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Thursday, September 9, 2010

स्त्री, दलित, मुसलमान- बजाते रहो

दिल्ली के साहित्यिक प्रेमियों को हर साल 28 अगस्त का इंतजार रहता है । साहित्यिकारों को तो खासतौर पर । हर साल यह दिन दिल्ली में एक उत्सव की तरह मनाया जाता है । दिल्ली के सारे साहित्यकार एक जगह इकट्ठा होते हैं, जमकर खाते पीते हैं । महानगर की इस भागदौड़ और आपाधापी की जिंदगी में कई लोग तो ऐसे भी होते हैं जो साल भर बाद इस दिन ही मिलते हैं । उत्सव सरीखे जश्न का यह मौका होता है वरिष्ठ लेखक और हंस के संपादक राजेन्द्र यादव के जन्मदिन का । मैं नब्बे के दशक के शुरुआत में दिल्ली आया । शुरुआत के कुछ वर्ष छोड़ दें तो तब से लेकर तकरीबन हर साल यादव जी के जन्मदिन के जश्न का गवाह रहा हूं, एक बार तो बिन बुलाए भी पहुंच गया। कई लोगों से मैं पहली बार राजेन्द्र यादव के जन्मदिन के मौके पर ही मिला । हिंदी के वरिष्ठतम लेखकों में से एक श्रीलाल शुक्ल जी से मेरी पहली मुलाकात राजेन्द्र जी के जन्मदिन के मौके पर हुई थी । उस वर्ष राजेन्द्र जी का जन्मदिन कवि उपेन्द्र कुमार के पार्क स्ट्रीट के सरकारी बंगले पर ही मनाया गया था । श्रीलाल जी से मुलाकात और साहित्यकार के अलावा उनके सतरंगे वयक्तित्व से परचित होना मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य की तरह था । यादव जी के जन्मदिन के मौके पर ही मैंने प्रभाष जोशी को उनका पांव छूते देखा । खैर ये अवांतर प्रसंग हैं जिसपर फिर कभी विस्तार से चर्चा होगी ।
इस बार अपने जन्मदिन से कुछ रोज पहले राजेन्द्र जी की तबियत इतनी बिगड़ गई थी कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा था । पता चला था कि शरीर में सुगर की कमी हो गई । अस्पताल से भरपूर मिठास लेकर यादव जी घर लौटे थे । मेरी इस दौरान लगातार बात होती रही , मैं लगातार पूछता रहा कि इस बार जन्मदिन का जश्न कहां हो रहा है । लेकिन यादव जी टालते रहे । फिर एक दिन फोन किया और जश्न-ए-जन्मदिन के बारे में दरियाफ्त की तो पता चला कि वो तो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानि एम्स में भर्ती हैं । जब और हालचाल जानने की कोशिश में बात आगे बढ़ी तो राजेन्द्र जी ने बताया कि वो कुछ टेस्ट के लिए भर्ती हुए हैं, चिंता की बात नहीं है । बातचीत करने के बाद लगा कि शायद इस बार यादव जी का जन्मदिन ना मनाया जाए । लेकिन सत्ताइस अगस्त की शाम को लेखक अजय नावरिया का एक संदेश प्राप्त हुआ- राजेन्द्र यादव जी अपनी जिंदगी के बयासीवें साल में प्रवेश कर रहे हैं , इस मौके पर प्रेस क्लब में होने वाले आयोजन में आप आमंत्रित हैं । संदेश के बाद अजय नावरिया ने फोन भी किया । पता चला कि आयोजकों ने यह तय किया है कि इस बार यादव जी का जन्मदिन बेहद करीबी लोगों के साथ मनाया जाए । अजय नावरिया को उनकी इस मुहिम में साथ मिला उत्साह और उर्जा से लबरेज पत्रकार गीताश्री का । नियत समय पर हमलोग दिल्ली के रायसीना रोड स्थित प्रेस क्लब में इकट्ठा हुए । तीस चालीस आमंत्रित लोगों के साथ राजेन्द्र जी ने केक