखने का खेल सबसे बड़ा होता है । रघुबीर चौधरी का नाम ही इसलिए डाला गया था कि हिंदी के संयोजक की मर्जी चल सके । और हुआ भी वही । कैलाश वाजपेयी को पुरस्कार देने की भूमिका या यों कहें कि डील पहले ही हो चुकी थी । जब गोपीचंद नारंग पद से हटे थे और सुनील गंगोपाध्याय ने अकादमी अध्यक्ष पद की कुर्सी संभाली थी तो कैलाश वाजपेयी ने हिंदी भाषा के संयोजक के लिए अपनी दावेदारी पेश की थी । लेकिन उस वक्त उनको समझाय़ा गया था कि अगर वो संयोजक हो जाएंगे तो पुरस्कार नहीं मिल पाएगा । कैलाश जोशी ने पुरस्कार के आश्वासन के बाद अपना नाम वापस ले लिया था और गोरखपुर के विश्वनाथ तिवारी हिंदी के संयोजक बने थे । उस वक्त हुई डील अब पूरी हो पाई है और कैलाश वाजपेयी को अकादमी पुरस्कार देने का फैसला हो गया है ।
2 comments:
साहित्य अकादमी का क्च्चा चिट्टा...अन्त:पुर की जानकारी के लिये बधाई...!
बहुत सही. हैरत होती है कि अंदरखाने की खबर आप तक कैसे पहुंच जाती है.
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