हिंदी में साहित्यिक पुरस्कारों की स्थिति बेहद खराब है । पुरस्कारों की विश्वसनीयता और उसके दिए जाने के तरीके को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं । हालत तो यहां तक पहुंच गए हैं कि साहित्य अकादमी पुरस्कारों की साख पर बट्टा लगा है । लेकिन ताजा विवाद तो दिल्ली की हिंदी अकादमी के श्लाका सम्मान को लेकर उठा है । दिल्ली की हिंदी अकादमी की अध्यक्ष वहां की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित हैं और उपाध्यक्ष अशोक चक्रधर हैं । हिंदी अकादमी हर साल श्लाका सम्मान के अलावा कई और अन्य पुरस्कार देती है । वर्ष 2008-09 के लिए अकादमी की कार्यकारिणी ने हिंदी के वरिष्ठ और प्रतिष्ठित लेखक कृष्ण बलदेव वैद को श्लाका सम्मान देने की संस्तुति की थी । उसके बाद अकादमी की अध्यक्ष की हैसियत से तत्कालीन कार्यकारिणी के फैसलों पर मुहर लगा थी । लेकिन बाद के दिनों में हिंदी अकादमी में प्रशासनिक अराजकता की वजह से उस वर्ष के सम्मान नहीं दिए जा सके । लेकिन अब जब अकादमी ने वर्ष 2009-10 के पुरस्कारों के साथ 2008-09 के पुरस्कारों का ऐलान किया तो 2008-09 के लिए श्ललाका सम्मान के लिए किसी का नाम घोषित नहीं किया गया । सूची से कृष्ण बलदेव वैद का नाम गायब था । बताया जा रहा है कि एक अनाम से कांग्रेसी नेता ने अकादमी की अध्यक्ष दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को पत्र लिखकर कृष्ण बलदेव वैद को श्लाका सम्मान नहीं देने का अनुरोध किया था । कांग्रेसी नेता का आरोप है कि वैद के उपन्यास नसरीन में कई जगह अश्लील शब्दों और स्थितियों का चित्रण किया गया है । कांग्रेसी नेता की आपत्ति को कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने इस तरह स्वीकार कर लिया जैसै ये दस जनपथ का फरमान हो और ना मानने पर उनकी कुर्सी जाने का खतरा हो । शीला दीक्षित, जो कला और संस्कृति को लेकर संवेदनशील और समझदार मानी जाती है उनका यह निर्णय चौंकानेवाला है क्योंकि वैद जी को पुरस्कार देने का निर्णय हिंदी के लब्धप्रतिष्ठित लेखकों की एक कमिटी ने किया था । यहां यह बात भी समझ से परे हैं कि शुचिता और पवित्रता का ठेका कांग्रेसियों ने कब से ले लिया । यह ठेका तो भगवा खेमे के पास था । क्या धर्मनिरपेक्षता और अभिवयक्ति की आजादी का नारा देनेवाली कांग्रेस पार्टी भी भगवा रंग में रंगने लगी है । या फिर मुख्यमंत्री अपनी अधिकारियों की राय को तरजीह देने के क्रम में भगवा विचारधारा के साथ नजर आने की गलती कर बैठी । दरअसल ज्योतिष जोशी के हिंदी अकादमी के सचिव पद से इस्तीफे के बाद किन्हीं परिचयदास को अकादमी का सचिव का प्रभार दे दिया गया । परिचयदास अपने नाम के आगे कभी प्रोफेसर तो कभी डॉक्टर लिखकर लगातार हिंदी अकादमी के विज्ञापनों में छपते रहते हैं । लेकिन असली खेल तो प्लेयर बिलंडिग में बैठने वाले एक अफसर का चल रहा है, परिचयदास तो इस वजह से कुर्सी पर बैठे हैं कि वो एक कमजोर सचिव हैं जो अपने आकाओं के हुक्म को बगैर किसी सवाल जबाव के बजाते रहते हैं । अब ये मुख्यमंत्री को तय करना है कि दिल्ली की हिंदी अकादमी को सचिवालय में बैठे अफसर चलाएंगे या फिर साहित्यकारों की संचालन समिति । क्या अकादमी को स्वायत्ता मिल पाएगी या फिर यह दिल्ली सरकार का भोंपू बन कर रह जाएगा । खैर ये तो एक अवांतर प्रसंग है ।