काटा । सबने हैप्पी बर्थ डे टू यू गाया, तालियां बजीं । लेकिन सबसे दिलचस्प रहा राजेन्द्र जी के दोस्त डाक्टर सक्सेना का गिफ्ट । सक्सेना जी ने यादव जी को एक ढोल दिया, जिसके एक ओर चिपका था- दलित, दूसरी ओर मुसलमान और तीसरी ओर स्त्री । संदेश यह था कि राजेन्द्र जी साहित्य में दलित, मुसलमान और स्त्रियों की समस्याओं का ढोल पीटते हैं तो अब उनके गले में असल की ही ढोल डाल दी जाए । डॉक्टर सक्सेना इसके पहले भी राजेन्द्र जी को बेहद अजूबे गिफ्ट देते रहे हैं । इसके पहले उन्होंने एक ऐसा मुखौटा भेंट किया था जिसमें दस सिर लगे थे यानि एक लेखक का दस चेहरा । उसके पहले हुक्का भेंटकर सबकों चौंका चुके थे । जिस तरह से सबको यादव जी के जन्मदिन का इंतजार रहता है उसी तरह हर किसी की यह जानने में भी दिलचस्पी रहती है कि डॉक्टर सक्सेना इस बार क्या भेंट लेकर आनेवाले हैं ।
बेहद आत्मीयता से फिर खाने-पीने का दौर शुरू हुआ । गीताश्री एक बेहतरीन होस्ट की तरह सबके खाने-पीने का ध्यान रख रही थी । जैसे ही उन्हें ये जानकारी मिलती कि कोई बगैर खाए जाने की बात कर रहा है किसी को उसके पीछे लगा देती और तबतक निश्चिंत होकर नहीं बैठती थी जबतक कि वो खाना खा नहीं लेता । इस आयोजन में निर्मला जैन, भारत भारद्वाज, असगर वजाहत, पंकज विष्ठ. साधना अग्रवाल के अलावा वरिष्ठ पत्रकार शाजी जमां, आशुतोष, अजीत अंजुम, परवेज अहमद और श्रीनंद झा भी मौजूद थे । अशोक वाजपेयी थोड़ी देर से जरूर पहुंचे लेकिन अंत तक डटे रहे । यहां भी अशोक जी के साथ एक मजेदार वाकया हुआ । अशोक जी राजेन्द्र जी, मिर्मला जैन के साथ बैठे बातें कर रहे थे । अचानक डॉक्टर सक्सेना अशोक जी के पास पहुंचे और कहा- अशोक जी जनसत्ता का आपका कॉलम बहुत अच्छा रहता है । आपकी भाषा बेहद शानदार है । यहां तक तो अशोक जी के चहरे पर वही भाव थे जो अपनी प्रशंसा सुनकर किसी भी वयक्ति के चहरे पर हो सकती है । लेकिन इसके बाद डॉक्टर सक्सेना ने जो कहा उससे अशोक जी के चेहरे की चमक गायब हो गई । डॉक्टर सक्सेना ने उनकी भाषा की प्रशंसा करते करते यह कह डाला कि आपकी भाषा में वही रवानगी और ताजगी है जो किसी जमाने में शिवानी के लेखन में महसूस की जा सकती थी । यह अगर सक्सेना जी का व्यंग्य था तो बेहद शानदार था और अगर अनजाने में गंभीरता पूर्वक यब बात कही गई थी तो अशोक जी कभी कभार में इसकी खबर जरूर लेंगे ।
सभी लोग यादव जी से मजे ले रहे थे और उन्हें बयासी साल का होने पर बधाई दे रहे थे । राजेन्द्र जी भी इस बेहद आत्मीय आयोजन से प्रसन्न दिख रहे थे । अपने साथी लेखकों से चुटकी भी ले रहे थे । यादव जी की जो एक खूबी है वो यह है कि उनके साथ रहकर साहित्यिक, गैर साहित्यिक, बच्चा, बूढ़ा, जवान कोई भी बोर नहीं हो सकता। यादव जी जैसे बयासी साल के जवान का जन्मदिन और गीताश्री जैसी जिंदादिल होस्ट ने राजेन्द्र जी के जश्न-ए-सालगिरह को एक यादगार लम्हा बना दिया था । अंत में मैं इतना ही कह सकता हूं कि – तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हों पचास हजार ।

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