देशभर में इस वक्त आईपीएल और उसमें लगे हजारों करोड़ पर बात हो रही है । इस बात पर बहस जारी खेल में इतना पैसा कहां से आ रहा है । संसद में भी इस बात पर ही हंगामा हो रहा है कि इंडियन प्रीमियर लीग में हो रहे तथाकथित भ्रष्टाचार और काले धन के निवेश से कैसे निबटा जाए । तमाम दलों के नेता बीजेपी से लेकर वामपंथी तक, आरजेडी से लेकर समाजवादी पार्टी तक इतना शोर मचा रहे हैं गोया ये देश पर आया सबसे बड़ा संकट हो और अगर सरकार इस संकट से जल्द नहीं निपटती है तो देश का बेड़ा गर्क हो जाएगा । कांग्रेस पार्टी भी अपने सबसे काबिल और अनुभवी मंत्री प्रणब मुखर्जी को इस मोर्चे पर तैनात कर चुकी है । सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री समेत कांग्रेस के तमाम दिग्गज रविवार को इस मसले पर दो घंटे तक माथापच्ची कर चुके हैं । लेकिन फटाफटा क्रिकेट पर मचे इस कोलाहल के बीच एक ऐसी अहम खबर आई जो इस शोरगुल में दबकर रह गई । रविवार को खबर आई कि भारत में गरीबों की संख्या में दो हजार चार की तुलना में तकरीबन दस करोड़ का इजाफा हुआ है । दो हजार चार में भारत में भारत में गरीबी की दर कुल जनसंख्या की साढे सत्ताइस फीसदी थी जो अब बढ़कर सैंतीस फीसदी से ज्यादा हो गई है । गरीबी दर में छह साल में लगभग दस फीसदी का इजाफा इस देश के लिए बड़ी चिंता की बात है । लेकिन इस खबर पर ना तो कहीं चर्चा हुई और ना ही मीडिया में इसे तवज्जो मिली । सोमवार को संसद में पूरी ताकत से विरोध दर्ज करनेवाले विरोधी दल के सांसदों को देश में बढ़ रही गरीबी और गरीबों की चिंता कहां हैं । गरीबों और पिछड़ों की राजनीति करनेवाले लालू मुलायम शरद यादव को भी आईपीएल में जारी कथित भ्रष्टाचार देश के सामने बड़ी समस्या नजर आ रही है । गरीबी के इस बढ़ते दानव पर लगाम लगाने में इन नेताओं की रुचि हो ऐसा दिखता नहीं है ।
संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के मुताबिक भारत में लगभग चालीस करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन बसर करते हैं जो कि पिछले साल के अनुमान से लगभग दस करोड़ ज्यादा है । इस अनुमान की गणना का आधार किसी भी वयक्ति की दैनिक आय है । संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक भारत में तकरीबन चालीस करोड़ लोगों की दैनिक आय साठ रुपये या इससे कम है । अगर इस अनुमान को सही मानें तो पूरे विश्व में गरीबों की कुल संख्या का एक तिहाई हिस्सा भारत में बसती है जिसकी प्रतिदिन आय सौ रुपये या इससे कम है । मनमोहन सिंह की सरकार निकट भविष्य फूड सेक्युरिटी बिल लाने जा रही है । सोनिया गांधी की सलाह पर इस बिल में कुछ तब्दीलियां की जा रही है । लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि यूपीए सरकार की प्राथमिकता ये बिल कुछ नीचे है । ना तो संसद के अंदर और ना ही संसद के बाहर इस पर बहस हो रही है, जो हमारे लिए चिंता का सबब है । हलांकि सोनिया गांधी के अनुरोध या निर्देश के बाद सरकार हरकत में आई है और इस बिल में गरीबों, महिलाओं के दायरे को विस्तृत करने की कवायद चल रही है । लेकिन सवाल यह उठता है कि जब हम विश्व महाशक्ति होने का सपना देख रहे हों, तकनीक और अंतरिक्ष में लंबी उड़ान के लिए तैयार कर रहे हों ऐसे में देश में गरीबों की संख्या में बढ़ोतरी हमारे महाशक्ति बनने के सपने पर ग्रहण लगा सकती है । जरूरत इस बात की भी है कि उद्योग और उद्योगपतियों के लिए रियायतों का पिटारा खोल देने में सरकार जिस उदारता का परिचय देती है वो सहृदयता या उदारता गरीबी से निपटने में दिखाई नहीं देती । किसी जमाने में गरीबी हटाओ का नारा देकर इंदिरा गांधी ने सत्ता हासिल की थी । दशकों बाद आम आदमी के साथ होने का दावा कर कांग्रेस फिर से सत्ता में आई । अब वक्त आ गया है कि सरकार अगर समय रहते चेत जाए नहीं तो गरीबी एक ऐसी विकराल समस्या बनकर देश के सामने खड़ी हो जाएगी जिसका बहुत ही दूरगामी असर होगा ।
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