कृष्ण बलदेव वेद को श्ललाका सम्मान नहीं दिए जाने पर हिंदी साहित्य में भूचाल आ गया । सबसे पहले हिंदी के आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने हिंदी अकादमी के साहित्यकार सम्मान लेने से इंकार कर दिया और अकादमी के सचिव को एक पत्र लिखकर अग्रवाल ने अपना विरोध भी जताया और कहा कि – साहित्य और कला में श्लीलता और अश्लीलता के फैसले इतने सपाट ढंग से नहीं किए जा सकते । साहित्येतर कारणों से जूरी की संस्तुति की उपेक्षा करना अनुचित है । यह स्थिति केवल एक वरिष्ठ लेखक के ही प्रति नहीं, साहित्य मात्र के प्रति संवेदनशीलता और सम्मान के आभाव की सूचना देती है । अपने विरोध पत्र में पुरुषोत्तम अग्रवाल ने लिखा- साहित्य के सामाजिक दायित्व की चर्चा बहुत की जाती है । इसी के साथ यह भी जरूरी है कि समाज और सामाजिक-राजनैतिक सत्ता की विभिन्न संस्थाएं भी साहित्य, कला, ज्ञान और विचार की साधना और उसकी स्वायत्तता का सम्मान करना सीखें ।
पुरुषोत्तम अग्रवाल के इस्तीफे की खबर अखबारों में छपते ही हिंदी अकादमी का विरोध और तेज हो गया । 2009-10 के श्ललाका सम्मान के लिए तुने गए वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह ने भी पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया । उनका कहना है कि वैदजी हिंदी के बेहद अहम रचनाकार हैं, उनसे श्लाका सम्मान की स्वकीकृति हासिल करने के बाद उन्हें पुरस्कार से वंचित कर उनका अपमान किया गया है । इस खुलासे के बाद स्थितियां बिल्कुल बदल गई हैं और उनका जमीर श्लाका सम्मान लेने की इजाजत नहीं देता । केदार जी के इस कदम के बाद तो जैसे पुरस्कार ठुकरानेवालों की लाइन लग गई । कवि-पत्रकार विमल कुमार, कवि पंकज सिंह, कवयित्रि और स्वर्गीय निर्मल वर्मा की पत्नी गगन गिल, रेखा जैन ने भी हिंदी अकादमी द्वारा घोषित पुरस्कार लेने से मना कर दिया है । इसके अलावा पूरा का पूरा हिंदी साहित्य वैद जी के अपमान के बाद उद्वेलित है और दिल्ली सरकार की जमकर थुक्का फजीहत हो रही है । अब तो हालात ऐसे बन रहे हैं कि हिंदी अकादमी को सम्मान समारोह करना मुश्किल हो रहा है ।
लेकिन इस सारे विवाद की एक अवांतर कथा भी है । बताया जा रहा है कि कृष्ण बलदेव वैद के खिलाफ मुख्यमंत्री को कांग्रेस के नेता से चिट्ठी लिखवाने के पीछे हिंदी की एक वरिष्ठ आलोचक हैं । जिस वर्ष जूरी ने वैद जी का नाम तय किया था उस वर्ष उक्त महिला आलोचक भी अपनी दावेदारी को लेकर लॉबिंग कर रही थी । जब उनकी बात नहीं बनी और जूरी ने वैद जी का नाम तय कर दिया तो उन्होंने एक कांग्रेसी से कृष्ण बलदेव वैद जी के खिलाफ पत्र लिखवा दिया । नतीजा यह हुआ कि अपसरशाही में जकड़ी हिंदी अकादमी ने उस पत्र के आधार पर वैद जी को पुरस्कार देने से मना कर दिया बिना ये सोचे समझे, बिना यह जाने की आपत्ति का आधार क्या है । दरअसल अकादमी के अफसरों को लगता है कि हिंदीवालों का विरोध फौरी होता है । जब अशोक चक्रधर को हिंदी अकादमी का उपाध्यक्ष बनाया गया था तो हिंदी के कई वरिष्ठ लेखकों ने घोर आपत्ति जताई थी । लेकिन चंद दिनों बाद वही साहित्यकार अशोक चक्रधर के सानिध्य में मंचासीन हो रहे थे । ना विरोध रहा और ना ही कोई दूरी । उस घटना के बाद अकादमी के अफसर बेपरवाह हो गए हैं । लेकिन अफसरों का इस बात का अंदाजा नहीं था कि इस बार इतनी संख्या में पुरस्कार ठुकरा दिए जाएंगे और मामला इतना संगीन हो जाएगा । शीला जी अब भी वक्त है अकादमी को कहिए कि अपनी गलती माने और कृष्ण बलदेव वैद जी माफी मांगकर उन्हें सम्मानित करे वर्ना होगा यह कि आप भी साहित्य और कला के मामले में भगवा खेमे में नजर आएंगी ।
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